अजब गजब

कबाड़ बेच बना कारोबारी, 9 बार हुआ फेल, 15 साल में छोड़ा स्कूल, फिर खड़ी की 1.5 लाख करोड़ की कंपनी

नई दिल्ली. आज हम बात कर रहे हैं वेदांता के चेयरमैन और देश के दिग्गज उद्योगपति अनिल अग्रवाल (Vedanta Founder Anil Agarwal) की. अनिल अग्रवाल सोशल मीडिया पर बेहद एक्टिव रहते हैं और अक्सर प्रेरणा देने वाली कहानियां शेयर करते रहते हैं. वह अपने जीवन के संघर्ष से संबंधित कई बातें बताते रहते हैं. ट्विटर पर अग्रवाल के 1,63,000 से ज्यादा फॉलोअर्स हैं. उन्होंने कई मौकों पर यह बताने की कोशिश की है कि वे बिहार की मिट्टी से कितना लगाव रखते हैं. बिहार की विश्व-प्रसिद्ध डिश लिट्टी-चोखा के तो वे कायल हैं. वह अपनी सफलता का राज दही-चीनी को भी मानते हैं. अनिल अग्रवाल का ऐसा मानना है कि दही-चीनी खाने से उनकी पब्लिक स्पीकिंग में बहुत सुधार आया है.

अनिल अग्रवाल एक ऐसे बिजनेस टायकून हैं, जिनका व्यक्तित्व इतना साधारण है कि लोग उन्हें एक आम आदमी समझने की भूल कर बैठते हैं. 1.5 लाख करोड़ की कंपनी चलाने वाले अनिल अग्रवाल औद्योगिक तौर पर पिछड़े माने जाने वाले राज्य बिहार से आते हैं. फोर्ब्स के मुताबिक उनकी निजी संपत्ति 16,400 करोड़ रुपये है. उनके परिवार की कुल संपत्ति 32000 करोड़ रुपये से अधिक है. अब इनका कारोबार भारत के साथ ही दुनिया के तमाम दूसरे देशों में भी है.

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9 बार हुए फेल
कबाड़ के धंधे से छोटा व्यापार शुरू करके माइंस और मेटल के सबसे बड़े कारोबारी बनने तक के सफर में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. एक-दो नहीं बल्कि अग्रवाल ने कुल 9 अलग-अलग बिजनेस शुरू किया मगर पूरे 9 बार बिजनेस में फेल हुए. तनाव इतना बढ़ा कि उन्‍हें अवसाद भी झेलना पड़ा, लेकिन हार नहीं मानी. आज वह 1.5 लाख करोड़ रुपये की कंपनी संभाल रहे हैं. इतना ही नहीं, उन्‍हें इंग्‍लैंड की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में बिजनेस स्‍टूडेंट को संबोधित करने के लिए भी बुलाया गया.

15 साल की उम्र में छोड़ दिया था स्कूल
पटना में जन्मे और पले-बढ़े अनिल ने मिलर हायर सेकंडरी स्कूल से पढ़ाई की, लेकिन महज 15 साल की उम्र में अपने पिता के बिजनेस के लिए स्कूल छोड़ दिया और पहले पुणे और फिर मुंबई आ गए थे. उन्होंने अपना करियर स्क्रैप डीलर के तौर पर शुरू किया. इसके बाद उन्होंने अपनी पहली कंपनी की स्थापना की जिससे उन्हें अच्छी कमाई हुई. आज देश के टॉप बिजनेसमैन की लिस्ट में शुमार हैं. वे धातु और तेल एवं गैस के कारोबार से जुड़े हैं. अनिल ने 1970 में स्क्रैप मेटल का काम शुरू किया. 1976 में शैमशर स्टेर्लिंग कार्पोरेशन को खरीदा. साल 1990 में उन्होंने कॉपर रिफाइंड का काम शुरू किया. स्टरलाइट इंडस्ट्रीज देश की पहली ऐसी प्राइवेट इंडस्ट्री थी जो कॉपर रिफाइंड का काम करती थी.

Tags: Success Story, Successful business leaders


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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