कौशिकी, पूनम और सुरों का वो मंजर | – News in Hindi

बिलाशक वे मौजूदा संगीत समय में मंच और महफिलों की महारानी हैं. वे इस धारणा और धुंधलके को ध्वस्त करती हैं कि हमारे इस ज़माने की नौजवान पीढ़ी की शास्त्रीय संगीत में कोई रुचि नहीं है. वे नाउम्मीदी के उस कुहासे को भी छांटती हैं कि नए फैशन परस्त दौर में सुर को साधने की सीख देने वाली गुरू-शिष्य परंपरा का दरिया सूख रहा है. वे एक नज़ीर की तरह खुद को बड़ी ही शाईस्तगी से पेश करती हैं, जहां हौसला, उम्मीद, संस्कार और नवाचार उनकी तेजोमय प्रतिभा में एकमेक होते दिखाई देते हैं. ये हैं कौशिकी चक्रवर्ती. हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विलक्षण गायिका. उनके स्वीकार और लोकप्रियता का आलम ये है कि संगीत के तमाम उम्रदराज़ गुरू-उस्तादों, समीक्षकों और गुणी जानकारों ने मुक्त मन से कौशिकी के कंठ-कौशल तथा स्वर ज्ञान की प्रशंसा की है उससे कहीं ज़्यादा कौशिकी का क्रेज़ उनके युवाओं में है. इस सच की तस्दीक हाल ही भोपाल में आयोजित एक सभा बनी.
कौशिकी के आने की सुर्खी उनमें इस कदर फैली कि ‘कॉन्सर्ट’ के तयशुदा समय से बहुत पहले इन संगीत प्रेमियों ने बैठक में अपनी जगह बना ली. न सेल फोन की बेचैनी वहां थी और न ही क्लासिकल म्यूजिक की रागदारी से कोई परहेज. इस सम्मोहन की वजह था कौशिकी का कनेक्ट. जितना मीठा, तरल-सरल और भावभीना उनका संगीत है, उतना ही हार्दिक प्रस्तुतिकरण का मुहावरा. श्रोताओं से संवाद और सम्प्रेषण. चालीस पार की उम्र में चमक-दमक भरी शख्सियत और अनुभव की गंभीरता को बखूबी साध लेने की कला उनके पास है. मीडिया के एक सवाल पर बड़ी ही विनम्रता से कौशिकी ने कहा- मैं टीनेजर की मां हूं इसलिए जानती हूं उसकी पसंद-नापसंद क्या है? मेरा मानना है कि आज के टीनेजर्स में बहुत काबिलियत और संभावना है. इस प्रकार से वे युवाओं को एक ज़रूरी हिदायत देती हैं – ‘’अपनी मौलिकता को पहचानो और वो करो, जो नया और अनूठा हो. भीड़ का हिस्सा मत बनो.‘’ यकीनन, कौशिकी ने विरासत से संगीत के बेशकीमती सबक हासिल किये लेकिन अपने फ़न में ‘खुद’ को साबित किया.
उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ ने पटियाला घराने की परंपरा को जिस शिखर पर पहुंचाया, उसी ऊंचाई पर अपने पिता पं. अजय चक्रवर्ती से उनकी इस काबिल बेटी ने परचम को थामा. अपने भीतर संचित इस सुरीली संपदा को निखारने वे पं. ज्ञानप्रकाश घोष की शरण में गयीं. स्वर, शब्द, राग की बढ़त, बंदिश में विचार, रस-भाव का विस्तार, रुचि और रंजकता के आयाम और प्रस्तुति का ढंग — ये वे चुनौतियां और पक्ष हैं जिनके प्रति बहुत आसक्त होकर कौशिकी ने अभ्यास की राहें तय कीं. यही कारण है कि वे आज मंच की महारानी हैं. उनके प्रशंसकों की संख्या हजारों-लाखों में है. जितनी तल्लीनता और समर्पण से राग संगीत को निभाती हैं उतना ही सुरीला और मुक्त मधुर विन्यास लिए वे ठुमरी, दादरा, चैती, कजरी में पेश आती हैं. भक्ति पदों में भी उनका भाव स्वर अध्यात्म की गहराईयों को छूता है तो सुगम संगीत को गाते हुए शब्द और संगीत की उनकी समझ पर फक्र होता है.
इन कसीदों के बीच कौशिकी की उस सभा की मिसाल लेते हैं जो शरद ‘पूनम’ की रात सजी. ‘’काश हमारी किस्मत में ऐसी भी कोई शाम आए…. इक चांद फ़लक पर निकला हो, इक चांद सर-ए-बाम आ जाए.‘’ ये ख़याल हकीकत बना. भोपाल स्थित मानव संग्रहालय के आवृत्ति परिसर में इस नज़ारे के चश्मदीद बने बेशुमार संगीत प्रेमी. मौका था ‘पूनम’ का. सुरों की चांदनी बिखेरने इस महफिल के मंच पर नमूदार थी मधुर कंठ की धनी कौशिकी चक्रवर्ती. आसमान पर चांद अपना सफ़र करता रहा और झील किनारे श्यामला पहाड़ी की यह पुरनम शाम आहिस्ता-आहिस्ता सुरीली बंदिशों का हाथ थामें दूर तक चलती चली गयी. मौक़ा भी था और दस्तूर भी, लिहाज़ा कौशिकी ने भी गायन के लिए चुना अपना पसंदीदा राग –विहाग.
