Story of dacoit Malkhan Singh who joined Congress | मंदिर की 100 बीघा जमीन के लिए बंदूक उठाई; रेप करने वाले को गोली मार देते थे

भोपाल42 मिनट पहलेलेखक: संतोष सिंह
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एक ऐसा बागी, जो गांव के मंदिर की 100 बीघा जमीन के लिए डाकू बन गया। वह चंबल का पहला डकैत था, जिसके पास पास ऑटोमैटिक अमेरिकन राइफल थी। उसका ऐसा खौफ था कि कोई डाकू किसी महिला का रेप नहीं करता था। जब उसने अपने गिरोह के साथ आत्मसमर्पण किया तो जौरा में हजारों लोग उसकी एक झलक पाने के लिए उमड़ पड़े थे। उस डाकू का नाम है- मलखान सिंह।
2014 में नरेंद्र मोदी से प्रभावित होकर, सपा छोड़कर उनके लिए प्रचार भी किया। जब उनकी भाजपा में पूछ-परख नहीं रही, तो उसी मलखान सिंह ने 9 अगस्त बुधवार को कांग्रेस का हाथ थाम लिया। गुरुवार को कांग्रेस के पीसीसी चीफ कमलनाथ की मौजूदगी में मलखान सिंह ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली।
लोकसभा टिकट न मिलने पर 2019 में ही मलखान ने बीजेपी छोड़ दी थी। पिछले दिनों जब प्रियंका गांधी ग्वालियर आई थीं तो रैली में शामिल होकर कांग्रेस से नजदीकियों का संकेत दे दिया था। अब वे विधिवत कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। पार्टी उन्हें भिंड की किसी सीट से चुनाव भी लड़ा सकती है। उनके पाला बदलने से सियासी गणित भी गड़बड़ा गया है। मलखान के लाइम लाइट में आने से एक बार फिर पुरानी यादें ताजा हो उठी हैं। आइए जानते हैं, बिगड़ते राजनीतिक गणित के अलावा मलखान सिंह के पुराने किस्से।

कांग्रेस को 40 सीटों पर होगा फायदा
मलखान सिंह के कांग्रेस में शामिल होने से उसे क्या फायदा होगा? इसका जवाब चंबल की राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार देवश्री माली ने दिया है। वे बताते हैं कि मलखान सिंह खंगार जाति से हैं। वे सामाजिक तौर पर पूरे प्रदेश में खंगार समाज के संगठन की राजनीति करते रहे हैं।
शिवपुरी, भिंड, दतिया और बुंदेलखंड क्षेत्र की लगभग 40 सीटों पर खंगार समाज का अच्छा वोट बैंक है। वे दावा करते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव तक खंगारों का 99 प्रतिशत वोट बीजेपी को मिला था। मलखान सिंह के चलते ये अब कांग्रेस को मिलेगा।
इसके अलावा मलखान सिंह जब चंबल में थे तो, उनकी छवि रॉबिनहुड की थी, जो आज भी बरकरार है। इसी के चलते भोपाल, ग्वालियर, मुरैना आदि क्षेत्रों में भी उनसे जुड़े लोगों की काफी संख्या है, जो कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित होगा। दूसरा मलखान सिंह एक बड़ा नाम है, इससे कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनेगा।
मलखान सिंह की जिंदगी के स्याह पन्ने
रौबदार मूछों पर ताव देने वाले मलखान सिंह कभी चंबल के सबसे बड़े डकैत थे। बात 70 के दशक की है। भिंड जिले के बिलाल गांव की 75 प्रतिशत से अधिक जमीनों पर कैलाश नारायण नाम के दबंग का कब्जा था। उनके चाचा प्रदेश सरकार में मंत्री थे। पुलिस भी इसी परिवार की सुनती थी। दबंगई के चलते कई सालों से गांव की सरपंची इस परिवार के कब्जे में थी।
गांव के मंदिर के नाम से 100 बीघा जमीन थी, इस पर भी इसी परिवार ने कब्जा जमा लिया था। ये बात 17 साल के मलखान सिंह को नागवार लगती थी। वह इस दबंग परिवार के खिलाफ गांव वालों को एकजुट करने लगा। ये बात इस परिवार तक पहुंची तो पुलिस से कहकर मलखान को एक झूठे मामले में जेल भिजवा दिया।
जेल से जमानत मिलने पर, मलखान सिंह खुलकर इस परिवार का विरोध करने लगे। सरपंची के चुनाव में उन्होंने पर्चा तक भर दिया। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने नदी किनारे मंदिर की 100 बीघा की जमीन का मुद्दा भी उठाना शुरू कर दिया। इससे कैलाश नारायण नाराज हो गया और मलखान के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दी कि चंबल में सक्रिय डाकू गिरदारिया से ये संपर्क रखता है।
ये वाे दौर था, जब पुलिस पर सबसे अधिक पक्षपात के आरोप लगते थे। चंबल के अधिकतर बागी इसी पक्षपात के चलते बीहड़ में उतरे थे। उस समय भी ऐसा ही हुआ। पुलिस मलखान को गांववालों के सामने पीटते हुए ले गई। इसके बाद कैलाश के एक खास आदमी की हत्या हुई तो इसका भी आरोप मलखान पर मढ़ दिया गया। होली के दिन मलखान के एक दोस्त की हत्या कर दी गई। इसके बाद मलखान बागी बन कर बीहड़ में उतर गए।

