Supreme Court News: …बच्चे को मौत की सजा कैसे दी जा सकती है? 26 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के अबॉर्शन पर क्या बोले CJI चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट एक विवाहित महिला की 26 हफ्ते की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग वाली याचिका पर चीफ जस्टिस डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म दिया जा सकता है. गर्भावस्था समाप्त करने की स्थिति में बच्चे के हार्ट को बंद (मारना) होगा. बच्चा भले ही गर्भ में है, लेकिन उसके भी अधिकार हैं. चीफ जस्टिस की बेंच कल यानी शुक्रवार को भी मामले की सुनवाई करेगा.
सीजेआई ने कहा कि हमें अजन्मे बच्चे के अधिकारों को संतुलित करना होगा. बेशक मां की स्वायत्तता की जीत होती है, लेकिन यहां बच्चे के लिए कोई भी पेश नहीं हो रहा है. इसलिए हमें देखना होगा कि हम बच्चे के अधिकारों को कैसे संतुलित कर सकते हैं? तथ्य यह है कि यह सिर्फ एक भ्रूण नहीं है. यह एक जीवित वाइबल भ्रूण है और यदि इसे जन्म दिया जाए तो यह बाहर भी जीवित रह सकता है. यदि अभी प्रसव कराया गया तो इसमें गंभीर चिकित्सीय समस्याएं होंगी तो फिर 2 सप्ताह और इंतजार क्यों न किया जाए? कोर्ट ने कहा कि महिला को बच्चे को रखने की ज़रूरत नहीं है. आपके मुताबिक, बच्चे को मौत की सजा देना ही एकमात्र विकल्प है, लेकिन न्यायिक आदेश के तहत बच्चे को मौत की सजा कैसे दी जा सकती है?
मुख्य न्यायाधीश चंंद्रचूड़ ने कहा कि गर्भवती महिला कहती है कि वह बच्चा नहीं चाहती है और राज्य बच्चे को अपने कब्जे में ले सकता है और उसे गोद लेने के लिए सौंप जा सकता है, तो फिर वह बच्चे को कुछ और हफ्तों तक वह कोख में क्यों नहीं रख सकती और फिर सी सेक्शन (ऑपरेशन) के माध्यम से प्रसव करा सकती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि बच्चा एक वाइबल बच्चा है. एम्स के सामने एक गंभीर नैतिक दुविधा थी. अगर भ्रूण में बच्चे का हृदय बंद नहीं किया जाता तो वह जीवित पैदा होगा.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये नाबालिग पर हिंसा या यौन हिंसा का मामला नहीं है. ये एक शादीशुदा महिला है, उसके पहले 2 बच्चे हैं. आपने 26 हफ्ते तक इंतजार कैसे किया? आप चाहते हैं कि हम दिल की धड़कन रोकने के लिए एम्स को निर्देशित करें? अगर अभी डिलीवरी होती है तो बच्चे में असामान्यताएं होंगी. आनुवंशिक समस्याओं के कारण नहीं, बल्कि समय से पहले डिलीवरी के कारण.
कैसे सीजेआई के पास आया केस?
इससे पहले मामले में दो जजों की पीठ का फैसला बंटा हुआ आया था, जिसके बाद मामले को सीजेआई के पास भेज दिया गया था. जस्टिस हिमा कोहली का कहना था कि उनकी न्यायिक अंतरात्मा गर्भावस्था में महिला को अबॉर्शन करने की अनुमति नहीं दे रही है. वहीं, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इस पर असहमति जताई और कहा कि हमें महिला के फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट को एम्स के डॉक्टरों के पैनल को महिला का गर्भपात कराने का आदेश दिया था. हालांकि, बाद में ASG ऐश्वर्या भाटी की दलीलों के बाद कोर्ट ने महिला के गर्भपात की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. उन्होंने कोर्ट को बताया था कि डॉक्टरों के पैनल ने भ्रूण के जन्म लेने की आशंका जताई है.
क्या थी गर्भवती महिला की दलील
बता दें कि दिल्ली निवासी महिला ने यह दावा करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि उसे अपनी तीसरी गर्भावस्था के बारे में पता नहीं था, क्योंकि वह लैक्टेशनल एमेनोरिया से पीड़ित थी. उन्होंने कहा कि उनकी दो डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन का इलाज चल रहा था. उनका सबसे बड़ा बच्चा चार साल का है और सबसे छोटा बच्चा मुश्किल से एक साल का है. उन्होंने कहा था कि वह आर्थिक कारणों से भी गर्भपात करवाना चाहते हैं.
.
Tags: Abortion, Supreme Court
FIRST PUBLISHED : October 12, 2023, 15:15 IST
Source link