6 tunnels are being built by ripping Vindhyachal mountain | भोपाल के पास घाट सेक्शन में 80 km की रफ्तार से दौड़ेंगी ट्रेन, 26.50 KM का नया रेलवे ट्रैक तैयार

नर्मदापुरम5 मिनट पहले
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मध्यप्रदेश में भारतीय रेलवे ने इतिहास रच दिया है। नर्मदापुरम में बुधनी से बरखेड़ा के बीच 26.50 किमी रेलवे ट्रैक का काम अंतिम चरण में है। यह ट्रैक रातापानी अभयारण्य से होकर गुजरता है। रेलवे ने यहां विंध्याचल पर्वत को काटकर 6 टनल बनाई हैं। फिलहाल सिंगल ट्रैक है। चौथी लाइन का प्रस्ताव होने पर दूसरा ट्रैक भी डाला जाएगा। सुरंगों में से ट्रेनें 80 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ेगी।
ये ट्रैक नई दिल्ली-मुंबई-चेन्नई मार्ग पर पड़ता हैं। इसमें कट एंड कवर टेक्नीक का प्रयोग किया गया है। इटारसी से भोपाल की ओर जाने वाली ट्रेनें इस सुरक्षा वाली कॉन्क्रीट की टनल से गुजरेंगी। तीन सुरंगों का काम अंतिम चरण में है। इस साल के अंत तक ट्रैक का काम पूरा कर लिया जाएगा।
26.5 किमी के ट्रैक पर दो दिन पहले लोको (इंजन) का पहला ट्रायल किया गया। करीब 50 किमी की रफ्तार से सिंगल लोको इस पर दौड़ा। दो बार लोको ट्रायल के बाद कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी (सीएसआर) इसकी सेफ्टी और गुणवत्ता को परखेंगे। सीएसआर की हरी झंडी के बाद इन सुरंगों से ट्रेनें दौड़ना शुरू हो जाएगी।
पहला ट्रायल पूरा होने के बाद दैनिक भास्कर की टीम नर्मदापुरम से 12 किमी दूर स्थित तालपुरा पहुंची। यहां से आगे 26.5 किमी के रास्ते में रेलवे ने 6 सुरंग सुरंग बनाई है।

टनल नंबर 5 के अंदर ट्रैक और ओएचई लाइन बिछ चुकी है। टनल की इतनी चौड़ाई है कि डबल ट्रैक बिछ सकते हैं। टनल के 100 मीटर अंदर कर्व है।
26.50 किलोमीटर रेल लाइन में 6 सुरंगें
दैनिक भास्कर की टीम नर्मदापुरम से 12 किमी दूर तालपुरा पहुंची। यहीं घाटी के पास रेलवे ने पहली कट एंड कवर सुरंग बनाई गई है। विंध्याचल पर्वत पर दुर्गम रास्ते और घने जंगल को काटकर सुरंगों का निर्माण किया है। इसके आगे का सफर पैदल की तय करना था। बरखेड़ा से बुधनी के बीच 26.50 किलोमीटर रेल लाइन में 6 सुरंगें बनाई गई हैं। इस ट्रैक पर एक कट एंड कवर, 13 प्रमुख पुल और 49 छोटे पुल बनाए गए हैं।
टनल खोदने और ट्रैक बिछाने का कार्य पिछले चार साल से चल रहा है। इनमें 6 टनल और कट एंड कवर बन चुकी है, जिसमें ट्रैक और ओएचई लाइन भी बिछ चुकी है। अब फिनिशिंग फेज में काम चल रहा है। ट्रैक, ओएचई टेस्टिंग, स्पीड टेस्टिंग की जा रही है।
ट्रैक पर टनल और ट्रैक बिछाने के अलावा वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए रेलवे ट्रैक के दोनों तरफ 2 मीटर ऊंची बाउंड्री (फेंसिंग) बनाई जा रही है। टनल के आसपास छोटे-छोटे डैम बनाए गए हैं, जिससे वन्य प्राणी पानी पी सकेंगे। आरबीएनएल (रेल विकास निगम) की देखरेख में आंध्र प्रदेश की मैक्स इंफ्रा लिमिटेड कंपनी ने सुरंगों का निर्माण किया है।

