अजब गजब

12 साल दूसरों के लिए कमाया, गांव लौटा तो भर आया मन, शुरू किया अपना काम, आज 41,000 करोड़ की कंपनी

Success Story : 12 वर्षों तक दूसरों के लिए काम करते रहने के बाद ग्रेसियस सलढाना को समझ आई कि इतनी मेहनत खुद के लिए की होती तो क्या से कया हो गए होते. लेकिन देर ही सही, मगर यह समझ दुरुस्त आई. सलढाना ने केवल 1 लाख रुपये लगाकर अपना बिजनेस शुरू किया. शुरुआत 1977 में हुई और उस दिन जिस कंपनी की नींव रखी गई, उसका मार्केट कैपिटलाइजेशन आज लगभग 41,000 करोड़ रुपये का है. जी हां, 41,000 करोड़ रुपये से अधिक. इनके उत्पाद लाखों लोगों के जीवन की रक्षा कर रहे हैं. ग्रेसियस सलढाना और उनकी कंपनी की सफलता की कहानी काफी दिलचस्प है.

गोवा के एक छोटे से मगर बेहद सुंदर गांव सलगांव (Saligao) में जन्मे ग्रेसियस सलढाना ने अपने दोनों बच्चों के नाम पर अपनी कंपनी का नाम रखा था. पहली बार कंपनी का नाम सुनकर आपको लगेगा कि यह विदेशी है, मगर ऐसा नहीं है. सलढाना के दो बेटे थे. एक का नाम था ग्लेन (Glenn) और दूसरे का नाम मार्क (Mark) था. अब तक कंपनी का नाम आपके जेहन में उभर आया होगा. नहीं भी तो कोई बात नहीं, हम बताते हैं. कंपनी का नाम है ग्लेनमार्क फार्मा (Glenmark Pharmaceuticals).

ग्रेसियस सलढाना पर अब न केवल उनका गांव, बल्कि पूरा गोवा गर्व करता है. वह सलगांव के पहले ग्रेजुएट लोगों में से एक थे, जिन्होंने साइंस में मास्टर डिग्री हासिल की. साइंस की डिग्री करने के बाद नौकरी करने लगे. नौकरी करते समय एक बार जब वे गांव लौटे तो उन्होंने पाया कि स्वास्थ्य के मामले में गांव के लोगों की स्थिति काफी खराब है. वहीं से उन्होंने फैसला कर लिया कि कुछ करना है. और जो किया वह आज हम सबके सामने है.

सस्ती गुणकारी दवाएं बनाने का सपना
ग्लेनमार्क को शुरू करने के इरादा काफी साफ था कि केवल जेनरिक दवाएं और एपीआई (Active pharmaceutical ingredient) का निर्माण हो. एपीआई दरअसल, दवा के मुख्य घटक होते हैं, जिसके चलते दवा अपना काम करती है. कुछ दवाओं में एक से अधिक API होते हैं, जो शरीर में अलग-अलग तरीकों से कार्य करते हैं. अब बात करते हैं जेनरिक दवाओं की. जेनरिक दवाओं ब्रांडेड दवाओं से सस्ती होती है. इनमें वही API होते हैं, जो ब्रांडेड दवाओं में होते हैं, हालांकि नॉन-एक्विट इन्ग्रिडिएंट्स अलग हो सकते हैं. काम भी ये ब्रांडेड दवाओं जैसा ही करती हैं. जेनरिक और एपीआई निर्माण पर सलढाना जानते थे कि वक्त लगेगा.

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काम शुरू किए 2 साल हो चुके थे. अच्छी रिसर्च और तैयारी के साथ वे अपने प्रोडक्ट बाजार में लाने को तैयार थे. 1979 में ग्लेनमार्क ने त्वचा (Skin) के रोगों के बाजार में प्रवेश किया, और फंगल संक्रमण के लिए कैंडिड क्रीम लॉन्च की. डॉक्टरों ने इसका रिजल्ट देखकर रिकडंम करना शुरू किया और यह दवा हिट हो गई. सलढाना ने 1985 में खांसी से राहत के लिए अस्कोरिल लॉन्च किया और यह भी सुपरहिट दवा साबित हुई.

