मध्यप्रदेश

Interview:’विरोध करने वाले पहले फिल्म देख तो लें’, द केरल स्टोरी के राइटर ने बताई कहानी के पीछे की ‘कहानी’ – Interview Of Suryapal Singh, Writer Of The Kerala Story

फिल्म द केरल स्टोरी सुर्खियों में बनी हुई है। चर्चा चाहे फिल्म को मिल रहे प्यार की हो, या फिल्म के विरोध में कोर्ट तक जाने की। फिल्म को लेकर सियासत भी शुरू हो चुकी है।  तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में इस फिल्म पर बैन लगाया जा चुका है तो झारखंड और केरल आदि राज्यों में भी इस पर बैन लगाने की मांग हो रही है। वहीं उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश जैसे तमाम राज्यों में फिल्म को बढ़ावा देने के लिए टैक्स फ्री कर दिया गया है। कुल मिलाकर फिल्म लगातार सुर्खियों में बनी हुई है। ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म में धर्मांतरण और लव जिहाद जैसे गंभीर मुद्दों को दिखाया गया है। इसमें देश की हिंदू और ईसाई महिलाओं की आपबीती दिखाई गई है, जिनका ब्रेनवॉश करके पहले उन्हें इस्लाम कबूल करने पर मजबूर किया गया और बाद में आईएसआईएस आतंकवादी बना दिया गया। फिल्म का सबसे अहम हिस्सा है उसकी कहानी। फिल्म के लेखक सूर्यपाल सिंह ने अमर उजाला से खास बातचीत की है, और फिल्म के ईर्द-गिर्द घूम रहे तमाम सवालों पर अपनी राय रखी है। बता दें कि सूर्यपाल मध्यप्रदेश के धार शहर के रहने वाले हैं। पढ़ते हैं बातचीत के कुछ अंश- 

सवाल- फिल्म को दर्शकों का अच्छा रिस्पांस मिल रहा है, कैसा लग रहा है?

सूर्यपाल- फिल्म को दर्शकों का अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। बीते तीन-चार दिन का कलेक्शन भी अच्छा रहा है। कुल मिलाकर फिल्म पसंद की जा रही है। अच्छा तो लगता है ही जब आपकी कहानी को दर्शक प्यार देते हैं तो। 

सवाल- फिल्म का मुद्दा बड़ा संवेदनशील है, कैसे इसे पन्नों पर उतारा?

सूर्यपाल- कहानी का पहला अहम भाग कहानी है, जिसे सबसे पहले सुदीप्तो सेन ने बड़े बारीकी तौर पर अध्ययन किया। इस पर काफी रिसर्च की। मुख्य कहानीकार तो वही हैं। उन्होंने इसकी स्टोरी पर करीब पांच साल तक मेहनत की है। जितने भी विक्टिम थे, उनके इंटरव्यू लेना, उनके घर जाकर मिलना और तथ्य जुटाना। ये सारे काम बड़े डेरिंग के साथ किया है। इसकी डॉक्यूमेंट्री बनाई थी। मेरी इंट्री होती है तीन साल पहले। हम पहले से संपर्क में थे, उन्होंने मुझसे कहानी को लेकर चर्चा की, रिसर्च और डॉक्यूमेंट्री दिखाई और कहा कि क्या करना चाहेंगे। पहली बार में ही उनके कॉन्सेप्ट से मैं सहमत हो गया था। हमने इस पर काम करना शुरू कर दिया। 

 



सवाल- विषय पर काफी रिसर्च हुई है, कैसे जुटाए आपने इसके तथ्य? 

सूर्यपाल- रिसर्च तो की है। मैं बताऊं कि कई घटनाओं में थानों में रिपोर्ट ही दर्ज नहीं होती। हम इस आंकड़े पर नहीं जाना चाहते। सुदीप्तो सेन जी ने जो रिसर्च की है, उसमें उन्होंने विक्टिम के बारे में जानकारी निकाली। उनके घर जाकर विस्तार से बातचीत की और मामले को समझा। ऐसे परिवार जिनकी बच्चियां गई हैं, जिनकी बच्चियों लौटकर नहीं आईं, या लौटकर आईं भी हैं तो नॉर्मल लाइफ नहीं जी पा रहीं। पहले तो उन्होंने सीधे विक्टिम और उसके परिवार से संपर्क किया। फिर वहां की मीडिया में जो साल-दर-साल कुछ घटनाओं को लेकर छपा है। मलयालम मीडिया में जो छपा है, वो हिंदी मीडिया तक पहुंच नहीं पाया। उन रिपोर्टों को निकालना, फिर वहां ऐसे संगठन काम कर रहे हैं, उनसे मिलकर आना। मैं तो कहूंगा कि करीब 300 घंटों का फुटेज, वीडियो उनके पास रहा है, ये सब कवर करने के लिए। 

सवाल- फिल्म में पहले 32 हजार लड़कियों के धर्म परिवर्तन का आंकड़ा बताया गया, इस पर विवाद भी हुआ?

