Opinion: पीएम मोदी का मिशन कर्मयोगी, सिविल सेवा अफसरों के ट्रेनिंग के तरीके में बड़ा बदलाव

पीएम मोदी के देश की कमान संभालने के बाद से ही सिविल सेवा के अधिकारियों की ट्रेनिंग में मूलभूत बदलाव आ चुका है. अब अधिकारी ‘अपनी दुनिया, अपना जिला, अपना विभाग या फिर अपना कार्यक्षेत्र वाली सोंच ’ में बंध कर नही रह पाएंगे. अफसरों को अब पहाड़ी राज्य, महिलाओं, पद्म पुरस्कार जीतने वाले आम आदमी को साथ लेकर चलना होगा, ताकि स्टील फ्रेम कहे जाने वाले ये अधिकारी अब आम आदमी से दूर नहीं बल्कि देश की जडों को मजबूत बनाने की कवायद में अपने पूरे कार्यकाल में लगे रहें.
“मैक्रो इकोनॉमिक्स’ से जुडा एक कोर्स आईएमएफ ने अपने जिम्मे लिया है तो कार्नेजी-मेलॉन जैसे विश्वविध्यालयों को इस नए ट्रेनिंग कोर्स का हिस्सा बनाया गया है. इस कोर्स में आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस और बिग डेटा पर जोर और साथ ही डिजिटल टेक को जोड़ा गया है. ताकि इन अधिकारियों का फोकस हर रोज विकसित होती टेक्नोलॉजी पर रहे. कुल मिला कर पीएम मोदी ने जो इन अधिकारियों का राष्ट्र निर्माण में जो सपना देखा था, उसे अमली जामा पहनाया जा चुका है. अब मसूरी या किसी अन्य जगह पर ट्रेनिंग करने वाले अधिकारी एक अत्यधिक मुश्किल और अनुशासित ट्रेनिंग में अपनी सफलता से अपने भविष्य की सीनियरिटी की झलक पा जाएंगे.
औपनिवेशिक मानसिकता छोड़ें, सेवा का भाव लाएं
यही है पीएम मोदी का मिशन कर्मयोगी, जिसमें सिविल सेवा के मिजाज को पूरी तरह बदल देने और इन अधिकारियों में सेवा का भाव लाने के लिए ट्रनिंग के पूरे के पूरे पाठ्यक्रम को बदल कर रख दिया गया है. पीएम ने 15 अगस्त 2022 को लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए कहा था कि औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति दिलाना उनके पांच प्रणों मे एक है. इसलिए वो अब चाहते हैं कि ये अधिकारी भी अपने काम करने के तरीके में समाहित औपनिवेशिक मानसिकता को छोड़ कर सेवा का भाव लाएं. इसलिए पीएम मोदी इन ट्रेनी अधिकारियों से उनके संस्थानों और सिविल सर्विस दिवस के मौके पर जरुर मिलते हैं. सीनियर अफसरों से तो वे मिलते ही हैं. इसके लिए अब देश के विभिन्न शहरों मे सम्मेलन आयोजित किए जाने लगे हैं. मसूरी के लाल बहादुर शास्त्री एकेडेमी में अब शिक्षक इस बात की कोशिश में लगे रहते हैं कि कैसे इसे मौजूदा समय और माहौल के अनुकूल बनाया जाए ताकि ऐसे उदाहरण पेश हो जो देश में बदलाव के कारक बने.
ट्रेनिंग के दौरान दुर्गम और सूदूर इलाकों में तैनाती
पीएम मोदी के सबका साथ, सबका विकास और सबका प्रयास के सबक को सार्थक करने को लेकर इन प्रशिक्षु अधिकारियों को पहाड़ी और दुर्गम राज्यों, पूर्वोत्तर के गांवों के दौरे और प्रवास, हिमालय की ट्रेकिंग की भी शुरुआत की गयी है. पर्वतमाला नाम के इस प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है. पर्वतमाला पाठ्यक्रम के तहत पूर्वोत्तर के राज्यों और दूसरे पहाड़ी राज्यों से लाल बहादुर शास्त्री अकादमी के शिक्षकों ने बात कर उन इलाकों की जरुरतों के बारे में जानकारी इकट्ठी करते हैं. साथ ही प्रशिक्षु अधिकारियों को उधर की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार किया जा रहा है. फिर उन्हें तराशने के लिए फिल्ड में भेज दिया जाता है. अगस्त 2002 में अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडु ने मसूरी एकेडेमी में दो दिन बिताए थे और इन अधिकारियों को अरुणाचल की संस्कृति की झलक भी दिखलायी थी. अरुणाचल की राज्य सिविल सेवा के चुने गए पिछले दो बैचों को मसूरी मे ही ट्रेनिंग दी गयी है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने भी मसूरी एकेडेमी में राज्य का चिंतन शिविर आयोजित किया और इस ट्रेनिंग प्रक्रिया की जम कर तारीफ की.