टनल-4 को चोखा टनल भी कहते हैं। यह पुराने रेलवे ट्रैक पर बनी टनल-4 के बाजू में ही बनाई गई है। पुरानी टनल का निर्माण 1953 में हुआ। इसके माध्यम से ट्रेन भोपाल की ओर जाती है।
पश्चिम-मध्य रेलवे जोन में डबल ट्रैक वाली पहली सुरंगें
छह में से टनल चार और टनल 5 मध्यप्रदेश की पहली सुरंग है, जिसमें से एक साथ दो ट्रेनें निकल सकेंगी। पश्चिम मध्य रेलवे जोन में डबल ट्रैक वाली पहली सुरंग हैं। इन्हें भविष्य के हिसाब से निर्माण किया गया है। अगर चौथी लाइन डालने की प्लानिंग होती है, तो आसानी से अतिरिक्त ट्रैक डल जाएगा। अभी तक जो भी सुरंगें बनीं, वो केवल सिंगल ट्रैक वाली है।
सुरंग में BLT तकनीकी ट्रैक का उपयोग
सुरंगों में बीएलटी (ब्लास्ट लैस ट्रैक) तकनीकी से डबल ट्रैक (लाइन) डाली गई है। टनल में स्लीपाट भी नहीं लगाए गए हैं। कॉन्क्रीट के फ्लोर पर ही ट्रैक डाले गए हैं। ऐसा ट्रैक अमूमन प्लेटफाॅर्म पर रहते हैं। आमतौर पर रेलवे में ऐसे बड़े क्रॉस-सेक्शन की रेल सुरंगों का निर्माण नहीं करता। 534 मीटर करवेचर में घोड़े की नाल के आकार की सुरंग है।

थर्ड लाइन ट्रैक पर पहाड़ काटकर कट एंड कवर बनाया गया है। टनल से पहले इसके अंदर ट्रेन निकलेगी। कट एंड कवर के ऊपर निर्माण कार्य जारी है। ओएचई लाइन अंदर बिछना है।
वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए डैम व बाउंड्री
बरखेड़ा से बुधनी तक घाट सेक्शन में तीसरी लाइन रातापानी अभयारण्य से गुजरेगी। यहां वन्य प्राणी पाए जाते हैं। वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए बाउंड्री (फेंसिंग) बनाई जा रही है। इससे रेलवे ट्रैक पर वन्य प्राणियों की माैत की संभावना कम हाेगी। घने जंगलाें के बीच निकले रेलवे ट्रैक पर वन्य प्राणी हादसे का शिकार हाेते हैं।
इसे देखते हुए रेलवे ट्रैक के उन स्थानों पर फेंसिंग बनवा रहा है, जहां वन्य प्राणी ट्रैक पार कर सकते हैं। करीब 3 किमी क्षेत्र में 2 मीटर ऊंची जालीदार बाउंड्री बनाने का काम जारी है। टनल के आसपास वन्य प्राणियों के लिए डैम भी बनाए गए हैं, जिससे वे यहां पानी पी सकें।

कट एंड कवर से करीब एक किमी दूर पहली टनल बनाई गई है। इस ट्रैक की सबसे लंबी टनल है। एक छोर से दूसरे छोर को आसानी से देख सकते हैं।
टनल की स्थिति
- टनल 1 : बुधनी तालपुरा के पास बन रही है। टी-1 बुधनी-बरखेड़ा के बीच सबसे बड़ी है। लंबाई 1108 मीटर है। ये बनकर तैयार है। ड्रैनेज लाइन के लिए कॉन्क्रीट वर्क जारी है।
- टनल 2 : मिडघाट के पास बनाई जा रही है। 230 मीटर लंबी टनल बनकर तैयार है।
- टनल 3 : गडरिया नाले के पास मिडघाट से आगे बनाई गई है। लंबाई 220 मीटर है।
- टनल 4 : चौका स्टेशन के पास बनाई गई है। 134 मीटर लंबाई की है। डबल ट्रैक की जगह है। एक ट्रैक डाल गया है। इसमें भी काम पूरा हो चुका है। फिनिशिंग जारी है।
- टनल 5 : टी-5 एकमात्र टनल है, जिसमें कर्व है। टनल में प्रवेश करते ही 100 मीटर बाद कर्व (घुमाव) है। टनल-5 चाैका स्टेशन से भाेपाल की ओर है। इसकी लंबाई 534 (550) मीटर लंबाई है। डबल ट्रैक की चौड़ाई है। इसमें एनएटीएम (न्यू आस्ट्रेलियन टेक्नोलॉजी तकनीक) अपनाई गई है। इस सुरंग में हल्का सा घुमाव है। अंधेरे को दूर करने के लिए लाइटिंग कार्य जारी है।
- टनल 6: कट एंड कवर टनल 800 मीटर लंबी, 8 मीटर चौड़ी और 10 मीटर ऊंची है। 40 मीटर ऊंचे पहाड़ को चीरकर इसलिए बनाई है, ताकि चट्टान या पत्थर धंसकर ट्रेनों पर न गिरें।

