जेब में नहीं थे ₹200, नहीं दिला पाए पत्नी को जूते, उधार ले शुरू किया काम, अब 25 करोड़ सालाना कमाता है यह बंदा

नई दिल्ली. सफल होने के लिए कड़ी मेहनत तो जरूरी है ही साथ ही आने वाली कठिनाईयां का सामना भी डटकर करने की जरूरत है. हो सकता है कि आपके कड़े प्रण और जी-तोड़ परिश्रम के बावजूद भी आप जो परिणाम चाहते हैं वो न मिले. बिजनेस में तो असफल होने का रिस्क हमेशा ही रहता है. लेकिन, जो असफलता से हताश नहीं होता, मैदान में डटकर खड़ा रहता है और सफल होने की जिद नहीं छोड़ता वह एक दिन जरूर सफल बिजनेसमैन बनता है. फूड स्टार्टअप मोमोमिया के फाउंडर देबाशीष मजूमदार इसका जीता-जागता उदाहरण हैं. कभी 200 रुपये जेब में न होने के कारण पत्नी को जूते न दिला पाने वाले देबाशीष आज हर साल करोड़ों रुपये कमाते हैं.
एक निम्न वर्गीय बंगाली परिवार में जन्में देबाशीष का बचपन से बिजनेसमैन बनने का सपना था. लेकिन, परिवारवाले चाहते थे कि वो पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी पा ले ताकि परिवार का गुजारा ढंग से होने लगे. देबाशीष के दादा अक्सर कहते थे कि इंसान को अपना नाम बनाने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, पैसे बनाने पर नहीं. नाम अमिट रहता है. उनकी बात का देबाशीष पर गहरा असर पड़ा. वे बिजनेसमैन बनने का सपना देखने लगे. लेकिन, घर के हालात ऐसे न थे कि वे कोई बिजनेस शुरू कर सकें.
पहली जॉब में पगार थी 1800 रुपये महीना
देबाशीष पढ़ाई में होशियार थे. उन्हें कॉलेज की पढ़ाई पूरे करते ही बैंक में नौकरी की. उनकी महीने की सैलरी 1800 रुपये थी. पहला वेतन मिलने के बाद उन्होंने मां से नौकरी छोड़नी की इच्छा जताई. मां ने मना कर दिया और मेहनत से जॉब करने की सलाह दी. मां सलाह मान देबाशीष मन लगाकर नौकरी करने लगे. कुछ वर्षों में ही उन्होंने खूब तरक्की की और वे एक बैंक में अच्छे पद पर पहुंच गए. परंतु, उन्होंने कभी भी अपने बिजनसमैन बनने का सपना नहीं छोड़ा. वे बिजनेस शुरू करने को साथ-साथ बचत कर रहे थे.
1 लाख महीने की नौकरी छोड़ शुरू किया बिजनेस
कुछ साल नौकरी करने के बाद उन्होंने जॉब छोड़ दी. जब उन्होंने नौकरी छोड़ी तब उन्हें एक लाख रुपये महीना सैलरी मिल रही थी. अपनी बचत के सारे पैसे लगाकर उन्होंने साल 2016 में एक आईसक्रीम स्टार्टअप शुरू किया. इसमें उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी तो लगाई ही साथ ही कुछ पैसे उधार भी लिए. लेकिन, बदकिस्मती से यह चला नहीं. एक साल में देबाशीष को इसे बंद करना पड़ा. उन्हें कुल 8 लाख रुपये का घाटा हुआ और वे कर्ज तले दब गए.
पत्नी को जूते दिलाने के नहीं बचे पैसे
आईसक्रीम स्टार्टअप फेल होने पर देबाशीष की हालत बहुत खराब हो गई. एक बार उनके पास त्योहार पर नए जूते दिलाने के लिए 200 रुपये तक न थे. पैसों की तंगी के चलते वे अपनी मां का ऑपरेशन भी नहीं करा पाए. ऊपर से कर्ज का बोझ अलग. कुछ दिन उन्होंने ऐसे ही घर पर गुजारे. लेकिन, एक रात उन्होंने अपनी पत्नी और मां के सामने फिर बिजनेस करने की इच्छा जताई. दोनों ने देबाशीष का हौसला बढ़ाया और कुछ करने में उनका साथ देने का भी वादा किया.
ऐसे आया बिजनेस आईडिया
देबाशीष मजूमदार गुवाहाटी के एक रेस्टोरेंट में गए. वहां उन्होंने मोमोज का ऑर्डर दिया. रेस्टोरेंट द्वारा परोसे गए मोमोज की क्वालिटी और स्वाद, दोनों ही उन्हें अच्छे नहीं लगे. तभी उनके मन में मोमोज आउटलेट शुरू करने का विचार आया. मोमोज की बढ़ती लोकप्रियता से उन्हें विश्वास हो गया था कि अगर वे बढिया मोमोज अच्छी क्वालिटी और वैरायटी के साथ देंगे तो खूब बिक्री होगी.
3.5 लाख लगा शुरू किया मोमोमिया
साल 2018 में देबाशीष ने गुवाहाटी में मोमोमिया का पहला आउटलेट खोला. 10 फीसदी सालाना ब्याज पर 3.5 लाख रुपये कर्ज लेकर उन्होंने यह काम शुरू किया. उनकी सेल ठीक हो रही थी. शुरुआती दो साल उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी. साल 2020 आते-आते उनका बिजनेस जम गया. इसी साल मोमोमिया का पहला फ्रेंचाइची आउटलेट खोला गया. इसके बाद तो मोमोमिया ने रॉकेट की रफ्तार से तरक्की की.
100 से ज्यादा आउटलेट, 25 करोड़ सालाना कमाई
आज मोमोमिया के देश भर में 100 से ज्यादा आउटलेट हैं. देबाशीष मोमोमिया की फ्रेंचाइची देते हैं. एक फ्रेंचाइची से उन्हें 2.5 लाख रुपये फ्रेंचाइजी फीस के रूप में मिलते हैं. टोटल सेल पर उन्हें पांच पर्सेंट रॉयल्टी मिलती है. मोमोमिया आउटलेट्स पर आपको मोमोज की ढ़ेर सारी वैरायटी मिल जाएगी. आज देबाशीष की कंपनी मोमोमिया का टर्नओवर 25 करोड़ रुपये सालाना तक पहुंच चुका है. वे अब करीब 400 लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 7, 2023, 19:55 IST
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