अजब गजब

चपरासी बनकर की जॉब, पत्नी के साथ गोदाम में रहे, फिर बना डाली अरबों की कंपनी, लगाती है फेविकोल का जोड़!

हाइलाइट्स

बलवंत पारेख को भारत में फेविकोल मैन के नाम से जाना जाता है.
लॉ की पढ़ाई करने के बाद टिम्बर बिजनेस से जुड़ी कंपनी में काम किया.
1959 में पिडिलाइट की स्थापना करने के बाद फेविकोल को प्रसिद्धि मिली.

Balvant Parekh Story: फेविकोल का जोड़ है, टूटेगा नहीं. यह लाइन आपने टीवी पर हजारों बार सुनी होगी. दरअसल यह फेविकोल की टैगलाइन है, जो हर विज्ञापन के साथ आती है और लोगों के दिमाग में ब्रांड की छवि को और मजबूत बनाने का काम करती है. आज की कहानी भी उसी शख्स की है, जिसने लोगों के दिलों को अपने ब्रांड के साथ इस कद्र जोड़ा कि टूट ही नहीं सकता. बिलकुल फेविकोल के जोड़ जैसा ही रिश्ता है इस कंपनी और ग्राहकों का. फर्नीचर का काम करने वालों की पहली पसंद फेविकोल एडहेसिव ही है. इस एडहेसिव का इस्तेमाल आमतौर पर लकड़ी, प्लाईवुड, लैमिनेट्स और अन्य सामग्रियों को जोड़ने के लिए किया जाता है. फेविकोल बनाने वाली कंपनी का नाम है पिडिलाइट इंडस्ट्रीज. यह कंपनी केवल भारत ही नहीं, दुनियाभर में मशहूर हो चुकी है. इसका पूरा श्रेय जाता है इसके फाउंडर बलवंतराय कल्याणजी पारेख (Balvantray Kalyanji Parekh) को. वकालत की पढ़ाई करने के बाद भी उनके अंदर का बिजनेसमैन जिंदा रहा और हजारों करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी.

कहते हैं सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता. कड़ी मेहनत और संघर्ष से ही सक्सेस पाई जा सकती है. देश-विदेश के जाने-माने दौलतमंद शख्सियतों ने यह साबित करके दिखाया है. बलवंत पारेख कभी एक कंपनी में चपरासी थे, लेकिन बाद में अपनी कंपनी शुरू करके अरबों की दौलत बनाई. उन्हें भारत में फेविकोल मैन के नाम से जाना जाता है. उन्होंने तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए सफलता हासिल की और भारतीय उद्योग जगत में पहचान बनाई.

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पढ़ाई के दौरान कूदे आजादी की लड़ाई में
बलवंतराय कल्याणजी पारेख की जिंदगी का सफर गुजरात के छोटे से शहर महुवा से शुरू हुआ. कम उम्र में ही उनका झुकाव बिजनेस की तरफ होने लगा, लेकिन पारिवारिक दबाव के कारण उन्हें सरकारी लॉ कॉलेज में कानून की डिग्री हासिल करने के लिए मुंबई आना पड़ा.

हालांकि, पढ़ाई के दौरान वे भारत छोड़ो आंदोलन महात्मा गांधी से प्रभावित हुए और पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए. इस दौरान उन्होंने कई आंदोलनों में हिस्सा लिया और विभिन्न सामाजिक पहलों में सक्रिय रूप से भाग लेने के बाद पढ़ाई पूरी करके मुंबई से लौट आए.

लॉ की डिग्री के बाद भी नहीं लगा नौकरी में मन
लॉ की डिग्री हासिल करने और बार काउंसिल एग्जाम पास करने के बावजूद, बलवंत पारेख का मन व्यवसाय में लगा रहा. बिजनेसमैन बनने के अपने इस सपने को पूरा करने के लिए वह मुंबई के एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करने लगे. इसके बाद उन्होंने टिम्बर का काम करने वाली कंपनी के दफ्तर में चपरासी का काम किया. इस दौरान बलवंत पारेख अपनी पत्नी के साथ ऑफिस के गोदाम में रहा करते थे.

1959 में शुरू की फेविकोल बनाने वाली कंपनी
1954 में, वह मुंबई में पारेख डाइकेम इंडस्ट्रीज में शामिल हो गए, जहां उन्होंने और उनके भाई सुशील पारेख ने कपड़ा छपाई के लिए पिगमेंट इमल्शन बनाने का काम शुरू किया. आखिरकार बलवंत पारेख ने 1959 में पिडिलाइट की स्थापना की. जिसने फेविकोल जैसे प्रोडक्ट बनाया जो भारत में बेहद मशहूर ब्रांड बना. फेविकोल ने मार्केट में मानो क्रांति-सी ला दी. इस समय फेविकोल की मार्केटिंग दुनिया के 54 देशों में होती है और इसका इस्तेमाल कारपेंटर, इंजीनियर, शिल्पी, उद्योग जगत से लेकर आम लोग भी करते हैं. डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में पिडिलाइट इंडस्ट्रीज का मार्केट कैप लगभग 1.24 खरब रुपये है.

Tags: Brand, Business news in hindi, High net worth individuals, Success Story


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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