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बेटी से रेप के दोषी को सुप्रीम कोर्ट ने दी सजा, जेल में बिना किसी छूट के काटेगा 20 साल

नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने नौ-साल की बेटी से बलात्कार के दोषी व्यक्ति को बिना किसी छूट के 20 साल के कारावास की सजा सुनाई और कहा कि दोषी पिता के कुकर्म और दुराचारी गतिविधियों के कारण रिश्तों की पवित्रता तहस-नहस हुई है. राष्ट्रीय राजधानी की एक विशेष फास्ट ट्रैक अदालत ने 2013 में इस व्यक्ति को दोषी ठहराया था और उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार), 377 (अप्राकृतिक यौन अपराध) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत दोषी ठहराया था और जुर्माने के साथ 20 साल की न्यूनतम अवधि के आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2017 में आरोपी पिता की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा था. अपराधी पिता ने संविधान के अनुच्छेद 136 का हवाला देते हुए इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था, जो विशेष अनुमति याचिकाओं की अनुमति देने के लिए शीर्ष अदालत को विवेकाधीन शक्तियां प्रदान करता है. जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि व्यक्ति को अपनी ही बेटी के शारीरिक शोषण जैसे ‘राक्षसी और भयावह’ प्रकृति के अपराधों में से एक का दोषी पाया गया है. न्यायालय ने कहा कि उस वक्त पीड़िता ने तो किशोरावस्था में भी प्रवेश नहीं किया था.

कारावास कम से कम 20 साल का होगा तो न्याय का उद्देश्य पर्याप्त रूप से पूरा होगा
फैसले में कहा गया है, ‘चौदह साल की जेल के बाद रिहाई की स्थिति में पीड़िता के जीवन में दोषी पिता का पुन: प्रवेश संभव होगा और इससे उसे आघात पहुंच सकता है तथा उसका जीवन एक बार फिर परेशानियों भरा हो सकता है.’ पीठ ने कहा, ‘यदि अपीलकर्ता का आजीवन कारावास कम से कम 20 साल का होगा तो न्याय का उद्देश्य पर्याप्त रूप से पूरा होगा.’ न्यायालय ने कहा कि यह निश्चित अवधि के आजीवन कारावास को संशोधित अवधि की विशेष सजा देने के लिए इस अदालत में निहित शक्ति के प्रयोग का एक उपयुक्त और योग्य मामला है. शीर्ष अदालत ने दोहराया कि कारावास की किसी विशिष्ट अवधि के लिए संशोधित सजा देने की शक्ति का प्रयोग केवल उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय द्वारा ही किया जा सकता है. पीठ ने, हालांकि स्पष्ट किया कि इस तरह की शक्ति का प्रयोग गंभीर मामलों तक ही सीमित होना चाहिए.

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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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