गांवों में सक्रिय सेल्प हेल्प ग्रुपों, पद्म पुरस्कृत लोगों से संवाद
सबका साथ कार्यक्रम के तहत तमाम समाजसेवी और पद्म पुरस्कार विजेता भी अपने अनुभव साझा करने मसूरी एकेडेमी में आने लगे हैं. पीएम मोदी ने पद्म पुरस्कारों का स्वरूप बदल दिया है. अब ये बड़े शहरों और बड़े लोगों की दुनिया से निकल कर जमीन पर निस्वर्थ काम करने वाले समाजसेवियों को मिलने लगा है. उनके अनुभवों को जानने के बाद इन प्रशिक्षु अधिकारियों को ये समझने का अवसर मिलने लगा है कि जमीन पर काम करने में उन्हें क्या मुश्किलें आयीं और उन्हें किन मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा और उनसे वो कैसे निबटेंगे. जमीनी स्तर पर ग्रामीणों की उध्यमिता को विकसित करने के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप मेला लगा कर बढावा दिया जा सकता है. इन मेलों मे ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं द्वारा बनायी गयीं चीजें भी दुनिया के सामने बाजार में लायी जा सकती हैं. इन प्रशिक्षु अधिकारियों को ट्रेनिंग के दौरान जमीनी स्तर पर इन्हीं सेल्फ हेल्प ग्रुपों का काम काज समझना होगा. ताकि सरकार द्वारा शुरु की गयी योजनाओं का फायदा सही तरीके से सही लोगों तक पहुंचा सकें. इसके अलावा इन प्रशिक्षु अधिकारियों को कई तरह के सामाजिक और आर्थिक विकास से जुड़ी गतिविधियों से भी जुड़ने को प्रोत्साहित किया जा रहा है. ताकि औपचारिक नियुक्ति के बाद उन्हें ये पता रहे रहे कि एक आम आदमी रोजमर्रा की जिंदगी में किन मुशकिलों का सामना कर रहा है.
सीटीजन-सेंट्रिक बनने की ट्रेनिंग
सिविल सेवा के नए प्रशिक्षु अधिकारियों के लिए एक बदलाव की यात्रा शुरु हो गयी है. ये शुरु होती है भारत के संविधान पर हाथ रख कर ली गयी शपथ से. ये काफी गंभीर काम है जो इन अधिकारियो को ट्रेनिंग सेंटर पहुचते ही ये शपथ लेनी पड़ती है. आम आदमी से जुडे स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार सृजन, शहरों में मूलभूत सुविधाएं, ग्रामीण इलाकों में काम करने के अवसर मिलते हैं. ये तमाम अनुभव इन अधिकारियों को ट्रेनिंग के दौर से ही सीटीजन-सेंट्रिक कार्यों को पहचानने में मदद करेगा और साथ ही उन्हें भी आम आदमी की मुश्किलों को समझ कर उन्हें सुलझाने में सक्षम बनाएगा. खास बात ये है कि पीएम मोदी द्वारा चिह्नित आजादी के अमृत काल में इन प्रशिक्षु अधिकारियों को देश के कोने -कोने में अपनी जिम्मेदारी समझने और संभालने का मौका मिलेगा. जैसा कि पीएम मोदी बार बार कहते हैं कि जब तक मानवीय संवेदनाएं नहीं समझेंगे, ये अधिकारी जनता का दर्द नहीं दूर कर पाएंगे.
