मध्यप्रदेश

Indore is eagerly waiting for Gadar-2 | सनी के फैन और टॉकिज मालिक बोले-सनी दबंग कलाकार, डायलॉग डिलीवरी सबसे अलग

देवेंद्र मीणा/इंदौरएक घंटा पहले

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सनी देओल की फिल्म गदर साल 2001 में आई थी और अब 20 साल बाद गदर-2 शुक्रवार को रिलीज होने वाली है। हमें ऐसी उम्मीद है कि ये फिल्म सुपर-डुपर हिट जाएगी। सिंगल स्क्रीन टाकिज में भी अच्छा कलेक्शन होगा। मैं सनी का बहुत बड़ा फैन हूं। साल 1983 में आई सनी की फिल्म बेताब 1 रुपए 60 पैसे में कस्तूर टॉकिज में देखी थी, तब से सनी की लगभग सभी फिल्म देखी है।

सनी दबंग कलाकार हैं। वो डायलॉग बोलते हैं तो लगता है कि कोई दबंग हीरो है। दिल से डायलॉग बोलते हैं। फिल्म में जब सनी की एंट्री होती है, उन्हें दिखाते हैं तो तालियां बजती हैं, सीटियां बजती हैं तभी मुझे अच्छा लगता है…। पहले दूसरों के यहां लाईन में लगकर फिल्में देखते था, आज खुद के दो टॉकिज हैं। पहले कभी सोचा नहीं था कि सिनेमा का बिजनेस करूंगा।

ये कहना है सनी देओल के फैन और ज्योति टॉकिज के संचालक आदर्श यादव का। दैनिक भास्कर से चर्चा करते हुए यादव ने कहा, सनी देओल की पहली वाली गदर फिल्म ने काफी धूम मचाई थी उसे लोग आज भी फिल्म को याद करते हैं। अब गदर 2 आ रही है, शुक्रवार को फिल्म रिलीज होने वाली है।

पूरे देश में फिल्म का माहौल है। जो लोग गदर देख चुके हैं, उन्हें गदर 2 का बेसब्री से इंतजार है। रोज लोग आकर फिल्म के बारे में पूछताछ कर रहे हैं। एडवांस बुकिंग कब से शुरू होगी। टिकट मिल जाएगी। कई लोग फर्स्ट डे फर्स्ट शो फिल्म को देखना चाहते हैं। सभी से कहा है कि शुक्रवार को टिकटों की बुकिंग हो जाएगी।

हमें ऐसी उम्मीद है कि ये फिल्म सुपर-डुपर हिट जाएगी। ये भी लगता है कि कुछ समय पहले रीलिज हुई पठान फिल्म को भी गदर-2 पीछे छोड़ देगी। सिंगल स्क्रीन टॉकिज में टिकट दर 80 रुपए और 100 रुपए रहेगी।

जानिए क्यों वे सनी के फैन हैं और कब अपने शौक को ही बिजनेस बना लिया, उन्हीं की जुबानी..।

तब बालकनी का टिकट 5 रुपए था…

मैं सनी देओल का शुरू से ही बहुत बड़ा फैन रहा हूं। साल 1983 में सबसे पहले मैंने इंदौर के कस्तूर टॉकिज में सनी देओल की फिल्म बेताब देखी थी। तब मेरी उम्र करीब 18 साल थी। उस समय 1 रुपए 60 पैसे, 3 रुपए 20 पैसे का टिकट होता था। बालकनी का टिकट 5 रुपए था। तब फिल्म देखी थी।

उसके बाद सनी देओल की अगली फिल्म अर्जुन आई थी वो एलोरा टॉकीज में देखी थी। मुझे बेताब से ज्यादा अर्जुन फिल्म पसंद आई थी। मैंने सनी देओल की लगभग सभी फिल्म देखी है। गदर वर्ष 2001 में चंद्रगुप्त टॉकीज में देखी थी।

ज्योति टॉकिज के संचालक आदर्श यादव।

ज्योति टॉकिज के संचालक आदर्श यादव।

स्कूल-कॉलेज में पढ़ते थे तो फिल्म देखने के लिए पैसे घर से मांगना पड़ते थे। तब फादर 5 रुपए देते थे। उसमें से हम 1 रुपए 60 पैसे की फिल्म देखते थे। घर वाले मना भी करते थे। मुझे याद है इंदौर के कोठारी मार्केट स्थित महाराज टॉकीज में ऋषि कपूर की हम किसी से कम नहीं फिल्म लगी थी। वो घर वालों को बिना बताए चोरी-छुपे देखी थी। तब टिकट दर 65 पैसे और 90 पैसे था।

फिल्म देखने के लिए 3 घंटे घर से गायब रहते थे, बिना बताए जाते थे तो इंटरवल में वापस घर आ जाते थे और घर वालों को चेहरा दिखाकर वापस टॉकीज चले जाते थे, ताकि पता नहीं चले कि हम फिल्म देखने गए हैं। दस मिनट की फिल्म निकल जाती थी, लेकिन किसी को पता नहीं चलता था। 1 रुपए 60 पैसे में एलोरा, यशवंत, नीलकमल टॉकीज में मैंने फिल्में देखी है।

सनी की फिल्म तीसरी आंख नहीं लगा पाया

मैं फिल्म देखने के लिए दूसरों की टॉकीज में लाईन में खड़े होकर टिकट खरीदता था। ऐसा कभी नहीं सोचा था कि एक दिन खुद ही टॉकीज मालिक बन जाऊंगा या ये बिजनेस करना पड़ेगा। 1986 में मेरी नौकरी नगर निगम में लग गई थी। ये कभी नहीं था कि सिनेमा मालिक बनना है। फिल्में देखने का शौक था। साल 2003 में हमने ज्योति टॉकीज खरीदा।