थर्ड लाइन ट्रैक बनाने के साथ ही वन अभयारण्य क्षेत्र होने से ट्रैक किनारे 6,7 फीट जालियां लगाई गई हैं, ताकि वन प्राणी और वन जीव ट्रेन की चपेट में आने से बच सकें।
कट एंड कवर टनल में कंपन से हादसे का खतरा टलेगा
छठी टनल कट एंड कवर टनल 800 मीटर लंबी, 8 मीटर चौड़ी और 10 मीटर ऊंची है। 40 मीटर ऊंचे पहाड़ को चीरकर इसलिए बनाई है, ताकि चट्टान या पत्थर धंसकर ट्रेनों पर न गिरें।
अक्सर बारिश में तूफान के समय ऊंचे पहाड़ों से ट्रेन निकलने के वक्त कंपन से चट्टान या पत्थर रेलवे ट्रैक पर गिरने का खतरा रहता है। कट एंड कवर से ट्रेनों की सुरक्षा होगी। इसमें दोनों ओर ड्रैनेज सिस्टम भी है। बारिश में रिसाव होकर पानी ड्रैनेज से बाहर चले जाएगा।
सात साल से चल रहा तीसरी लाइन का काम
थर्ड लाइन के लिए पहाड़ को चीर कर कट एंड कवर तकनीक से बनाई टनल तालपुरा के पास बनी है। यात्रा सुगम करने और गुड्स ट्रेनों को समय पर पहुंचने के लिए रेलवे इटारसी से बीना तक इटारसी से बीना तक तीसरी रेलवे लाइन के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। पिछले 7-8 साल से तीसरी लाइन के रेलवे ट्रैक का काम किया जा रहा है।

विंध्याचल पर्वत पर दुर्गम रास्ते और घने जंगल में सुरंगों का निर्माण किया गया है।
इटारसी से बुधनी और बरखेड़ा से बीना तक तीसरी लाइन का काम पूरा हो चुका है, जहां ट्रेनों का आवागमन ट्रैक पर जारी है।
तीसरी लाइन के ट्रैक से क्या फायदा होगा
पश्चिम-मध्य रेलवे का भोपाल-इटारसी मार्ग मध्य भारत में स्थित भारतीय रेलवे का महत्वपूर्ण और व्यस्ततम मार्ग है। यह उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम ट्रंक मार्गों पर कार्य करता है। यातायात का उत्तर-दक्षिण प्रवाह दिल्ली-झांसी-बीना-भोपाल-इटारसी-नागपुर से चलता है।
बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश से गुजरात की ओर जाने वाला पूर्व-पश्चिम यातायात इलाहाबाद, जबलपुर, इटारसी, भोपाल और नागदा से होकर जाता है। वर्तमान में इस खंड पर औसतन 48 मालगाड़ियों के साथ 110 से अधिक मेल/एक्सप्रेस ट्रेनें चल रही हैं। अनुभागीय क्षमता उपयोग 170% है। तीसरी लाइन के निर्माण से काफी हद तक ट्रैफिक कम होने की उम्मीद है।
इटारसी-बीना थर्ड लाइन का अलग-अलग हिस्सों में काम
इटारसी से बीना तक रेलवे की तीसरी लाइन डाली जा रही है। अलग हिस्सों में करीब 25 साल से काम जारी है। पश्चिम मध्य रेलवे जोन का यह सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। भोपाल मंडल में भोपाल-इटारसी के बीच में तीसरी लाइन का निर्माण कार्य में रानी कमलापति-बरखेड़ा (41.42 किमी), बरखेड़ा-बुधनी (26.5 किमी) व बुधनी-इटारसी (25 किमी) तीन हिस्सों में बन रहा है। रानी कमलापति-बरखेड़ा, बुधनी-इटारसी का काम पूरा हो चुका है। अब 26.5 किमी के ट्रैक पर यातायात शुरू होना बाकी है।
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