गुरुवार को पीसीसी चीफ कमलनाथ ने खुद मलखान को कांग्रेस की सदस्यता दिलाई।
चचेरे भाई और दोस्तों के साथ मिलकर बनाई गैंग
मलखान सिंह बीहड़ में उतरे तो अपने चचेरे भाई और दोस्तों के साथ मिलकर खुद की गैंग बनाई। हथियार के लिए अपहरण और लूट की वारदातों को अंजाम दिया। गैंग मजबूत हुआ तो मलखान सिंह एक रात गांव लौटे और कैलाश नारायण के घर पहुंच गए। माइक से एनाउंसमेंट करके कैलाश को ललकारा। कैलाश के निकलते ही मलखान सिंह और उसकी गैंग ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। इतनी फायरिंग के बावजूद कैलाश जिंदा भाग निकला।
काफी दिनों बाद मलखान ने कैलाश को ढूंढने में सफलता हासिल की और उसकी हत्या कर दी। डाकू बनने के बाद 15 सालों तक बीहड़ ही उनका ठिकाना बना। पुलिस ने एक के बाद एक कई मुकदमें उन पर लाद दिए थे, इसलिए वापसी की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। मलखान सिंह की गैंग के साथ कुछ ही सालों में 100 से अधिक लोग जुड़ गए। चंबल में उस समय सबसे बड़ा गिरोह मलखान सिंह का ही हुआ करता था। मलखान सिंह की गैंग की दहशत एमपी के भिंड, मुरैना, यूपी के इटावा, जालौन, आगरा और राजस्थान के धौलपुर तक थी।
विदेशी हथियारों के शौकीन थे मलखान सिंह
चंबल में उस समय कई दूसरे डकैत भी सक्रिय थे। फूलन सिंह भी चंबल में उतर चुकी थी। मलखान सिंह की गिरोह के साथ दूसरे डकैतों की कई दफा मुठभेड़ भी हुई, लेकिन वे किसी डाकू की जान नहीं लेते थे। मलखान सिंह ने नियम बना रखा था कि ऐसी मुठभेड़ में सिर्फ सामने वाले डाकू के कमर के नीचे ही गोली मारी जाएगी।
इससे दूसरे डाकुओं की नजर में मलखान सिंह की इज्जत बढ़ने लगी। सभी उन्हें प्यार से दद्दा बुलाने लगे, जो आज भी उनका निकनेम है। उस समय जब पुलिस के पास स्टेनगन और एके-47 जैसे हथियार नहीं थे, तब मलखान सिंह के पास ये विदेशी हथियार आ चुके थे। उनके पास स्टेनगन से लेकर सेल्फ लोडिंग अमेरिकन राइफल, इटालियन दूरबीन, एके-47, कार्बाइन जैसे हथियार थे। मलखान एक हाथ में अमेरिकन राइफल और दूसरे हाथ में लाउडस्पीकर लेकर चलते थे।

