छतरपुर. नगरपालिका नगर निगम बनने से विकास के रास्ते खुल जाएंगे। बजट बढऩे के साथ ही चुने हुए जनप्रतिनिधियों के खर्च करने की सीमा भी बढ़ जाती है। जिससे विकास के छोटे-छोटे कार्यो के लिए फंड की समस्या नहीं होती है। तीन लाख से अधिक आबादी वाले नगर निगमों में महापौर परिषद सीधे तौर पर 15 लाख रुपए तक की लागत के कार्यों के लिए मंजूरी दे सकती है। तीन लाख से कम आबादी वाले शहरों के लिए यह सीमा 10 लाख रुपए तक है। नगर निगम कमिश्नर को पांच लाख तक के कार्यों की स्वीकृति का वित्तीय अधिकार प्राप्त है। इससे अधिक राशि के प्रस्तावों के लिए उन्हें महापौर परिषद से अनुमोदन प्राप्त करना होता है।
इस तरह होता है कार्यकाल
नगर निगम में जनता के प्रतिनिधि चुनने का तरीका नगरपालिका जैसा ही रहता है। केवल महापौर पार्षदों द्वारा न चुनकर जनता से सीधे चुना जाता है। जिसका कार्यकाल पांच साल के लिए होता है। नगर निगम परिषद और मेयर इन कौंसिल का महापौर मुखिया होता है। नियम-कानून में अधिकारों का दायरा सीमित है, शहर के प्रथम नागरिक के रूप में ऊंचा ओहदा होता है।
नगर निगम परिषद के स्पीकर मेयर की सहमति से निगम परिषद् की बैठक बुलाते हैं। बैठक की अध्यक्षता करते हैं। इस बैठक में तय एजेंडे पर निर्णय लिए जाते हैं। मेयर इन कौंसिल का कार्यकाल मेयर के विवेक पर होता है। कौंसिल को महापौर का मंत्रिमंडल माना जाता है। मेयर इसके सभापति होते हैं। न्यूनतम पांच और अधिकतम 11 सदस्य शामिल होते हैं, जिन्हें विभिन्न समितियों का प्रभारी बनाया जाता है। वहीं, नगर निगम के अमले का प्रशासनिक मुखिया आयुक्त होता है। जो अधिकारों से संपन्न होता है। शासन से मिलने वाले आदेशों और निर्णयों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी इन्हीं की होती है। आयुक्त के अधीन उपायुक्त काम करते हैं और उनके द्वारा सौंपे गए दायित्वों को पूरा करने की जिम्मेदारी इन्हीं की है। कुछ अधिकारी राज्य प्रशासनिक सेवा के भी होते हैं।
महापौर के पास होते है पावर
मेयर अपनी कैबिनेट यानी मेयर इन काउंसिल (एमआईसी) का गठन करते हैं। निगम अध्यक्ष कार्य करने में असमर्थ हो तो महापौर कभी भी विशेष समेलन बुला सकते हैं। महापौर, एमआईसी या निगम परिषद् द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी नगर निगम आयुक्त की रहती है। महापौर अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले कार्य का प्रस्ताव बनाकर नगर निगम आयुक्त को भेजते हैं। आयुक्त द्वारा प्रस्ताव के मुताबिक उस पर अमल प्रक्रिया शुरू की जाती है। अब शासन ने आयुक्त को अधिकारिता के मुताबिक कलेक्टर या शासन को सीधे प्रस्ताव भेजने की छूट भी दे दी है।
निगम को करना होते है ये काम
नगर निगम को वार्डों में साफ-सफाई के इंतजाम करवाना होता है। सड़कों पर स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था, पानी सप्लाई की व्यवस्था , बिल्डिंग बनाने की अनुमति देना, आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की व्यवस्था, खतरनाक भवनों को सुरक्षित करना या हटाना, एंबुलेंस सेवा को व्यवस्थित रखना, सड़कों का नामकरण और घरों की नंबरिंग करना, सड़कों पर यातायात चिह्नों की व्यवस्था, शहर में गार्डन और बगीचों का रखरखाव करना, सार्वजनिक शौचालय उपलब्ध करवाना जैसे कई काम होते है, जो नगरपालिका में भी किए जाते हैं।
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संपादक, बुंदेलखंड समाचार
अधिमान्य पत्रकार
मध्यप्रदेश शासन
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