अजब गजब

हाथ-पैर ने जवाब दिया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी! इस दिव्यांग दंपत्ति के पापड़ ने विदेशों तक मचा दी धूम!

सूरत: अगर आपके पास हिम्मत और धैर्य हो, तो जीवन की कई मुश्किलें हल्की हो सकती हैं. इसका बेहतरीन उदाहरण सूरत के सीनियर सिटीजन दंपत्ति बने हैं. पत्नी के हाथ में और पति के पैर में दिव्यांगता होने के कारण उन्हें सही नौकरी नहीं मिल पाई, लेकिन उनके द्वारा शुरू किए गए गृह उद्योग ने आज उनका जीवन बना दिया है. एक समय वे किराए के मकान में रहते थे और आज उन्होंने अपने बच्चों के साथ मिलकर अपना घर बसा लिया है.

दिव्यांगता के कारण उन्हें कई नौकरी से निकाल दिया गया था
बता दें कि सूरत के कामरेज इलाके में फ्लैट में रहने वाले प्रकाश मेहता और नीता बेन मेहता दिव्यांग दंपत्ति हैं. नीता बेन के हाथ में और प्रकाश भाई के पैर में तकलीफ है. उनके तीन बच्चे हैं. दिव्यांगता के कारण उन्हें कई जगहों से नौकरी से निकाल दिया गया था. इसलिए परिवार का गुजारा चलाने के लिए वे सूरत में रहते हुए साड़ी पर लेस और स्टोन लगाने का काम करते थे. प्रकाश भाई टेक्सटाइल का भी काम करते थे. इससे होने वाली आमदनी से घर का गुजारा और बच्चों की पढ़ाई का खर्च चलता था.

विदेश में भी होते हैं नीता बेन के पापड़ के चर्चे
बता दें कि एक दिन पड़ोसी ने उनसे गेहूं के पापड़ बनाने के लिए कहा और नीता बेन के बेटे को भी पापड़ बहुत पसंद थे, इसलिए उन्होंने पापड़ बनाए और वे इतने पतले बने कि उनके पड़ोसी ने उन्हें किलोग्राम में ऑर्डर दिया. बस उसी दिन से उनकी पापड़ यात्रा शुरू हो गई. चार साल बीत गए और अब वे गेहूं, बाजरा, मक्का, ज्वार और चावल के पापड़ बनाते हैं.

आज गुजरात सहित विदेश में भी नीता बेन के पापड़ की तारीफ हो रही है. हाथ की दिव्यांगता भी उन्हें स्वादिष्ट और पतले पापड़ बनाने से रोक नहीं पाई. वे घर की छत पर खुद ही पापड़ बनाने का काम करती हैं. नीता बेन पापड़ के आटे को गूंथने से लेकर उसे बेलने और सुखाने तक का काम करती हैं, जबकि उनके पति मशीन में पापड़ दबाने का काम करते हैं. उनके पापड़ की एक खासियत यह भी है कि इसमें तेल का उपयोग नहीं किया जाता. बिना तेल के ही आटा गूंथकर उसे दबाया जाता है, फिर भी बहुत पतले पापड़ तैयार होते हैं.

खासकर बाजरा, ज्वार और मक्का की बात करें तो ये अनाज मिलेट्स के रूप में जाने जाते हैं. आमतौर पर लोग जो पापड़ खाते हैं, वे उड़द की दाल के बने होते हैं, जिन्हें पचने में समय लगता है, लेकिन ये पापड़ मिलेट्स के बने होने के कारण आसानी से पच जाते हैं और इनमें ग्लूटेन की मात्रा भी बहुत कम होती है. बहुत से लोगों को पता ही नहीं होता कि मिलेट्स से भी पापड़ बनाए जा सकते हैं.

हर महीने औसतन 1000 किलोग्राम पापड़ की बिक्री
लोकल 18 से बात करते हुए नीता बेन मेहता ने बताया, “मेरी उम्र 50 साल है. पहले मैं गेहूं के पापड़ बनाती थी. अब मैं गेहूं के साथ-साथ चावल, बाजरा, ज्वार, मक्का के पापड़ भी बनाती हूं. गेहूं में सादे, जीरा और मिर्च के पानी के तीन वेरायटी हैं. मैं रोजाना 50 किलोग्राम पापड़ बनाती हूं. हर महीने औसतन 1000 किलोग्राम पापड़ बिक जाते हैं. लोगों का बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. एक बार जो पापड़ ले जाता है, वह बार-बार लेने आता है. मिलेट्स ग्लूटेन फ्री होने के कारण थोड़ी मुश्किल होती है, लेकिन खास तकनीक के कारण मुझे सफलता मिली है.”

30 से 35 हजार की आमदनी प्रति माह
लोकल 18 से बात करते हुए प्रकाश भाई मेहता ने बताया, “मेरी उम्र 52 साल है और मैं मूल रूप से सौराष्ट्र का हूं. घर के सभी सदस्य मिलकर घर से ही छोटा गृह उद्योग चलाते हैं. एक मां अपने बच्चों के लिए जैसे हेल्दी चीजें बनाती है, वैसे ही हम ये पापड़ बनाते हैं, इसलिए नाम ‘मावड़ी पापड़’ रखा है. इस गृह उद्योग से 30 से 35 हजार की आमदनी प्रति माह हो जाती है. पहले घर की स्थिति जो खराब थी, वह अब अच्छी हो गई है.”

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ग्राहक चिमनलाल भाई ने बताया, “मैं पिछले 3 साल से पापड़ ले रहा हूं. क्वालिटी, क्वांटिटी और कीमत सभी दृष्टि से सही है. मेरे परिवार के अलावा हमारे जो रिश्तेदार विदेश में रहते हैं, उनके ऑर्डर भी मैं देता हूं.”


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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