नोएडा टू वसुंधरा @18 KM…30 मिनट का सफर 3 घंटे में, कई नरक द्वार का दर्शन | – News in Hindi

आम दिन की तरह 31 जुलाई को भी मैं अपने ऑफिस से घर के लिए रात 9.30 बजे निकला. लंबे इंतजार के बाद नोएडा में बारिश हुई थी सो गर्मी से राहत मिलने की खुशी तो थी, लेकिन बारिश के बाद दिल्ली एनसीआर में ट्रैफिक का क्या हाल होता है, इसकी कल्पना करके मन में एक अंदेशा ने भी जन्म लेना शुरू कर दिया था. बारिश अब भी जारी थी, हालांकि बूंदें थोड़ी कमजोर जरूर हो रही थीं. गूगल मैप में जब घर तक का ट्रैफिक चेक दिया तो उसमें 55 मिनट दिखा रहा था. साधारणतया इस वक्त ऑफिस से घर पहुंचने में मुझे करीब 30 मिनट लगता है. ईश्वर का नाम लेकर ऑफिस से निकला तो मेन रोड पर ही जाम लगा था. ऑफिस से निकलने में ही करीब 15 मिनट लग गए. अब मेरी कार नोएडा के विश्वकर्मा रोड पर भाग रही थी. मन में एक डर ये भी था कि जितना समय गूगल मैप में दिखा रहा है उससे ज्यादा समय घर पहुंचने में लगेगा. दिमाग में आशंका उमड़ घुमड़ रहे थे और तभी मैं एक ऐसे अंडरपास के पास पहुंचा जिसकी काफी गहराई है. वहां पर ट्रैफिक काफी समय के लिए जाम हो गया.
बारिश की बूंदें रुकने का नाम नहीं ले रही थीं. अचानक जब मैं चारों तरफ देखा तो मन में एक अजीब सा डर समाने लगा कि अगर बारिश तेज होती है तो अंडरपास में पानी भरता ही जाएगा और फिर निकलने का तो कोई रास्ता भी नहीं दिख रहा है. पानी भी इतना भरा था कि कुछ स्कूटर मुझे पानी में तैरते दिखे. जो कोई अपना टू व्हीलर उस पानी में खींच नहीं पाया होगा वो छोड़कर आगे निकल गया होगा. रास्ते में कुछ गाड़ियां खराब थीं, तो कुछ पानी में फंसी थीं. सभी लोगों के चेहरे पर बेबसी दिख साफ दिख रही थी. सबको मालूम था कि अगर जरूरत पड़ी तो यहां मदद भी नहीं मिलने वाली. डरे, सहमे लोगों में मैं भी था. अभी कुछ घंटे पहले बारिश होने पर खुश हो रहा था, लेकिन अब वही बारिश राहत की जगह आफत बनती दिख रही थी.
गुस्सा, बेबसी और कोचिंग सेंटर की घटना
मन गुस्सा से भर रहा था. कुछ ऐसा ही गुस्सा उस खबर को सुनने के बाद आया था जब दिल्ली के ओल्ड राजेद्र नगर में 3 छात्र, छात्राओं की मौत बेंसमेंट में पानी भर जाने की वजह से हो गई थी. तब उन छात्रों को भी नहीं लगा होगा कि जिस बेसमेंट की लाइब्रेरी में वो पढ़ रहे हैं वहां बारिश का पानी इतनी मात्रा में आ जाएगा कि निकलने का भी वक्त नहीं मिलेगा, लेकिन जो दिल्ली में हुआ वो कहीं भी हो सकता है. अब तो मुझे लगता है कि ऐसी ही घटनाएं सड़कों पर या अंडरपास में होंगी. याद है न 26 जुलाई 2008 को मुंबई में बारिश ने कैसे कहर मचाया था. जिस तरह बारिश का पैटर्न बदल रहा है, उससे शहर का शहर ‘पानी के बारुद’ पर बैठा है. यह बारुद कब फट जाए कहना मुश्किल है. हम पर जब आफत आती है, तब हम जागते हैं, तब तक तो खेल हो जाता है.
