अजब गजब

जमीन गिरवी रखकर की पढ़ाई, घर-घर बेचा सिम कार्ड, आज देशभर में पढ़ा रहे 50 लाख स्‍टूडेंट, हर साल करते हैं बोर्ड में टॉप

हाइलाइट्स

सिर्फ 300 रुपये महीने के सब्‍सक्रिप्‍शन में सभी विषय पढ़ाते हैं.
विद्याकुल की स्‍थापना साल 2018 में हुई थी.
शुरुआत में यूट्यूब चैनल और फिर एजुटेक ऐप बनाया.

नई दिल्‍ली. कहते हैं जहां चाह-वहां राह. यानी अगर आप किसी काम को करने की ठान लेते हैं तो रास्‍ते में आने वाले पत्‍थर कुछ दिन बाद आपके लिए सीढि़यां बन जाते हैं. ऐसा कुछ हुआ एडुटेक स्‍टार्टअप विद्याकुल (Vidyakul) के फाउंडर और सीईओ तरुण सैनी के साथ. खुद पढ़ाई के लिए काफी संघर्ष किया, यहां तक कि पिता की खेतिहर जमीन को गिरवी रखकर अपनी शिक्षा पूरी की. नौकरी की शुरुआत में भी उन्‍हें काफी मुश्किलें झेलनी पड़ीं, लेकिन अपनी मेहनत और लगन से आज एक सफल स्‍टार्टअप के मालिक हैं.

तरुण ने अपने संघर्षों की कहानी साझा करते हुए बताया कि उनका गांव अंबाला से करीब 30 किलोमीटर दूर था. जहां तक आने-जाने के लिए सिर्फ सुबह शाम ही बस चलती थी और 90 के दशक में कोई और साधन नहीं होने की वजह से उन्‍हें भी रोजाना 30 किलोमीटर दूर जाकर पढ़ाई करनी पड़ती थी. तरुण का कहना है कि उनके गांव की कई मेधावी लड़कियों ने सिर्फ इस वजह से पढ़ाई छोड़ दी कि आने-जाने की सुविधा नहीं थी.

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गुरुजी ने बचा लिया कैरियर
तरुण कहते हैं कि एक समय बाद उनके सामने भी पढ़ाई छोड़ने जैसी नौबत आ गई थी, लेकिन उनके गुरुजनों ने प्रतिभा को पहचाना और परिवार को इस बात के लिए राजी किया कि मुझे आगे की पढ़ाई जारी रखनी चाहिए. पिता के पास सिर्फ खेती की कमाई का जरिया थी, ऊपर से बहनों की शादी का जिम्‍मा. इन सब मुश्किलों के बीच मैंने शिक्षा के साथ अपना संघर्ष जारी रखा. आखिरकार 12वीं पास करने के बाद मुझे स्‍कॉलरशिप मिली और ग्रेजुएशन करने ऑस्‍ट्रेलिया चला गया.

जमीन गिरवी रखकर चुकाई फीस
तरुण ने बताया कि स्‍कॉलरशिप के तौर पर उन्‍हें पढ़ाई का सिर्फ आधा ही खर्चा मिला और ऑस्‍ट्रेलिया में रहने के साथ शिक्षा से जुड़े आधे खर्च को पूरा करना बड़ी चुनौती थी. इस खर्च को पूरा करने के लिए पिता ने खेती की जमीन को भी गिरवी रख दिया. डर था, कहीं असफल हुआ तो क्‍या होगा. पढ़ाई पूरी की और ऑस्‍ट्रेलिया में पहली नौकरी घर-घर जाकर सिम बेचने से शुरू की. इससे मुझे सेल्‍स का काफी अनुभव हो गया और अपने मित्र के साथ मिलकर एक छोटी फर्म शुरू की.

ऑस्‍ट्रेलिया में बजाया कामयाबी का डंका
तरुण ने कहा कि उनके पास मार्केटिंग और सेल्‍स का काफी अनुभाव था. उनकी टीम भी काफी अच्‍छा काम कर रही थी, जिससे उनका बाजार में नाम हो गया था. इसी बीच ऑस्‍ट्रेलियाई सरकार का एजुकेशन को लेकर एक प्रोजेक्‍ट आया, जिसमें दूरदराज के गांवों में रहने वालों को सरकार घर बैठे पढ़ने की सुविधा दे रही थी. तरुण की कंपनी को इसकी मार्केटिंग का जिम्‍मा मिला और उन्‍होंने पूरे ऑस्‍ट्रेलिया में इस योजना को फैला दिया.

