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विधानसभा में 35 साल से अधूरे पड़े महेश्वर परियोजना का मामला कसरावद विधायक और पूर्व मंत्री सचिन यादव ने बुधवार को उठाया। उन्होंने ध्यानाकर्षण के माध्यम से परियोजना के पुनर्वास, कर्मचारियों के हक और संपत्ति नीलामी पर सरकार से जवाब मांगा।
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विधायक ने बताया कि इस परियोजना पर जनता के लगभग 3,000 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। वर्तमान में इसकी कीमत 9,500 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। इसके बावजूद परियोजना बंद पड़ी है। इससे जुड़े लगभग 10 हजार परिवार और सैकड़ों कर्मचारी अनिश्चितता में जीवन यापन कर रहे हैं।
सचिन यादव ने कहा कि डूब प्रभावित सैकड़ों गांव आज भी पुनर्वास और मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। प्रभावितों को आवासीय प्लॉट आवंटित किए गए हैं। लेकिन आज तक उनकी रजिस्ट्री नहीं हुई है।
परियोजना के कर्मचारियों और अधिकारियों को वेतन नहीं मिला है। इस कारण अधिकांश ने परियोजना स्थल छोड़ दिया है। अब यह स्थल लावारिस स्थिति में पड़ा है। सरकार ने परियोजना से जुड़ी संपत्तियों की नीलामी की बात कही है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि उस राशि का उपयोग कहां और कैसे होगा।
परियोजना को 2020 में बंद घोषित किया गया था। लेकिन यह भी स्पष्ट नहीं है कि इसे पुनः प्रारंभ किया जाएगा या नहीं। विधायक ने यह भी पूछा कि डूब प्रभावित क्षेत्रों को ग्राम पंचायतों को कब तक हस्तांतरित किया जाएगा। और मूलभूत सुविधाएं कब तक पूरी होंगी। उन्होंने यह भी जानना चाहा कि इन गांवों के लिए कोई विशेष पैकेज देने की योजना है या नहीं।
विधायक ने कहा कि यह मामला जनता की गाढ़ी कमाई और उनके जीवन के साथ सीधा अन्याय है। उन्होंने सरकार से इस मुद्दे पर स्पष्ट नीति, समयबद्ध कार्रवाई और प्रभावितों को न्याय देने की मांग की। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इस मामले में शीघ्र निर्णय नहीं लिया तो यह मुद्दा जन आंदोलन का रूप ले सकता है।
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