गोवा से निकलकर ग्लोबल होने तक
कैंडिड और अस्कोरिल ने न केवल भारतीय बाजार में धूम मचाई, बल्कि अन्य देशों में भी इनकी मांग बढ़ी. गोवा से निकला ग्लेनमार्क 1999 में ग्लोबल हो गया. ड्रग डेवलपमेंट पर फोकस करने के उद्देश्य से कंपनी ने नासिक के सिनार में एक रिसर्च एंड डेवपलमेंट (R&D) सेंटर खोला. 2000 आते-आते कंपनी की चर्चा खूब रही थी. इसी वर्ष कंपनी ने शेयर बाजार में अपना आईपीओ पेश किया. 1760 करोड़ रुपये के वैल्यूएशन पर कंपनी लिस्ट हुई.

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कंपनी ने रिसर्च पर फोकस करते हुए दो API फैसिलिटी शुरू की. ग्लेनमार्क ने 1760 करोड़ रुपये के मूल्यांकन पर स्टॉक मार्केट में लिस्टिंग की. उसने शोध पर ध्यान केंद्रित रखा और दो API सुविधाएं खोलीं. चार मेगा आउट-लाइसेंसिंग डील्स पर साइन करने के बाद 2008 में यह 8160 करोड़ रुपये के वैल्यूएशन के साथ भारत की 5वीं सबसे बड़ी फार्मास्युटिकल कंपनी बन गई.

66 फीसदी कमाई विदेशों से
2003 में ग्लेनमार्क की इनकम 260 करोड़ रुपये से बढ़कर 2014 में 6010.37 करोड़ रुपये हो गई. यह सेल से ही एक बिलियन डॉलर की कंपनी बन गई, और इसकी 66% कमाई यूएसए, लैटिन अमेरिका और यूरोप से आई. ग्लेनमार्क दुनिया की टॉप 80 फार्मा कंपनियों की सूची में शामिल हो गया.

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2018 तक ग्लेनमार्क ने कैंडिड क्रीम से लेकर 6000 प्रोडक्ट्स तक एक्सपेंशन किया, जिनमें सांस, स्किन और कैंसर (ऑन्कोलॉजी) की एरिया शामिल थे. 9,185.34 करोड़ रुपये की आय और 80 देशों में ऑपरेशन के साथ यह भारत की चौथी सबसे बड़ी फार्मास्युटिकल कंपनी और दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती कंपनी बन गई.

रेवेन्यू के घोड़े पर सवार है कंपनी
मार्च 2024 के वार्षिक आंकड़ों पर नजर डालें तो कंपनी ने 9,059.1 करोड़ रुपये के रेवेन्यू बनाया, जिसमें से नेट प्रॉफिट 5,167.3 करोड़ रुपये का था. जून 2023 की तिमाही के बाद से ही भारतीय घरेलू संस्थागत निवेशक (DIIs) ने कंपनी में लगातार अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है.

कुल मिलाकर ग्रेसियस सलढाना ने ऐसी कंपनी बना दी, जो रहती दुनिया तक चलती रहने वाली है. 2011 में सलढाना गोवा के सबसे अमीर व्यक्ति के तौर पर पहचाने जाते थे. 2012 में ग्रेसियस सलढाना दुनिया को अलविदा कह गए. अब उनका परिवार इस कंपनी को संभाल रहा है. सलढाना फैमिली ट्रस्ट (Saldanha family trust) के पास कंपनी के 45.45 प्रतिशत शेयर हैं.

Tags: Health and Pharma News, Success Story, Success tips and tricks, Successful business leaders


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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