फील्ड स्टडी और रिसर्च के कार्यक्रमों से प्रशिक्षण को जोड़ा गया
इन प्रशिक्षु अधिकारियों को देश के गांवों मे चल रहे विकास के कार्यक्रमों को समझने में लगाया जा रहा है. उन्हें मौका दिया जा रहा है कि विभिन्न सरकारी योजनाओं को कैसे क्रियान्वित किया जा रहा है. इसके लिए उन्हें पंचायत के सदस्यों, स्थानीय अधिकारियों, गांव के बुजुर्गों, महिलाओं और युवाओं के साथ संवाद करना अनिवार्य बना दिया गया है. जिले स्तर की इस ट्रेनिंग में इन आईएएस अधिकारियों विभिन्न गांवों की मुश्किलों का जानना होता है और फिर शीर्ष अधिकारियों को उसे दूर करने के लिए सलाह भी देनी पड़ती है. इसलिए पीएम मोदी ने जब इन ट्रेनी अधिकारियों के प्रशिक्षण का सपना देखा तो ये देश में भविष्य़ की सिविल सेवा को मानवीय मूल्यों से भरा और इनोवेटिव बनाने का था. इसे अमली जामा पहनाया जाना शुरु हो चुका है. मसूरी के राष्ट्रीय लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक सेवा संस्थान में पाठ्यक्रम अब सीटीजन सेंट्रिक बनाया जा चुका है जिसमें प्रशिक्षु अधिकारियों की क्षमताओं का निर्माण और भविष्य की समस्याओं से जूझने में सक्षम आईएएस अधिकारी तैयार किए जाएंगे. कठिन पाठ्यक्रम के अलावा प्रशिक्षण की ऐसी व्यवस्था की गयी है कि आने वाले दिनों का अधिकारी हरफनमौला ही होकर निकलेगा. साथ ही एकेडेमी ने समय समय पर उनके कैरियर मे भी उनकी ट्रेनिंग और ज्ञान को बढाने के लिए कई अंतराष्ट्रीय संस्थाओं को जोडा जा चुका है.
मोदी के विजन को साकार करने में जुटा संस्थान
पीएम मोदी का विजन है कि शासन के सामने आ रही नयी नयी चुनौतियों के लिए नए सिविल सर्वेन्ट्स को नये युग के बड़े डेटा, आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस और आधुनिक गेजेटों को हैंडल करने में सक्षम होना होगा. ताकि सरकारी योजनाओं के आखिरी मील तक डिलिवरी तक का काम आसानी से पूरा हो सके. मसूरी के लाल बहादुर शास्त्री एकेडेमी ने इस दिशा में काम किया है और संस्थान में ही एक समर्पित डीजीटैग इलाका स्थापित किया है, जिसमें सामाजिक सुरक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में चल रही योजनाओं को समझा जा सके. डिजिटल गवर्नेंस के लिए कार्नेजी- मेलॉन विश्वविध्यालय और इसी स्तर के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यलयों के सर्टिफआइड कोर्सेस को मसूरी एकेडेमी के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है. साथ ही शिमला का ऑडिट और अकाउंट राष्ट्रीय संस्थान, हैदराबाद की राष्ट्रीय पुलिस अकादमी के सुझावों को भी ट्रेनिंग के पाठ्यक्रम में जोडा गया है.
अकादमी में पहुंचते ही हर प्रशिक्षु अधिकारी के लिए एक बेसलाइन हेल्थ डेटा भी तैयार किया जाने लगा है ताकि वो एक एप्प की मदद से खुद ही उसमें सुधार करने की प्रक्रिया भी शुरु कर दें. इससे ट्रेनिंग में गए अधिकारियों को खासी मदद भी मिल रही है. ये सारे कंटेंट सर्टिफाइड हैं. तमाम अधिकारियों के कॉमन फाउंडेशन कोर्स के हिस्सा बन गए हैं. इनका मूल्यांकन बड़े ही गंभीर तरीके से होता है और हर प्रशिक्षु के लिए एक अनुशासन का पालन करना अनिवार्य हो गया है. अगर ट्रेनिंग में पीछे रहे तो कैरियर में भी पीछे रहने के आसार बन जाएंगे. ट्रेनी अधिकारियों का कॉमन फाउंडेशन कोर्स से शुरु हुआ यही उनकी पूरी ट्रेनिंग के मूल्याकंन पर असर डालेगा. यही मूल्यांकन उनकी सीनियरॉटी की लिस्ट भी तय करेगा न कि सिविल सेवा में पायी गयी उनकी रैंकिंग.
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Tags: IAS Officer, Prime Minister Narendra Modi
FIRST PUBLISHED : January 06, 2023, 16:12 IST
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