सूर्यपाल- देखिये ये मामला थोड़ा हास्यास्पद भी है। क्योंकि होता ये है कि आप हाथी को नहीं पकड़ रहे, उसकी पूंछ पकड़कर बैठे हो। आंकड़ा भी पूंछ जैसा ही, जिसे लोगों ने पकड़ लिया कि इस पर तो हम घेर ही लेंगे। ये तो जस्टिफाय कर नहीं पाएंगे। बाकी चीजें तो जस्टिफाय थीं। उन्होंने इस पर तो सवाल नहीं उठाए कि ये घटनाएं तो हुई हैं, या नहीं हुई या ऐसा होता ही नहीं है, ये झूठ बता रहे हैं। इस पर तो किसी ने बवाल नहीं मचाया, इसका मतलब तो यही है कि हमारा हाथी तो निकल गया। बस इस आंकड़े को पकड़कर विरोध किया जाने लगा। आपके सवाल को भी मैं क्लीयर कर देता हूं, अगर आपने टीजर को ध्यान से सुना हो तो पाएंगे कि वो कह रही है कि अब मेरा नाम फतिमा है, मैं सीरिया में हूं, यहां की जेल में बंद हूं और मेरे जैसी 32 हजार लड़कियां यहां की रेत में दफन हैं। उसने ये नहीं कहा कि ये सभी भारत की लड़कियां हैं या भारत से लाई गई हैं। उसने ये कहा मेरी जैसी। वो दुनियाभर की लड़कियां हो सकती हैं। वो हो सकती हैं 32 हजार। हमने उसे ओपन रखा था, जिसे कोई समझा नहीं और आंकड़ा उठाकर विवाद शुरू कर दिया। दूसरे भी उसी बात को दोहराने लगे। किसी ने जाकर क्रॉसचेक नहीं किया। हम 32 हजार लड़कियों की कहानी तो तीन घंटे में तो बता नहीं सकते। हम प्रतीकात्मक रूप में बता सकते हैं। इन तीन लड़कियों ने उन हजारों लड़कियों को प्रजेंट किया है। 

 


सवाल- कहानी वर्ग विशेष को टारगेट करती दिखती है? 

सूर्यपाल- ऐसा नहीं है। वर्ग विशेष की बात ही नहीं है। सुदीप्तो जी ने भी एक इंटरव्यू में कहा था जब हम कहते हैं कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता तो फिर हम ऐसे मामलों में हम धर्म क्यों तलाश रहे हैं। हमने तो आतंक के खिलाफ फिल्म बनाई है। आतंकी नेक्सस चलाता है, जैसे पीएफआई प्रतिबंधित है अगर हम उसके बारे में बात करते हैं, अगर वो केरल में ऐसी गतिविधि चलाता है और उसके बारे में बताते हैं तो ये धर्म विशेष का मामला कैसे हो सकता है। धर्म से जोड़ना तो गलत है। 

सवाल- भगवान से जुड़े संवाद भी आपत्तिजनक बताए जा रहे हैं? 

सूर्यपाल- हम उनकी बात नहीं कर रहे जो सद्भाव से रहते हैं। राष्ट्रवादी मुस्लिम हैं। जो देश को देश मानते हैं। हम सब तो मिलकर रह ही रहे हैं। हम बात कर रहे हैं ऐसे लोगों की जो प्रतिबंधित संगठनों, आतंकी संगठनों के साथ हैं। वो तो ऐसे ही ब्रेनवॉश करेंगे न, हमने उनके शब्द कहे हैं। वो तो धर्म की गलत व्याख्या करेंगे, वो बरगलाने के लिए इस तरह का व्यवहार करेंगे। हमने उनके शब्द कहे हैं। हम ये नहीं कह रहे कि पूरा समाज ऐसी बात करता है। 

 


सवाल- विरोध करने वालों का कहना है कि फिल्म लोगों को धर्म के आधार पर बांटने का काम कर रही?

सूर्यपाल- अगर आप आतंकवादियों को अपना रिश्तेदार, नजदीकी समझते होंगे तो फिल्म आपको हर्ट करेगी। मान लीजिए हम हर साल रावण दहन करते हैं, हम तो बुराई का प्रतीक मानकर दहन कर रहे हैं। अब अगर कोई रावण को अपना ईष्ट मानता होगा, उसको रावण के पुतले जलने पर दर्द होगा, कि मेरे ईष्ट को जला दिया। अगर मैं या वो लोग रावण की बुराई को अपना नहीं मानेंगे तो उन्हें रावण दहन से कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए। मैं तो मानता हूं कि भारत देश में सभी धर्मों के लोग प्रेम-सद्भाव से रहते हैं। कुछ लोग होते हैं, जो भड़काने का काम करते हैं।

सवाल- टीजर लांच होने के बाद असल विवाद शुरू हुआ, उसके बाद किसी प्रकार की धमकी, जैसा कि आपकी टीम मेंबर को मिली थी? 