अचानक लिया भारत आने का फैसला
तरुण के अनुसार, ऑस्‍ट्रेलिया में सबकुछ अच्‍छा चल रहा था. उनके पास करीब 80 लोगों की टीम थी और हर महीने लाखों की कमाई भी होती है. कुल मिलाकर काम काफी अच्‍छा चल रहा था. तभी मेरे मन में इसी तरह का कोई काम भारत में शुरू करने का ख्‍याल आया और मेरे बचपन की पूरी तस्‍वीर हमारे सामने नाच गई. बस, मैंने फैसला कर लिया अब इंडिया वापस जाना है और अपने लोगों को यही सुविधा दिलानी है.

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हफ्तेभर में आ गए भारत
शिक्षा के संघर्ष को करीब से देख चुके तरुण ने तत्‍काल ऑस्‍ट्रलिया छोड़ दिया और तीसरे दिन ही इंडिया की फ्लाइट पकड़ ली. उन्‍होंने भारत आकर 6 महीने तक अपने प्रोजेक्‍ट पर रिसर्च किया और आईटी व अन्‍य तकनीकी समस्‍याओं पर काम करने के लिए एक टीम बनाई. 6 महीने बाद साल 2018 में उन्‍होंने विद्याकुल (Vidyakul) की शुरुआत कर दी.

ऐसे शुरू की कंपनी
तरुण कहते हैं कि शुरुआत में तो विद्याकुल का यूट्यूब चैनल के जरिये लोगों तक पहुंचाया और उन्‍हें क्‍वालिटी एजुकेशन प्रोडक्‍ट मुहैया कराया. थोड़ा चलने के बाद हमने विद्याकुल नाम से एजुकेशन ऐप लांच किया और छोटे शहरों व दूरदराज के गांवों में बैठे बच्‍चों को पढ़ाई-लिखाई की सामग्री के साथ उनकी समस्‍याओं के समाधान के लिए शिक्षक भी मुहैया कराने शुरू कर दिए. इसके लिए सिर्फ 300 रुपये महीने के सब्‍सक्रिप्‍शन में बच्‍चों को सभी विषय का क्‍वालिटी प्रोडक्‍ट देते हैं.

क्‍या करता है विद्याकुल
विद्याकुल प्रोजेक्‍ट को खासतौर से बोर्ड परीक्षा को ध्‍यान में रखकर शुरू किया गया है. यूपी, बिहार, गुजरात जैसे देश के बड़े राज्‍यों के स्‍टेट बोर्ड के पाठ्यक्रम को ध्‍यान में रखकर स्‍टूडेंट के लिए कंटेंट उपलब्‍ध कराए जाते हैं. तरुण का दावा है कि आज उनके प्रोजेक्‍ट के साथ करीब 50 लाख सब्‍सक्राइबर जुड़े हैं और उनके पढ़ाए बच्‍चे बोर्ड में हर साल टॉप कर रहे हैं. कंटेंट के लिए यूपी, बिहार, गुजरात सहित अन्‍य राज्‍यों में स्‍टूडियो बनाए हैं, जहां टॉप क्‍लास के शिक्षक एजुकेशन कंटेंट तैयार करते हैं. विद्याकुल ऐप को 10 लाख से ज्‍यादा लोग डाउनलोड कर चुके हैं तो 40 लाख से ज्‍यादा सब्‍सक्राइबर उनके यूट्यूब चैनल पर हैं.

करोड़ों का मिला निवेश
प्रोजेक्‍ट की शुरुआती मुश्किलों को बयां करते हुए तरुण ने बताया कि इसे शुरू करने में करीब 30 लाख रुपये का निवेश किया गया था. धीरे-धीरे उनका विस्‍तार हुआ तो कई बड़े व्‍यापारियों ने उनके प्रोजेक्‍ट में पैसा लगाया. वर्तमान में सूरत के हीरा कारोबारियों से लेकर बड़े डॉक्‍टर्स व अन्‍य निवेशकों का पैसा लगा है. कंपनी के पास 50 करोड़ से ज्‍यादा का रिजर्व फंड है, जिसका इस्‍तेमाल आगे विस्‍तार में करेंगे. उनका कहना है कि जितने में कंपनी शुरू की थी, फिलहाल का राजस्‍व हर साल उससे कई गुना मिल रहा है.

Tags: Bihar board exam, Bihar education, Business news in hindi, Educatin, UP Board Exam


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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