The girl whose neck was cut and thrown away, got life again | जिस बच्ची को गर्दन काटकर फेंका, उसे मिली जिंदगी: 3 इंच लंबे घाव को 10 टांकों से जोड़ा, अब राजगढ़ के बालगृह में पलेगी – Madhya Pradesh News

पीहू को अब राजगढ़ बालगृह में रखा जाएगा। इस संबंध में प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
राजगढ़ में एक दिन की जिस नवजात बच्ची का गला काटकर मरने के लिए फेंक दिया गया था, आखिर वो जिंदगी की जंग जीत गई है। आज शुक्रवार को भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल से उसे डिस्चार्ज किया जाएगा। बच्ची की गर्दन जुड़ गई है। डॉक्टरों को उम्मीद है कि उचित देखभाल मि
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दरअसल, राजगढ़ जिले के पचोर के मेला ग्राउंड में 11 जनवरी 2025 को कचरे के ढेर में लोगों को नवजात मिली थी। उसका आधा गला कटा था। जान से मारने की नीयत से उसकी नानी ने ही उसे इस हालत में पहुंचाया था। दूसरे ही दिन पुलिस ने बच्ची की मां और नानी को गिरफ्तार कर लिया था।
पुलिस ने बच्ची को पहले राजगढ़ जिला अस्पताल भेजा। गंभीर हालत देखते हुए उसे भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल लाया गया। यहां डॉक्टरों ने बच्ची के गले के 3 इंच लंबे घाव को 10 टांके लगाकर जोड़ा। अस्पताल की नर्सों ने उसे ‘पीहू’ नाम दिया है, पढ़िए रिपोर्ट…
सिलसिलेवार जानिए, कैसे मिली नई जिंदगी
मसल्स कटने से सांस लेने में झटके कमला नेहरू हॉस्पिटल के डॉ. धीरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि बच्ची जब हॉस्पिटल आई तो उसकी हालत बेहद गंभीर थी। उसे देखकर ये ख्याल भी आया कि 1 दिन की मासूम के साथ ऐसी क्रूरता कौन कर सकता है? पूछने पर बताया गया कि बच्ची का गला काटकर उसे सुनसान जगह पर फेंका गया था।
जब हमने उसकी जांच की तो उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। वह बार-बार झटके ले रही थी। तब उसका वजन 2.34 किलोग्राम था। गले में अंदर तक करीब 1 इंच गहरे घाव थे। गर्दन की मसल्स कट चुकी थी। हमने तत्काल ही उसके ऑपरेशन का फैसला किया।
घाव को 10 टांके लगाकर जोड़ा डॉ. श्रीवास्तव बताते हैं कि घाव को 10 टांके लगाकर जोड़ना एक बहुत ही जटिल और चुनौतीपूर्ण काम था। बच्ची बेहद छोटी है। उसका डेवलपमेंट भी नहीं हुआ है। हमारी टीम ने बहुत ही सावधानी और कुशलता से यह काम किया है। जब टांके लग गए तो घाव को भरने में 15 दिन लगे। बच्ची को बाहरी दूध नहीं दे सकते थे। शुरुआत में उसे आईवी फ्लूइड के जरिए ही लिक्विड पदार्थ दिए गए।
रोने पर ज्यादा खतरा इसलिए 24 घंटे नजर बच्ची की स्थिति बहुत ही नाजुक थी। बच्ची के गले को टांके लगाकर जोड़ा गया था। ऐसे में इस बात का खास ध्यान रखा कि वह ज्यादा रोए नहीं। रोती तो उसके घाव को खतरा ज्यादा था। हमारी टीम ने 24 घंटे उस पर नजर रखी। टाइम पर दूध देना, उसे लेकर टहलना..जैसे सारे काम किए।
रात में वो प्रॉपर सांस ले पा रही है या नहीं, इसका भी ध्यान रखा। इस तरह की सावधानी और देखभाल से बच्ची की जान बचाई जा सकी। उसकी सेहत में सुधार हो सका।