संगीत के कद्रदानों के लिए बेशक ‘पूनम’ का प्रेम छलकाता प्याला अमृत से कम नहीं था. इस अनूठी महफ़िल के सूत्रधार और उद्घोषक होने के नाते मैंने चांद, चांदनी, मौसिकी और कौशिकी की शान में जैसे ही कसीदा पढ़ा, तालियों की गूंज वादियों में फैल गयी. गायन शुरू करने से पहले कौशिकी ने भोपाल की अपनी पिछली प्रस्तुतियों को याद किया. कहा कि यह शहर मेरी संगीत यात्रा में प्रेरणा रहा है. वे हज़ारों युवा भी जो मेरी राग संगीत की प्रस्तुतियों को गहरी रुचि के साथ सुनते-गुनते रहे हैं. यही लगाव आज ‘पूनम’ में भी दिखाई दिया. राग विहाग के चयन पर कौशिकी ने कहा इसकी बंदिश में चांद खोजना थोड़ा मुश्किल है लेकिन आसमान पर चांद निहारते हुए इस राग के सुरीले उजाले में मगन होने का अहसास ही कुछ अलहदा था. छोटा सा आलाप लेने के बाद कौशिकी सीधे एक ताल के बड़े ख्याल पर केन्द्रित हुई. विलंबित लय पर बढ़त बनाते हुए उन्होंने अपनी कल्पना की सुरीली उड़ान भरी. मुराद अली की सारंगी, यशवंत का तबला और मिलिन्द कुलकर्णी की हारमोनियम पर संगत कौशिकी के मीठे-मदिर कंठ की रवानगी में रस घोलती रही. सुरों का बोल बनाव और गमकदार तानों के साथ उसे खूबसूरत मुकामों पर ले जाते हुए वे कहती हैं कि मेरे गुरु-उस्ताद ने क्या ही दुर्लभ रचनाएं की हैं.
पटियाला घराने की खूबियों को बचपन से अपने गले में साध रही कौशिकी का राग रंग जब परवान चढ़ा तो बोल में सरगम, सरगम में तान और मन को रिझाती मुरकियों पर सुनने वाले निहाल हो उठे. लेकिन कौशिकी के लिए गुरु पं. ज्ञानप्रकाश घोष की बंदिशों के व्याकरण और शब्दों के भावों को गाना जितना आनंद का विषय है उतना ही चुनौती से भरा. तार सप्तक की ऊंची उड़ानों तक स्वर पर नियंत्रण उनकी तालीम और रियाज़ की गवाही देता है.
जाड़े की गुलाबी दस्तक के साथ ‘पूनम’ की इस दिलकश शाम का रंग भी भीगा था. कौशिकी की बहुमुखी प्रतिभा ने उन्हें हिंदुस्तानी संगीत के पारंपरिक क्षेत्र के बाहर कई परियोजनाओं का योग्य हिस्सा बनने के योग्य बनाया है. उन्होंने फिल्म ‘वॉटर’ के लिए संगीत निर्देशक ए.आर. रहमान के लिए गाना गाया है. उन्होंने एक म्यूजि़क एल्बम में पंडित भीमसेन जोशी और गान सरस्वती राष्ट्रगान के समूह में स्वर दिया. जिसके निर्माता ए.आर. रहमान थे. कौशिकी ने चैंपलिन, चित्रांगदा, तीन कन्या, जानी देखा होबे, पारापार, शून्यो अंका, हद माझारे, लोराई, राजकहिनी, गोयनार बख्शो बंगाली में एक जे छिल्लो राजा, पंच अध्याय (संगीत निर्देशक शांतनु मोइत्रा के लिए) हिंदी में गुलाब गैंग, तमिल में रामानुजन और थिरुमानम एन्न्नुम निकाह जैसे कई फिल्म साउंडट्रैक में अपनी आवाज दी है. लोकप्रिय संगीत कार्यक्रम एमटीवी कोक स्टूडियो में एक मूल गीत के उनके प्रदर्शन ने दुनिया भर में उनके कई नए प्रशंसकों को जीत लिया है.
कई प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए हैं उन्होंने जिनमें 2012 में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार (भारत सरकार द्वारा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार), 2005 में एल्बम “प्योर” के लिए उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए बीबीसी पुरस्कार शामिल हैं. 2012 में उनके एल्बम “यात्रा 2” के लिए जीआईएमए पुरस्कार, 2013 में एल्बम “यात्रा 2” के लिए मिर्ची संगीत पुरस्कार, 2013 में आदित्य बिड़ला कला किरण पुरस्कार और 2015 में बॉबी सेठी संगीत पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया. उन्हें एबीपी आनंद द्वारा “शेरा बंगाली सम्मान 2017” भी मिला है. पश्चिम बंगाल की माननीय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा “संगीत महा सम्मान पुरस्कार और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार ने कौशिकी की यशगामी यात्रा को गौरव प्रदान किया. आठ बरस पहले कौशिकी ने खुद की पहल पर महिला भारतीय शास्त्रीय संगीत समूह ‘सखी’ का गठन किया, जिसमें भारतीय गायन, वाद्य, ताल और कथक नृत्य शामिल है. हाल ही वे एक नयी सौगात के साथ प्रस्तुत होंगी. ‘कारवॉं’ नाम से उनका नया अलबम जो आ रहा है.
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