Shocking revelations in the ASI survey report on Bhojshala | भोजशाला पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सर्वे रिपोर्ट: करीब 90 मूर्तियां व उससे जुड़े अवशेष मिले; मुख्य परिसर के नीचे पुराने स्ट्रक्चर के प्रमाण – Indore News

मध्यप्रदेश धार जिले में भोजशाला को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट सामने आ गई है। दैनिक भास्कर के पास रिपोर्ट की कॉपी का हिस्सा है। इससे हिंदू पक्ष राहत महसूस कर सकता है। इसकी वजह मुख्य रूप से अधिकतर प्रमाण मूर्तियों, संस्कृत आधारित शिलालेख
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रिपोर्ट में दावा किया गया है कि निर्माण परमार कालीन के आसपास का ही है। 90 से ज्यादा प्रमाण ऐसे मिल गए हैं, जो मूर्तियों की ओर इशारा कर रहे हैं। भोजशाला का मुख्य कैंपस किसी स्ट्रक्चर पर निर्मित हुआ है, इसके भी प्रमाण खुदाई में मिली दीवार से दिखते हैं। मामले में अब हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में 22 जुलाई को सुनवाई होगी।
इधर, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि रिपोर्ट पर अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट को ही करना है।
वसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा के लिए हिंदू पक्ष को भोजशाला में पूरे दिन पूजा और हवन करने की अनुमति है। ये हवन कुंड भोजशाला के बीच में है।
जो बड़ी बात, रिपोर्ट में सामने आई
रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे के दौरान खुदाई में मिले “विभिन्न धातुओं के सिक्के और मूर्तियां परमारकालीन राजा भोज (परमारकालीन) के समय की हैं। वैज्ञानिक जांच और जांच के दौरान बरामद पुरा-तात्विक अवशेषों के आधार पर पहले से मिला स्ट्रक्चर “परमार काल का हो सकता है। स्तंभ और अर्ध स्तंभों की कला और वास्तुकला से यह कहा जा सकता है कि वे पहले के मंदिरों का हिस्सा थे और बेसाल्ट के ऊंचे मंच पर मस्जिद के स्तंभों को बनाते समय उनका पुन: उपयोग किया गया है।”
एएसआई की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्तमान संरचना में संस्कृत और प्राकृत में कई शिलालेख हैं, जो इस स्थल (भोजशाला) के ऐतिहासिक, साहित्यिक और शैक्षणिक महत्व को उजागर करते हैं। सर्वे टीम को एक शिलालेख मिला, जिसमें परमार वंश के राजा नरवरमन का उल्लेख है, जिन्होंने 1094-1133 ई. के बीच शासन किया था।

भोजशाला पर हिंदू-मुस्लिम का अलग दावा
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित 11वीं शताब्दी के इस स्मारक को हिंदू और मुसलमान अलग-अलग तरह से देखते हैं। हिंदू इसे वाग्देवी (देवी सरस्वती) को समर्पित मंदिर मानते हैं, जबकि मुसलमान इसे कमाल मौला मस्जिद मानते हैं।
चूना पत्थर, बलुआ पत्थर से तैयार निर्माण की झलक : रिपोर्ट
ASI की रिपोर्ट ने भोजशाला परिसर की जांच के दौरान 94 मूर्तियों, मूर्तिकला के टुकड़ों और जटिल नक्काशी वाले वास्तुशिल्प तत्वों की खोज का खुलासा किया।
रिपोर्ट में पाया गया कि ये कलाकृतियां बेसाल्ट, संगमरमर,सिस्ट, सॉफ्ट स्टोन, बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से तैयार की गई थीं, जो साइट की कलात्मक विरासत की एक झलक प्रदान करती हैं। इन पर उकेरी गई छवियों में गणेश, ब्रह्मा और उनकी पत्नियां, नृसिंह, भैरव, देवी-देवता, मानव और पशु आकृतियां शामिल थीं।

यदि निर्माण परमारकालीन तो एक्सपर्ट क्या कहते हैं
पुरातत्व विभाग के उपसंचालक डॉ.प्रकाश परांजपे बताया “परमार काल 10वीं से 13वीं शताब्दी के बीच था। सिंधुराज इनके पहले राजा थे। इस वंश का सबसे प्रतापी राजा भोज परमार हुआ। जिसकी राजधानी धारा नगरी या धार हुआ करती थी। मालवा क्षेत्र का संपूर्ण भाग परमारों के अधीन था।
मध्यप्रदेश में क्षेत्रवार अलग-अलग राजा थे। सभी राजवंशों ने अपने क्षेत्र में मूर्तियों-मंदिरों का निर्माण करवाया। उस क्षेत्र की शैली-गत विशेषताएं अपनाई। परमारों के पहले प्रतिहारों ने यहां पर शासन किया। परमार काल में बलुआ पत्थर से ज्यादातर मूर्तियां बनाई गई हैं।
वे कहते हैं कि 11वीं-12वीं शताब्दी के बाद के काल में बेसाल्ट का भी उपयोग हुआ है, जो काले चमकदार पत्थर होते हैं। संगमरमर का भी उपयोग मूर्तियां बनाने में हुआ। परमार काल में बनी मूर्तियों का कमर के नीचे का हिस्सा उतना आकर्षक नहीं है, जितना कल्चुरी या चंदेल आर्ट में है। एक तरह से ये पहचान भी है कि इस तरह की मूर्तियां परमार काल की ही है।