बोल सकेगी या नहीं, अभी कुछ नहीं कह सकते गले का ऑपरेशन हुआ है, लिहाजा वह एक नॉर्मल बच्ची की तरह बोल पाएगी या नहीं? ये एक अहम सवाल है। इसका जवाब देना इस समय डॉक्टरों के लिए भी मुश्किल है। डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं कि यह बच्ची की चोट की गंभीरता और इलाज के असर पर डिपेंड करेगा।
वे कहते हैं- आमतौर पर जब बच्चों को गले में चोट लगती है, तो यह उनकी बोलने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। हमने बच्ची के गले के घाव को ठीक तो कर दिया है, लेकिन वो अभी बोलने की स्टेज तक पहुंची नहीं है। बच्चा डेढ़ या दो साल की उम्र में बोलना शुरू करता है।
बच्चा अपने आसपास के लोगों को देखकर ज्यादा जल्दी बोलना सीखता है। यदि उसे भी उचित देखभाल मिलेगी और वह लोगों के बीच रहेगी तो संभावना है कि बोल सकेगी।

देखभाल करने वाली नर्सों ने नाम दिया ‘पीहू’ कमला नेहरू हॉस्पिटल में बीते एक महीने से बच्ची भर्ती है। उसकी देखभाल में अस्पताल का पूरा स्टाफ जुटा हुआ था। वह उनके परिवार की सदस्य बन चुकी है। अस्पताल की नर्स ममता कहती है- पूरा नर्सिंग स्टाफ ड्यूटी पर आता था तो सबसे पहले जाकर उसे ही देखता था। 24 घंटे एक नर्स उसकी देखभाल के लिए तैनात होती थी।
उसे समय पर दूध पिलाना, रोने न देना हमारी प्रायोरिटी होती थी। रोने पर उसके गले के घाव के टांके खुल सकते थे। बाकी नर्सें दूसरे मरीजों को अटेंड करती थीं। उसके लिए दूध और कपड़ों का इंतजाम भी हमारी स्टाफ नर्सों ने ही किया है। उसकी जान बचाने में हमारी पूरी टीम का सहयोग है। हमने उसे ‘पीहू’ नाम दिया है।
इस नाम को रखने की वजह बताते हुए ममता कहती है- पांच साल पहले ऐसी ही एक बच्ची आई थी। उसका नाम हमने रिंकी रखा था। फिर एक और लावारिस बच्ची आई थी, उसे हमने खुशी नाम दिया था। इस बार जब मैंने पूरी टीम को कहा कि पीहू नाम कैसा है, तो सभी ने इस नाम को रखने की सहमति दी।

राजगढ़ के बालगृह में जाएगी बच्ची बच्ची को अब राजगढ़ बालगृह भेजने की तैयारी है। इस संबंध में प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। आदेश भी हो गए हैं। शुक्रवार को राजगढ़ से टीम बच्ची को लेने भोपाल आएगी। उसे वहीं रखा जाएगा। डॉक्टर्स ये भी चाहते हैं कि बच्ची को कोई परिवार गोद लेकर उसकी अच्छे से देखभाल करे। उसकी पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था हो जाए।

अवैध संबंध छुपाने के लिए बच्ची को फेंका था पीहू को मरने के लिए उसकी मां और नानी ने छोड़ा था। दरअसल, जिस दिन बच्ची मिली उसके दूसरे दिन राजगढ़ पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज, प्रेग्नेंसी रिपोर्ट और स्थानीय लोगों से पूछताछ के आधार पर जांच शुरू की।
शंका के आधार 11 जनवरी को ही मेला ग्राउंड के पास रहने वाली एक महिला को हिरासत में लिया गया। उससे पूछताछ की गई। महिला ने पुलिस को बताया कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया है। वह तीन साल से पति से दूर रह रही है। इसी बीच एक युवक से उसके संबंध बन गए थे।
इसी संबंध को छिपाने के लिए उसने बेटी के जन्म के अगले ही दिन उसे मारने की कोशिश की। महिला की मां यानी बच्ची की नानी ने चाकू से उसका गला रेता था। इसके बाद 11 जनवरी को सुबह 5 बजे उसे कचरे के ढेर में फेंक दिया था।
पुलिस ने BNS की धारा 109 और 93 के तहत बच्ची की मां और नानी के खिलाफ मामला दर्ज किया था। आरोपी महिला के बयान के आधार पर कानपुर के रहने वाले पप्पू के खिलाफ बलात्कार की धाराओं में मामला दर्ज किया गया।

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नवजात बच्ची को कचरे में फेंका, गले पर चोट

राजगढ़ में पचोर के मेला ग्राउंड पर शनिवार सुबह कचरे के ढेर में नवजात बच्ची मिली है। उसके गले पर कट का निशान है। सुबह करीब 9 बजे राहगीरों को कचरे के ढेर से बच्ची के रोने की आवाज सुनाई पड़ी। लोगों ने देखा और पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने बच्ची को पचोर सिविल अस्पताल में भर्ती कराया। पढ़ें पूरी खबर…
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