मलखान के पास हमेशा आधुनिक हथियार होते थे। उस जमाने में ये हथियार पुलिस के पास भी नहीं थे।
रेप करने वाले और गिरोह से गद्दारी करने वालों की सजा थी ‘मौत”
मलखान सिंह ने अपने प्रभाव वाले पांचों जिलों भिंड, मुरैना, इटावा, जालौन, आगरा और धौलपुर में ऐलान कर रखा था कि कोई भी किसी महिला के साथ रेप करेगा, तो उसे मैं सजा दूंगा। फिर चाहे वो उनकी गैंग का कोई डाकू ही क्यों न हो?
मलखान सिंह बताते हैं कि अक्सर बीहड़ में जब कभी कोई महिला या बेटी हमारी गैंग से टकरा जाती थी, तो मैं और मेरी गैंग के लोग उसके पैर छूकर पैसे देते थे। यहां तक की गरीब परिवारों की कई बेटियों की शादी में भी आर्थिक मदद करते थे। मलखान सिंह के मुताबिक उसे गद्दारों से नफरत थी। ऐसे लोगों की एक ही सजा मुकर्रर थी मौत। गरीबों की मदद के कारण मलखान को मसीहा की तरह देखा जाने लगा।
अपहृत को दूध-रबड़ी खिलाते थे मलखान सिंह
वरिष्ठ पत्रकार देवश्री माली बताते हैं कि मलखान सिंह का गिरोह पैसे वालों का अपहरण करता था। ये गिरोह अपहृत को बहुत अच्छे से रखता था। अपहृत को दूध, दही, रबड़ी और उसकी पसंद का खाना खिलाते थे। मलखान की सख्त हिदायत थी कि पकड़ (अपहृत) को ठीक से रखो, खाने पर जो खर्च होगा, इसके परिवार से जोड़कर वसूल लेंगे।
कानपुर के एक व्यापारी के बेटे का मलखान सिंह की गैंग का अपहरण किया था। जब एक महीने बाद वो मुक्त हुआ तो उसका वजन 15 किलो बढ़ चुका था। मलखान की छवि राॅबिनहुड की तरह थी। इस गिरोह ने अकारण किसी की हत्या नहीं की। किसी किडनैपर को कभी नहीं मारा। वो पैसा लेते थे और उसे छोड़ देते थे।
मलखान की दरियादिली देख, सिपाही ने करा लिया था ट्रांसफर
मलखान सिंह से जुड़ा एक वाकया काफी चर्चित है। दरअसल, एक दिन मलखान की गैंग की पुलिस से मुठभेड़ हुई तो एक सिपाही उनकी पकड़ में आ गया। पुलिस की गोलीबारी में गिरोह के कई डकैत घायल भी हुए थे, इस कारण उनमें गुस्सा था। गैंग के लोगों की मांग थी कि सिपाही की हत्या कर इसका बदला लिया जाए।
वो दिन दशहरे का था। मलखान सिंह ने गैंग के साथियों से कहा कि इसको मारा तो इसकी पत्नी और बच्चों का क्या होगा? आखिर उनका क्या कसूर है? मलखान की दरियादिली देखकर उस सिपाही ने उस एरिया से ही ट्रांसफर ले लिया था ताकि उसे मलखान के खिलाफ किसी कार्रवाई का हिस्सा न बनना पड़े।

मलखान चंबल के चप्पे-चप्पे से परिचित थे। यही कारण था कि उन्हें पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी।
अपहरण के खौफ में पैसे वालों ने घर से निकलना बंद कर दिया था
मलखान सिंह पर 1982 तक 94 से अधिक मामले दर्ज हो चुके थे। इसमें 17 हत्याएं, 18 डकैती, 28 अपहरण और 19 हत्या के प्रयास के मामले शामिल थे। पुलिस मुठभेड़ में उस पर पुलिस वालों को भी मारने के आरोप थे, लेकिन कभी पुलिस ने ये बात सार्वजनिक नहीं होने दी। उस समय तक मलखान सिंह की गैंग के पास जितने अत्याधुनिक हथियार थे, उतने उस समय पुलिस के पास भी नहीं थे। यही कारण था कि पुलिस की हर मुठभेड़ नाकामयाब रही।
मलखान को पकड़ने में एमपी, यूपी और राजस्थान की पुलिस कभी सफल नहीं हो पाई। अपहरण और फिरौती की ऐसी दहशत फैली की पैसे वाले लोग शाम होते ही घरों में कैद हो जाते थे। यही कारण था कि उसके पकड़ने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों पर काफी दबाव बढ़ गया था। समर्पण से पहले मलखान के सिर पर 70 हज़ार रुपए का इनाम था, जो आज के समय के अनुसार लाखों में होता।
एक पत्रकार की मध्यस्थता से समर्पण की राह निकली
1982 में भिंड के तत्कालीन एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी थे, जो बाद में एमपी के डीजीपी बने थे। तब एमपी के सीएम अर्जुन सिंह और केंद्र में इंदिरा गांधी पीएम थीं। एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी की पत्नी बंगाली थीं। उनकी दोस्ती पत्रकार कल्याण मुखर्जी की पत्नी से थी। कल्याण मुखर्जी मलखान सिंह का इंटरव्यू कर चुके थे। एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी ने पत्नी की दोस्ती के माध्यम से कल्याण से बात कर मलखान सिंह के समर्पण की रूपरेखा तय की। बातचीत की मध्यस्थता कल्याण मुखर्जी ने ही की।
मलखान सिंह की ओर से शर्त रखी गई कि मेरा और हमारे साथियों के सारे गुनाह माफ कर दिए जाएंगे और फांसी की सजा नहीं होगी। इसके अलावा मंदिर की जिस 100 एकड़ जमीन के विवाद से वो बीहड़ में उतरे थे, वो वापस मंदिर के नाम पर दर्ज हो। एसपी चतुर्वेदी ने मलखान की शर्त सीएम अर्जुन सिंह तक और सीएम ने पीएम इंदिरा गांधी तक बात पहुंचाई।
इंदिरा गांधी की हरी झंडी मिलने के बाद 15 जून 1982 समर्पण की तारीख तय हुई। खुद अर्जुन सिंह भिंड के एसएएफ मैदान पहुंचे। ये पहला सार्वजनिक सरेंडर था। तब मलखान को देखने आसपास की 30 हजार से अधिक भीड़ पहुंची थी। इस सरेंडर के प्रत्यक्षदर्शी रहे वरिष्ठ पत्रकार देवश्री माली बताते हैं कि मलखान सिंह अपने अत्याधुनिक हथियारों के साथ जब सरेंडर को पहुंचा तो लोग देखते रह गए। मलखान 6 साल जेल में रहे। इसके बाद साल 1989 में सभी मामलों में बरी करके उन्हें रिहा कर दिया गया।

