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इंदौर के आर्किटेक्ट अभिषेक गौतम ने अपने शरीर पर 636 टैटू बनवाए हैं।
कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर जवानों के लिए एक आर्किटेक्ट ने अपने शरीर पर उनके नामों के टैटू बनवाए हैं। पंडित अभिषेक गौतम के शरीर पर 636 नामों के टैटू के साथ ही 11 महापुरुषों के भी टैटू हैं। दैनिक भास्कर ने उनसे खास बातचीत की और उनके टैटू बनवाने के ज
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चलिए जानते है उन्होंने क्या कुछ कहा…

सवाल – कैसे इसकी शुरुआत हुई। इसके पीछे की क्या कहानी है ? जवाब – हमारी संस्कृति में इसका उल्लेख किया जाता है। हमारे में इसे लीला गुदवाना कहा जाता है। शरीर पर भगवान के नामों को गुदवाया जाता था। हम पूर्वजों और बड़ों के हाथ पर देवी-देवता के नाम गुदे देखते थे। यह हमारी प्राचीनकाल की सभ्यता का हिस्सा रहा है। कारगिल एक ऐसा युद्ध था जिसे जीत पाना असंभव था क्योंकि वहां की क्लाइमेट कंडीशन इतनी कठिन है। जिसे आप आसानी से जीत नहीं सकते थे। दूसरा दुश्मन की जो प्लेसमेंट थी वह हजारों फीट ऊपर थी और हमें नीचे से जाकर उन्हें चोटियों से हटाना था।
आप सोचिए ऊपर चढ़ते हुए व्यक्ति पर पत्थर भी मारता था तो गोली के बराबर असर करता था, उन सब स्थिति के बाद भी हमने युद्ध को जीता और युद्ध को जीतने में जितने भी हमारे वीर बहादुरों ने अपना बलिदान दिया उसमें औसतन आयु 25 वर्ष से अधिक नहीं थी। मैं जब 26-27 साल का ही था तो मुझे लगा कि मैं तो अपनी उम्र से आगे निकल आया हूं।
मैंने सर्वप्रथम कारगिल की कहानी सुनी थी और उसके लिए डोनेशन भी एकत्रित किए थे। हम बच्चे थे, बलिदान की परिभाषा नहीं पता थी, त्याग क्या होता था, लेकिन जब उस त्याग को समझा तो एक छोटा सा त्याग मैंने किया कि अपना शरीर मैंने वीरों के नाम किया और कारगिल शहीदों के नाम टैटू के रूप में लिखवाए।
सवाल – कैसे इसकी शुरुआत, अपने परिवार को भी नहीं बताया था ? जवाब – 2015 में पहली बार कारगिल और लेह लद्दाख की कठिन चढ़ाइयों पर गया। आर्किटेक्ट के रूप में मैं जो काम करता हूं तो हर प्रोजेक्ट के बाद शांति और प्रकृति से मिल मिलाप के लिए सोलो राइड पर चला जाता हूं। पहली बार जब कारगिल गया तो वहां देखा कि इतनी कठिन परिस्थिति में भी ये लोग सहज तरीके से रहते हैं।
हमारे देश की सुरक्षा करते हैं। ऐसी-ऐसी चोटियां हैंं जो कारगिल के समय में जीती गई थीं। जिस समय शीतकालीन प्रभाव के कारण कह दिया जाता था आप नीचे उतर जाइए, लेकिन कारगिल युद्ध के बाद अब सब चोटियों पर हमारे फौजी भाई हमेशा रहते हैं। आप यकीन माने की सात महीने तक उन्हें नीचे आने का मौका नहीं मिलता है।