सूर्यपाल- बिलकुल। आपको बता दूं कि हमने फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर जब टीजर-पोस्टर जारी किए तो उनके कमेंटंस पढ़िए। सीधे तो धमकी तो देने से रहे। पर सोशल मीडिया पर ऐसे मामले सामने आए हैं, पर हम उन्हें जवाब नहीं दे सकते। हमारे पक्ष में बोलने वाले बहुत हैं। वो उन्हें जवाब दे देते हैं। हमें नहीं पता धमकी देने वाले कौन हैं , पर उनके नाम के आगे काले झंडे बने होते हैं, अरबी-फारसी में लिखा होता है। हम तो उन्हें ब्लॉक कर देते हैं। हमें तो जिन्हें संदेश देना है, उन्हें पहुंच रहा है। यही हमारा मकसद भी है। 

 


सवाल- सियासी विरोध भी शुरू हो गया है, कहा जा रहा है कि फिल्म किसी प्रोपैगेंडा को सेट कर बनाई गई है? 

सूर्यपाल- पहले तो ये समझिए कि प्रोपेगैंडा क्या होता है। सब अपना-अपना मतलब ढूंढ लेंगे तो फिल्म तो प्रोपेगैंडा ही लगेगी। यदि हमने बात कही है कि कुछ लोग धर्म की गलत व्याख्या करते हुए गलत तरीके से धर्मांतरण कर रहे हैं। हम बात वुमन ट्रैफिकिंग की कर रहे हैं। तो मुझे नहीं लगता कि कोई प्रोपेगैंडा जैसा कुछ है भी। मैं तो कहता हूं पहले फिल्म तो देखो, जो भी विरोध कर रहे हैं वो फिल्म तो देखें, सारे मुगालते दूर हो जाएंगे। जैसा कवर देखकर किताब का अंदाजा लगाया जा रहा है, वैसा बिलकुल नहीं है। फिल्म को जब मैंने लिखा तो लिखकर छोड़ नहीं दिया, न जाने कितनी बार उसकी बार-बार ड्राफ्टिंग की, कई लोगों के फीडबैक लिए, फिल्म बन जाने के बाद भी रीचेक किया। ऐसा न हो कि फिल्म किसी को आहत कर दे। हमारे सारे फिल्टर लगाकर फिल्म रीलीज की गई है। यदि फिर भी किसी को आपत्ति हो रही है तो आप ये देखिए कि उसका प्रतिशत कितना है। आप प्रोगेशन देखिए, हमने कोई बड़ा प्रमोशन नहीं किया फिर भी लोग प्यार दे रहे हैं। रात दो बजे तक के शो फुल जा रहे हैं। लगता है कि पसंद करने वाले ज्यादा है जो विरोध कर रहे हैं वो एक प्रतिशत भी नहीं होंगे। लोग तो आतंकवादियों के लिए भी कोर्ट चले जाते हैं, तो उसका तो कुछ नहीं कर सकते। 

सवाल- कश्मीर फाइल्स की तरह फिल्म विवादों में आएगी, ऐसा अंदाजा आपको कहानी लिखते समय हुआ होगा? 

सूर्यपाल- हमारीा मुद्दा संवेदनशील है। कश्मीर फाइल्स में तो जो हो चुका है वो हम दिखा रहे थे। उनका क्लीयर था। हम बता रहे हैं कि जो हो रहा है, जो होगा भी शायद। यदि हम अभी अवेयर नहीं हुए तो आगे स्थिति और बिगड़ेगी। हमारा तो मामला आर या पार वाला था। या तो हमारा करियर ही खत्म हो जाता। यदि पब्लिक हमें नकार देती तो हमारा तो भविष्य पता था। या फिर ऐसा था कि हम जो दर्द दिखाना चाहते हैं, वो जनता तक पहुंच रहा है तो हम सफल होते। हमारा क्लीयर था कि या तो हम आगे बढ़ेंगे या थम जाएंगे। और आप सही कह रहे हैं कि कश्मीर फाइल्स हमारे दिमाग थी। लेकिन वो हमसे अलग थी। उस फिल्म में सीधा-सीधा हिंदू-मुस्लिम दिखेगा पर हमारी कहानी में ऐसा नहीं दिखेगा। 

 



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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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