हिंदू पक्ष का दावा है कि धार की भोजशाला का निर्माण राजा भोज ने करवाया था। यह विश्वविद्यालय हुआ करता था।
मुगलों के आने से पहले 13वीं शताब्दी तक था परमार राजाओं का शासन
– परमार काल के बाद मुगल-मुस्लिम आ गए। दिल्ली के क्षेत्र में तो 10वीं-11वीं शताब्दी से ही आने लगे थे। लेकिन मालवा में आने में उन्हें समय लगा। इसलिए 13वीं शताब्दी तक भले ही छोटे स्वरूप में रहे हो, परमार यहां पर शासन करते रहे। उसके बाद परिस्थितियां और शासन बदला।
यह भी कहती है एएसआई की रिपोर्ट
- चांदी, तांबे, एल्यूमीनियम और स्टील के कुल 31 सिक्के, जो इंडो-सासैनियन (10वीं-11वीं सदी), दिल्ली सल्तनत (13वीं-14वीं सदी), मालवा सुल्तान (15वीं-16वीं सदी), मुगल (16वीं-16वीं सदी) काल के हैं।
- 18वीं शताब्दी), धार राज्य (19वीं शताब्दी), ब्रिटिश (19वीं-20वीं शताब्दी), और स्वतंत्र भारत, वर्तमान संरचना में और उसके आसपास जांच के दौरान पाए गए थे।
- साइट पर पाए गए सबसे पुराने सिक्के इंडो-सासैनियन हैं, जो 10वीं-11वीं शताब्दी के हो सकते हैं, जब परमार राजा धार में अपनी राजधानी के साथ मालवा में शासन कर रहे थे।
- जांच के दौरान कुल 94 मूर्तियां, मूर्तिकला के टुकड़े और मूर्तिकला चित्रण के साथ वास्तुशिल्प सदस्य देखे गए। वे बेसाल्ट, संगमरमर, शिस्ट, नरम पत्थर, बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से बने हैं।
- खिड़कियों, खंभों और प्रयुक्त बीमों पर चार सशस्त्र देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई थीं।
- उकेरी गई छवियों में गणेश, ब्रह्मा अपनी पत्नियों के साथ, नृसिंह, भैरव, देवी-देवता, मानव और पशु आकृतियां शामिल हैं।
- विभिन्न माध्यमों में जानवरों की छवियों में शामिल हैं – शेर, हाथी, घोड़ा, कुत्ता, बंदर, सांप, कछुआ, हंस और पक्षी।
- पौराणिक और मिश्रित आकृतियों में विभिन्न प्रकार के कीर्ति मुख मानव चेहरा, सिंह चेहरा, मिश्रित चेहरा शामिल हैं; विभिन्न आकृतियों का व्याला, आदि।
- चूंकि कई स्थानों पर मस्जिदों में मानव और जानवरों की आकृतियों की अनुमति नहीं है, इसलिए ऐसी छवियों को तराशा गया है या विकृत कर दिया गया है।
- इस तरह के प्रयास पश्चिमी और पूर्वी स्तंभों में स्तंभों और भित्ति स्तंभों पर देखे जा सकते हैं; पश्चिमी उपनिवेश में लिंटेल पर; दक्षिण-पूर्व कक्ष का प्रवेश द्वार, आदि।
- पश्चिमी स्तंभों में कई स्तंभों पर उकेरे गए मानव, पशु और मिश्रित चेहरों वाले कीर्ति मुख को नष्ट नहीं किया गया था।
- पश्चिमी स्तंभ की उत्तर और दक्षिण की दीवारों में लगी खिड़कियों के फ्रेम पर उकेरी गई देवताओं की छोटी आकृतियां भी तुलनात्मक रूप से अच्छी स्थिति में हैं।
- वर्तमान संरचना में और उसके आस-पास पाए गए कई टुकड़ों में समान पाठ शामिल है। और पद्य संख्याएं, जो सैकड़ों की संख्या में हैं, सुझाव देती हैं कि ये रचनाएँ लंबी साहित्यिक रचनाएँ थीं।
- पश्चिमी स्तंभ में दो अलग-अलग स्तंभों पर उत्कीर्ण दो नाग कामिका शिलालेख व्याकरणिक और शैक्षिक रुचि के हैं।
- ये दो शिलालेख एक शिक्षा केंद्र के अस्तित्व की परंपरा की ओर संकेत करते हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि इसकी स्थापना राजा भोज ने की थी।
- एक शिलालेख के शुरुआती छंद में परमार वंश के उदयादित्य के पुत्र राजा नरवर्मन (1094-1133 ई. के बीच शासन किया) का उल्लेख है।
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धार की भोजशाला और कमाल मौलाना मस्जिद परिसर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने अपनी सर्वे रिपोर्ट सोमवार को इंदौर हाईकोर्ट में पेश कर दी। रिपोर्ट में बताया है कि मस्जिद का निर्माण पहले के मंदिरों के हिस्सों का उपयोग करके बनाया गया है।
98 दिनों के साइंटिफिक सर्वे के दौरान मिले अवशेषों के आधार पर पहले से मौजूद स्ट्रक्चर परमार (राजवंश) काल की हो सकती है। पढ़ें पूरी खबर
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