बचपन में सोचते रहे बैट बनाती है MRF, पर अलग ही निकला धंधा, अब एक शेयर 1 लाख का, 99% अब भी नहीं जानते पूरा नाम

हाइलाइट्स
के. एम मैमन मापिल्लई ने 1946 में एमआरएफ की नींव रखी थी.
कंपनी ने शुरू में गुब्बारे बनाना शुरू किया था.
1960 में टायर बनाने शुरू किए और आज मार्केट लीडर है.
नई दिल्ली. एफआरएफ (MRF) कंपनी कल से ही चर्चा में है. हो भी क्यों न, इसका शेयर भारत का पहला ऐसा स्टॉक (MRF Share) बन गया है, जिसकी कीमत कल एक लाख रुपये से ऊपर चली गई थी. भारत की नंबर वन टायर कंपनी को बहुत-से लोग बचपन में बैट बनाने वाली कंपनी समझते रहे. इसका कारण था सचिन तेंदुलकर, ब्रायन लारा और स्टीव वॉ जैसे नामी क्रिकेटरों के एफआरएफ का लोगो (Logo) लगे बैट से खेलना. विराट कोहली, शिखर धवन, एबी डी विलियर्स और संजू सैमसन के हाथ में भी एमआरएफ का बैट नजर आता है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि एफआरएफ की नींव रखने वाले के. एम मैमन मापिल्लई ( K.M. Mammen Mappillai) पहले गुब्बारा बेचते थे.
मापिल्लई ने एफआरएफ को शुरू ही गुब्बारे बनाने के लिए किया था. फिर उन्होंने रबड़ प्लाई बनानी शुरू की और इसके बाद टायर बनाना शुरू कर दिया. के. एम मैमन मापिल्लई (K.M. Mammen Mappillai) पहले गुब्बारा बेचते थे. वो भी किसी दुकान में नहीं, बल्कि सड़क पर खड़े होकर. गुब्बारे बेचते-बेचते ही उन्हें रबड़ के कारोबार में सुनहरा भविष्य दिख गया और 1946 में उन्होंने गुब्बारे बनाने शुरू कर दिए. बच्चों के गुब्बारे बनाने से शुरू हुआ एफआरएफ का सफर अब टायर, धागे, ट्यूब, कन्वेयर बेल्ट, पेंट और खिलौने सहित रबड़ के कई अन्य उत्पादों के निर्माण तक जा पहुंचा है.
एफआरएफ का सफर अब टायर, धागे, ट्यूब, कन्वेयर बेल्ट, पेंट और खिलौने सहित रबड़ के कई अन्य उत्पादों के निर्माण तक जा पहुंचा है.
यह भारत की सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी है. वहीं, विश्व में टायर बनाने वाली बड़ी कंपनियों की लिस्ट में यह 14वे नंबर पर है. कंपनी की वैल्यूएशन 23,000 करोड़ रुपये आंकी गई है. एमआरएफ को बुलंदियों पर पहुंचाने में इसके संस्थापक मापिल्लई की मेहनत और दूरदर्शिता का बड़ा हाथ है. साथ ही क्रिकेट के बैट ने भी एमआरएफ की स्ट्रॉन्ग ब्रांड इमेज बनाने में अहम योगदान दिया है. 1992 में मापिल्लई को उद्योग जगत में उनके योगदान के लिए पदमश्री सम्मान से नवाजा गया. साल 2003 में उनका देहांत हो गया.
ऐसे अर्श से फर्श पर पहुंचे मापिल्लई
केरल में एक ईसाई परिवार में 1922 में जन्मे मापिल्लई आठ भाई-बहन थे. उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. आजादी की लड़ाई के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उनकी सारी संपत्ति जब्त कर ली गई. इससे मापिल्लई के परिवार के सामने खाने के लाले पड़ गए. परिवार का पेट भरने के लिए उन्होंने सड़क पर गुब्बारे बेचने शुरू कर दिए. 6 साल तक गुब्बारे बेचने पर उन्हें पता चल गया कि गुब्बारे बनाने में अच्छा पैसा है. साल 1946 में उन्होंने मद्रास के तिरुवोट्टियूर में एक टीन शैड में गुब्बारे बनाने शुरू कर दिए. गुब्बारे बनाने के इस काम से ही मद्रास रबड़ फैक्टरी की नींव पड़ी.
गुब्बारे बनाने के दौरान ही उन्हें रबड़ के कारोबार की और समझ हुई और उन्होंने 1952 में खास रबड़ की प्लाई (Tread Rubber) बनाना भी शुरू कर दिया. यह एक बहुत शानदार उत्पाद था. यह यूज्ड टायर की लाइफ को बढ़ा देता था. मापिल्लई के इस उत्पाद ने चार साल में ही बाजार में धूम मचा दी और इस कारोबार के 50 फीसदी मार्केट पर कब्जा कर लिया.
1960 में रखी टायर फैक्टरी की नींव
साल 1960 में उन्होंने रबड़ और टायर बनाने के लिए एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाई. 1961 में मापिल्लई की टायर फैक्टरी का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया था. कारोबार बढ़ाने के लिए उन्होंने अमेरिका की मैन्सफील्ड टायर एंड रबड़ कंपनी के साथ समझौता किया. करीब 20 साल बाद मैन्सफील्ड ने एमआरएफ में अपनी हिस्सेदारी बेच दी.
एमआरएफ का क्रिकेट कनेक्शन
सचिन तेंदुलकर, ब्रायर लारा और विराट कोहली जैसे महशूहर क्रिकेटर एमआरएफ के ब्रांड एंबेसडर रहे हैं. एफआरएफ का लोगो इनके क्रिकेट बैट पर लगा होने से एफआरएफ के बैट भी खूब बिके. बच्चों के बीच ये बैट बहुत लोकप्रिय हुए और समय के साथ ही उनके मन में यह बात भी बैठी की एमआरएफ टायर भी बैट की तरह उनके लिए सही च्वाइस है. इससे एफआरएफ की ब्रांड इमेज को बहुत फायदा हुआ और इसने कंपनी की ग्रोथ में बड़ा योगदान दिया.
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Tags: Business news in hindi, Sachin teandulkar, Success Story, Virat Kohli
FIRST PUBLISHED : June 14, 2023, 12:56 IST
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