ये टॉकीज साल 2000 में घाटे के कारण बंद हो गया था। इसके जो मालिक थे, उनसे हमने बात की और कहा कि इसका संचालन करते हैं। घाटा होगा तो मैं पूरा करूंगा। बाद में सौदा करके ये टॉकीज खरीद लिया। देवास जिले के हाटपिपलिया में एक टॉकिज और है। इस तरह आज दो टॉकीज का संचालन करता हूं।

शहर के सबसे पुराने सिंगल स्क्रीन टॉकीजों में से एक ज्योति टॉकीज की शुरुआत साल 1950 में हुई थी।

शहर के सबसे पुराने सिंगल स्क्रीन टॉकीजों में से एक ज्योति टॉकीज की शुरुआत साल 1950 में हुई थी।

2003 में ज्योति टॉकीज लेने के बाद सनी देओल की सभी फिल्में अपने टॉकीज में लगाई है। एक खेल आई थी, लकीर जो एक्शन फिल्म थी वो भी लगाई थी। किन्हीं कारणों से सिर्फ एक फिल्म सनी देओल की नहीं लगा पाया था वो थी फिल्म तीसरी आंख। डिस्ट्रीब्यूटर्स से कुछ बातचीत की वजह से फिल्म ज्योति टॉकीज में नहीं लगाई थी।

ज्योति टॉकीज लेने के बाद सलमान खान की तेरे नाम भी जबरदस्त हिट रही थी। सभी शो फुल थे। मुझ से शादी करोगी फिल्म काफी हिट गई थी। उसमें भी अच्छा कलेक्शन आया था। फिर मैंने प्यार क्यों किया, नो एंट्री भी हिट रही थी। गर्व ने भी अच्छा बिजनेस किया। खाकी भी ठीक रही थी।

सनी दबंग कलाकार, डायलॉग डिलीवरी सबसे अलग

अब गदर टू लग रही है, जब फिल्म में सनी को दिखाएंगे तो तालियां बजेगी, सीटियां बजेगी तभी मुझे अच्छा लगता है। सनी देओल की एक्टिंग मुझे बहुत बढ़िया लगती है। वो दबंग कलाकार है। वो डायलॉग बोलते है तो लगता है कि कोई दबंग हीरो है। दिल से डायलॉग बोलते हैं, जबकि दूसरे हीरो बोलते हैं तो लगता है कि सीख कर बोल रहे हैं। सनी की फिल्म मां तुझे सलाम देख लो, चाहे इंडियन देख लो…चाहे सलाखें, घायल, घातक, दामिनी देख लो सभी में डायलॉग बोलने का अंदाज ही अलग है।

गदर टू मूवी का पोस्टर।

गदर टू मूवी का पोस्टर।

गदर टू में भी उनका एक डायलॉग काफी चल रहा है, जो बहुत फेमस हो चुका है कि कटोरा लेकर भीख मांगोगे तो भी भीख नहीं मिलेगी…। ये डायलॉग किसी दूसरे कलाकार को बोलने के लिए बोलो तो आवाज नहीं निकलेगी। सनी की फाइटिंग बहुत अच्छी लगती है। इनकी एक फिल्म आई थी जिद्दी। जिसमें उनका एक डायलॉग था कि जानवर को मारने के लिए जानवर बनना पड़ता है। शरीर से भी देसी पहलवान हीरो लगते हैं। दिखावटी पहलवान नहीं है।

ज्योति टॉकीज का नाम पहले विद्या था।

ज्योति टॉकीज का नाम पहले विद्या था।

सनी देओल उम्र के जिस पड़ाव में है, उसमें भी गदर 2 को लेकर देश में जो गदर मचा हुआ है। वो अपने आप में बता रहा है कि सनी आज भी जवान है। गदर-2 का लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। कब फिल्म रिलीज हो और हम इसे देखें। सनी के अलावा कोई पसंद नहीं है। सनी के लड़के की फिल्म आई थी पल-पल दिल के पास वो देखी थी। उसमें रोमांटिक काम किया था जैसे सनी ने बेताब में किया था लेकिन वो पसंद नहीं आया। सनी देओल को अपने बेटे को लॉन्च करना था तो एक्शन फिल्म में ही करना था।

73 साल पुराना है ज्योति टॉकीज

ज्योति टॉकीज का नाम पहले विद्या था। साल 1950 में इसकी शुरुआत हुई थी। बाद में इसके जो पूर्व मालिक थे उन्होंने इसका नाम ज्योति रखा। हमने जब टॉकीज खरीदा तो इसका नाम नहीं बदला और ज्योति ही रहने दिया, क्योंकि नाम बदलने से फर्क नहीं पड़ता, सिनेमा की पहचान खो जाती है। सिंगल स्क्रीन सिनेमा में दर्शकों का रुझान कम हो गया है।

इस टॉकीज में आज भी टिकिट बुकिंग काउंटर पर बालकनी और डीसी के रेट लिखे हैं जो अब मल्टीप्लेक्स में नजर नहीं आते हैं।

इस टॉकीज में आज भी टिकिट बुकिंग काउंटर पर बालकनी और डीसी के रेट लिखे हैं जो अब मल्टीप्लेक्स में नजर नहीं आते हैं।

सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर बहुत कम चल रहे है और बंद की कगार पर हैं। यदि सिंगल स्क्रीन सिनेमा चलाना है तो खर्च कम करना होगा तभी टॉकीज का संचालन किया जा सकता है। टॉकीज में लाइट और साउंड अच्छा होना चाहिए, दर्शक भी यही डिमांड करते हैं। मल्टीप्लेक्स में जाकर मैं फिल्म नहीं देखता, क्योंकि वहां जाकर फिल्म देखना मुझे अच्छा ही नहीं लगता है।

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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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