उन दिनों डाकू पुलिस की वर्दी पहनकर वारदात को अंजाम देते थे, ताकि कोई पहचान न सके।
बीहड़ के चप्पे-चप्पे से वाकिफ, पैदल मूवमेंट थी मलखान गिरोह की मजबूती
मलखान सिंह का गिरोह 6 लाख एकड़ में फैले बीहड़ के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था। गिरोह के लोग किसी गांव में कभी नहीं रुकते थे। वे हर दिन अपना मूवमेंट बदलते रहते थे। ये गिरोह अधिकतर समय बीहड़ में गुजारता था। गिरोह के लोग पैदल ही चलते थे। यहां तक कि गांव के लोग भी मलखान सिंह गिरोह तक पुलिस की गतिविधियों की सूचना पहुंचा देते थे। इस कारण पुलिस का हर पैंतरा फेल हो जाता था।
बीहड़ छोड़ राजनीति में हुए सक्रिय, सपा से बीजेपी और अब कांग्रेस में
मलखान सिंह ने अपनी राजनीति की शुरुआत समाजवादी पार्टी से की थी।1996 में उन्होंने सपा के सिंबल पर गुना से विधानसभा का उपचुनाव भी लड़ा था, लेकिन हार गए थे। ये सीट विधायक रहे भाजपा के डॉ. रामलखन सिंह के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद इस्तीफा देने से रिक्त हुई थी। उस समय प्रदेश में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। उपचुनाव में कांग्रेस ने राकेश चौधरी, बीजेपी ने रामभुवन सिंह कुशवाह, और माधवराव सिंधिया द्वारा बनाई गई मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस पार्टी से रमाशंकर सिंह प्रत्याशी थे।
परिणाम आया तो कांग्रेस के राकेश चौधरी चुनाव जीत गए। जब 2003 में प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी तो वो बीजेपी के करीब आ गए। 2013 के विधानसभा और 2014 के लोकसभा में उन्होंने बीजेपी के पक्ष में प्रचार भी किया। 2019 में उन्होंने बीजेपी से धौरहरा लोकसभा सीट का टिकट मांगा। टिकट नहीं मिला तो नाराज होकर पार्टी छोड़ दी। उन्होंने सपा से बगावत कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी “लोहिया” बना चुके शिवपाल यादव से संपर्क किया और उनकी पार्टी के सिंबल पर धौरहरा लोकसभा से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए।

ये उन दिनों की तस्वीर है, जब मलखान खान का इंटरव्यू लिया जा रहा था।
पत्नी निर्विरोध सरपंच चुनी गईं, पिंक पंचायत का मिला दर्जा
मलखान सिंह ने 2022 के पंचायत चुनाव में पत्नी ललिता सिंह को गुना जिले की आरोन तहसील अंतर्गत आने वाले सुनगयाई ग्राम पंचायत से चुनाव लड़ाने के लिए पर्चा भरवा दिया। इसके बाद गांव की पंचायत बैठी। तय हुआ कि ललिता सिंह सहित सभी 12 पंच के पदों पर महिलाओं को निर्विरोध चुन लिया जाए। इससे शासन से इनाम के तौर पर 15 लाख रुपए भी मिल जाएंगे, जो गांव के विकास में खर्च हो सकेगा।
इसके बाद गांव वालों ने ललिता सिंह को निर्विरोध सरपंच चुन लिया। अब वे कांग्रेस में शामिल हो गए। पार्टी में शामिल होने पर कहा कि मेरी लड़ाई हमेशा से अन्याय और अत्याचार के खिलाफ रही है। बीजेपी के अत्याचारों से आम लोग दुखी हैं। इससे निजात कांग्रेस ही दिला सकती है। यही कारण है कि मैं कांग्रेस में शामिल हुआ। मलखान सिंह कहते हैं, “अन्याय नहीं होने देंगे, यही मेरा मिशन है।”
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