अजब गजब

रतन टाटा की वो कहानी, जो आपने अभी तक नहीं पढ़ी! JRD के ऑफिस में बैठने से किया था मना

हाइलाइट्स

जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (JRD Tata) ने रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी चुना था.जब जेआरडी टाटा को इस बारे में पता चला तो उनकी हैरानी का ठिकाना नहीं था.जेआरडी टाटा, रतन टाटा के लिए अपना ऑफिस छोड़ना चाहते थे, लेकिन रतन टाटा ने मना किया.

Ratan Tata Stories : रतन टाटा ने मार्च 1991 में टाटा ग्रुप की कमान संभाली थी. परंतु उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि उन्हें कंपनी में सबसे बड़ी पोजिशन मिलेगी. रतन टाटा हमेशा एक आम कर्मचारी की तरह काम कर रहे थे और इसी तरह करना चाहते भी थे. वे जेआरडी टाटा के साथ आते-जाते तो थे, मगर कभी उनकी जगह लेने का ख्याल उनके मन में नहीं आया था. उन्हें लगता था कि कई लोग जेआरडी को पसंद हैं और उन्हीं में से किसी को जेआरडी टाटा का उत्तराधिकारी बनना चाहिए. इस बारे में खुद रतन टाटा ने सिमी ग्रेवाल के एक शो में खुलासा किया था. रतन टाटा को टाटा ग्रुप की कमान कैसे मिली, इसके पीछे की पूरी कहानी काफी दिलचस्प है.

रतन टाटा ने उस इंटरव्यू में बताया था कि वे एक कार्यक्रम के लिए जमदेशपुर में थे. वहां से उन्हें मर्सिडीज़ बेंज के साथ किसी नेगोशिएशन के लिए जर्मनी जाना था. जब वे वहां से लौटे तो पता चला कि जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (JRD Tata) बीमार हैं और एक बॉम्बे के ब्रीच कैंडी अस्पताल में इलाज करवा रहे हैं. उन्हें हार्ट से संबंधित समस्या थी. यह वही अस्पताल है, जहां रतन टाटा ने 9 अक्टूबर 2024 (बुधवार) को अंतिम सांस ली.

जेआरडी बोले- तुम मेरी जगह संभालो
रतन टाटा ने बताया था कि वे जेआरडी टाटा से मिलने के लिए रोज अस्पताल जाते थे. जेआरडी को शुक्रवार के दिन अस्पताल से छुट्टी मिली तो उन्होंने रतन टाटा को सोमवार को मिलने के लिए ऑफिस बुलाया. रतन टाटा ऑफिस पहुंचे तो हमेशा की तरह उन्होंने पूछा- ‘नया क्या है?’ रतन टाटा अक्सर एक ही जवाब देते थे कि पिछली बार जब आपसे मिला था, तब से लेकर अब तक बताने लायक कुछ नया नहीं है. इस बार भी वैसा ही जवाब दिया.

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इस पर जेआरडी टाटा ने कहा, ‘तुम्हारे पास कुछ नया नहीं है, मगर मेरे पास तुम्हें बताने के लिए कुछ नया है. मैं तुम्हें बताना चाहता हूं. यहां मेरे पास बैठो.’ रतन टाटा उनके पास बैठे तो जेआरडी टाटा ने कहा, ‘जमशेदपुर में मेर साथ जो हुआ (बीमारी) उसके बाद से मैं सोच रहा हूं कि इस्तीफा दे दूं… और मैंने फैसला किया है कि तुम मेरी जगह लो.’

रतन टाटा 1962 से टाटा ग्रुप में काम कर रहे थे. और जब जेआरडी टाटा ने उन्हें उनकी जगह लेने को कहा, तब 1991 था. रतन टाटा ने अब तक टाटा ग्रुप में कई स्तरों पर काम किया था. कॉरपोरेट त्रिमूर्ति नामक किताब में रमेश निर्मल ने लिखा है- रतन टाटा साल 1962 से टाटा समूह का हिस्सा थे. कई स्तरों पर काम किया था उन्होंने, लेकिन चेयरमैन बनने की बात आई तो वह भी एक बार आश्चर्य में पड़ गए. रतन टाटा ने इंटरव्यू में इसकी वजह बताई, ‘अलग-अलग समय पर अलग-अलग लोग जेआरडी की पसंद के उत्तराधिकारी थे. मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं थी. मैं तो मानता था कि उनमें से ही कोई उनका उत्तराधिकारी होगा. मैंने जेआरडी टाटा से केवल इतना कहा था- आप अलग-अलग लोगों को अधिकार मत देना. केवल एक व्यक्ति के पक्ष में पद छोड़ना ताकि उस शख्स के पास शक्ति हो. इसी वजह से जब मुझे चुना गया तो मैं हैरान हुआ.’

बोर्ड मीटिंग के बाद ऑफिस की कहानी
वह 25 मार्च था, जब जेआरडी टाटा ने रतन टाटा को चेयरमैनशिप सौंपने का प्रस्ताव बोर्ड के सामने रखा. रतन टाटा ने बताया कि उस दिन जेआरडी ने जिन भावनाओं को मीटिंग में उड़ेगा, उन्हें बयान नहीं किया जा सकता. इसी बैठक में रतन टाटा को चेयरमैन बनाने के फैसले पर मुहर लगा दी गई.

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इसी मीटिंग के बाद लौटते समय रतन टाटा जेआरटी के साथ उनके ऑफिस चले गए. ऑफिस में घुसते ही जेआरडी ने अपने सेक्रेटरी से कहा, ‘हमें अब यहां से हटना होगा.’ दरअसल, वे रतन टाटा के लिए ऑफिस खाली करने की बात कह रहे थे. लेकिन रतन टाटा ऐसा नहीं चाहते थे और उन्हें यह पसंद भी नहीं था. रतन टाटा इसके लिए तैयार नहीं हुए. उन्होंने जेआरडी से कहा कि यह ऑफिस उन्हीं का है. इस पर जेआरडी ने पूछा- ‘फिर तुम कहां बैठोगे?’ रतन टाटा ने कहा, ‘अभी जहां बैठता हूं. हाल के नीचे मेरा ऑफिस है, और वही ठीक रहेगा.’

इस मीटिंग के 2 साल बाद जेआरडी टाटा का स्विट्जरलैंड के जेनेवा में निधन हो गया.

जेआरडी ने बिलकुल वैसा ही फैसला लिया, जैसा कि रतन टाटा चाहते थे- पूरी सत्ता एक ही काबिल व्यक्ति को सौंपी गई, न कि कई लोगों में बांटी गई. यहां से रतन टाटा का युग शुरू हुआ. कंपनी की वैल्यूएशन तब लगभग 4 बिलियन डॉलर थी. ग्रुप की कमान संभालने के बाद रतन टाटा ने कई बदलाव किए. इन बदलावों में तीन पुराने और बड़े लोगों को हटाना था, जिनमें रुसी मोदी, दरबारी सेठ और अजीत केलकर का नाम शामिल है. दरअसल, ये पुराने हिसाब से कंपनियों को अपने-अपने हिसाब से चलाना चाहते थे, जोकि रतन टाटा को स्वीकार नहीं था. इसके पीछे की पूरी कहानी – रतन टाटा ने क्यों हटाया था रुसी मोदी और दरबारी सेठ को – पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

Tags: Ratan tata, Success Story, Successful business leaders


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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