अब पानी का रेला
खेल का खेला अब पानी का रेला बनता जा रहा है. मैं अपनी बात को और पुख्ता करने के लिए उसी रात के सफर को आगे ले जाना चाहूंगा. किसी तरह उस अंडरपास से तो मैं बाहर निकल गया लेकिन ट्रैफिक कछुआ गति से आगे बढ़ रही थी. तभी मुझे एक वैकल्पिक रास्ता दिखा तो मैंने अपनी कार उधर मोड़ दी. तब तक मेरा गूगल मैप भी जवाब दे गया. रात के अंधेरे के बीच मैं गाड़ी आगे बढ़ाता रहा. कुछ किलोमीटर तक मेरी कार आगे पहुंची तो रोड को देखकर मेरा माथा ठनक गया. ये खोड़ा कॉलनी के पास का रोड था, जहां कहीं घुटने तो कहीं कमर तक पानी भरा था.अब मेरे सामने आगे कुंआ तो पीछे खाई वाली स्थिति थी. आगे जाता हूं तो पानी में कार के फंसने की पूरी संभावना है और पीछे जाता हूं तो ट्रैफिक में फंसना तय है. मैं किसी तरह हिम्मत जुटाकर कुआं यानी रोड पर भरे पानी की तरफ बढ़ जाता हूं. करीब दो किलोमीटर तक का रास्ता भगवान का नाम लेकर तय किया, क्योंकि इस दौरान मेरी कार बंद भी हो सकती थी और किसी गड्ढे में फंस भी सकती थी.
10-15 मिनट का वह पल…
यकीन मानिए 10-15 मिनट तक आंखों के सामने कुछ नहीं था. मैं बदहवास कार आगे बढ़ा रहा था. बस खुशकिस्मती इतनी रही कि ना तो मेरी कार पानी में फंसी और ना ही कोई पानी के अंदर छुपे किसी गड्ढे से वास्ता पड़ा. 30 मिनट का सफर 3 घंटे में पूरा करके घर पहुंचा तो जान में जान आई. ये तीन घंटे भी इसलिए कि मैंने बीच में वैकल्पिक रास्ते को लिया जो किसी नरक से कम नहीं था, लेकिन विडंबना देखिए कि उस नरक के रास्ते मैं घर थोड़ा जल्दी पहुंच गया वरना मेरे कई साथी और हजारों लोग 18-20 का ये सफर 4-5 घंटे में किया. ये स्थिति सिर्फ एक रोड की नहीं थी, बल्कि देश की राजधानी और उसके आसपास के शहरों में कई जगह ट्रैफिक का कुछ ऐसा ही हाल था. आप किसी भी शहर में चले जाओ, रोड चमचमाती मिल जाएं लेकिन जल जमाव से छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं.
उपाय है तो रोडमैप नहीं, रोडमैप है तो एक्शन नहीं
सरकार चाहे कोई हो, मेयर चाहे किसी पार्टी का हो. जल जमाव से निकलने का उपाय किसी के पास नहीं. अगर उपाय हैं तो रोडमैप नहीं, अगर रोडमैप है तो एक्शन नहीं. देश के हरेक शहर का नगरपालिका या नगर निगम भ्रष्टाचार का केंद्र बन चुका है. खबरों में तो सुनने को मिलेगा कि मॉनसून से पहले नालों की सफाई हो रही है लेकिन ये सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह गया है.
असल मे ना तो नालों की सफाई होती है और ना ही प्रशासन के पास इस बात की तैयारी होती है कि ज्यादा बारिश होने पर जल जमाव से कैसे मुक्ति दिलाएंगे? जैसे बारिश होना भगवान भरोसे है वैसे ही अगर ज्यादा बारिश होने पर आफत कितनी बड़ी होगी इससे बचने का रास्ता कम से कम प्रशासनों के पास नहीं होते. मॉनसून के आने के बाद शहर नर्क में तब्दील हो जाते हैं और हम सब इस नर्क में जीने को मजबूर हैं.
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा?
रोड पर आए तो ट्रैफिक जाम जैसा
बेसमेंट में समाए तो काल जैसा
धर्मेंद्र कुमार.एक्जीक्यूटिव एडिटर
लेखक नेटवर्क 18 समूह में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर के तौर पर कार्यरत हैं. पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट मास कम्युनिकेशन. स्टार न्यूज़, आजतक, ज़ी न्यूज़, रिपब्लिक भारत में डेढ़ दशक से ज़्यादा का अनुभव. भारतीय राजनीति के साथ खेल और बिज़नेस की खबरों पर भी बारीक नज़र रखने वाले बेबाक़ पत्रकार.
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