टैटू बनाने के पहले 1 साल प्रिपरेशन की, क्योंकि हर चीज की तैयारी करना पड़ती है क्योंकि घर से छुपना भी था क्योंकि ये ऐसी चीज है कि इतना बड़ा काम करने जाना था इसमें घर वालों से शरीर भी छुपाना था और पॉकेट भी छुपाना थी। इसलिए एक साल की तैयारी की।
मेरे एक मित्र थे उनके ऑफिस के बेसमेंट को हमने लगातार 11 दिन ये टैंट बनवाए। उस समय मैंने 444 नाम लिखवाए थे तब उतने ही नाम मिले थे। बाद में कारगिल वॉर मैमोरियल गया तो वहां बाकी के नाम फिर गुदवाए।
सवाल – अभी कौन-कौन से टैटू आपके शरीर पर हैं? जवाब – टोटल 636 नाम मेरे शरीर पर अंकित है, जिसमें ऑपरेशन पराक्रम में जितने शहीद हुए है उनके परिवारों से मैं मिलता हूं परिवार से मिलने के बाद उनके बेटे या पति के नाम अंकित कराता हूं। ऐसे कुल मिलकर 636 नाम है और 11 महापुरुषों के चित्र है जिसमें चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, महारानी लक्ष्मीबाई, महात्मा गांधी, गुरुगोविंद सिंह ऐसे तमाम महापुरुष जिनसे कभी ना कभी कोई शिक्षा ली है।
सवाल – शहीद परिवार के लोगों से आप मिले, क्या वाकये रहे हैं? जवाब – शहीद के परिवारजन मिलते हैं तो बहुत भावुक हो जाते हैं। ये ऐसी चीज है कि किसी ओर बच्चे ने आपके बच्चे को आत्मसात किया है। बहुत भावुक पल रहता है। सभी ने उस चीज को छू कर फील किया है। उस नाम को टच कर गर्व महसूस किया है और मुझे भी कराया है।
एक वाकया उन्होंने बताया कि कैप्टन अमोल सर के पिता से जब मेरी बात हो रही थी तो उन्होंने बताया कि कई बार गर्व की अनुभूति भी होती है, लेकिन कई बार सोचता हूं कि मेरी वजह से ही मेरा बेटा मेरी साथ नहीं है। उन्होंने बताया कि जब बेटे ने 12th पास की तो इंजीनियरिंग, मेडिकल और एनडीए तीनों क्रैक किए थे, बेटे से उसकी प्रेफरेंस पूछी की किसमें जाना चाहते हो।
बेटे ने पहला मेडिकल, दूसरा इंजीनियरिंग और तीसरा फौज में जाना बताया। मैंने कहा कि क्यों ना इसे उल्टा कर दे। बेटे ने भी यहीं कहा कि आप जैसा बोले। वे चाहता थे कि उनका बेटा नेशन को सर्व करें। इसलिए उन्होंने बाकी दोनों ऑप्शन को त्याग करके इंडियन आर्मी को ज्वाइन किया और कारगिल युद्ध में उन्होंने वीरगति को प्राप्त किया और वीर चक्र प्राप्त किया।

सवाल – युवाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं? जवाब – जब माता-पिता अकेले अपने बेटे का इंतजार करते हैं तो उससे बड़ा दुख कोई नहीं होता है। मैं चाहता हूं कि जो वीर परिवार है उनका भी आप हिस्सा बनिए। जिस परिवार के बच्चे सीमा पर हैं, हमारी सुरक्षा कर रहे हैं। अपने त्योहारों में नहीं आ पाते हैं, आप उनके घर जाकर उनका बेटा बनिए। उनके साथ त्योहार सेलिब्रेट करें। रही बात नाम लिखवाने वाली तो मैं नहीं चाहता हूं कि एक भी वीर जवान पर कोई आंच आए। नहीं चाहता हूं कि किसी मां का लाल शहीद हो।
मैं जब शहीद परिवारों से मिलता हूं तो कई बार ऐसा होता है कि वे मेरा शरीर देखते हैं। तब प्रश्न आता है कि क्या उनके बेटे ने कारगिल के वीर योद्धाओं के बराबर काम नहीं किया था जो नाम नहीं लिखवाया इसलिए नाम बढ़ रहे हैं।
अभी तक 25 हजार सैनिकों ने शहादत दी है और मेरा सफर बहुत छोटा सा सफर है। इस जिंदगी में पूरा नहीं हो पाएगा। आज मैं 700 परिवार के टच में हूं। जब भी मेरी जरूरत उन्हें होती है तो मैं उनके साथ होता हूं।
सवाल – परिवार से मिलते है तो उनकी क्या भावना रहती है क्या वे आपको बेटे की तरह समझते, क्या कुछ बात होती ? जवाब – ये भावुक प्रश्न है क्योंकि जब मैं सोचता हूं ना कि मुझे क्या प्राप्त हुआ है। कैप्टन मनोज कुमार पांडे जी की जो माता जी थी जिस प्रकार से मुझे प्यार करती थी, मुझे भैय्या जी कहती थी। मुझे हर 10-15 दिनों में फोन करते थे उनके जाने के बाद मैंने अपनी मां को खोया। फिर विक्रम बत्रा जी की जो माता जी थी पिछले साल हमने उन्हें भी खोया।
उनका भी यह था कि पालमपुर आया तो बिना मिले नहीं जाना। वो प्यार, वो अनुभूति वो आवाज जिस प्रकार से वह अभिषेक कह कर पुकारती थी मैं वह भूला ही नहीं सकता हूं। मेरी माताओं को मेरी जरूरत है उस वक्त मैं उनके पास नहीं रहूं तो जो मैं सब कर रहा हूं वह सब झूठ होगा। मैं कभी ऐसी गलती ना करुं जिससे मुझे अपने आप पर शर्म आए। मैं उन परिवार को काफी मानता हूं। बहुत सारी कहानियां है। ये सफर 8 साल का है।
सवाल – ऐसा क्या रहा कि आप वहां गए, सब देखा और ये निर्णय लिया ?

सवाल – परिवार को भी टैटू को जानकारी नहीं थी ? जवाब – जब टैटू कराया तो उस दौरान मैं बाहर भी नहीं रह सकता था, क्योंकि मुझे मेडिकल कंडिशन भी फेस करना पड़ सकती थी। मैं ड्राइंग रूम में तीन से साढ़े तीन महीने रहा हूं, क्योंकि टैटू को हील होने में हफ्तेभर का समय लगता है, लेकिन ये 11 दिन का प्रोसेस था। सूजन के ऊपर टैटू बनते थे, तो लगभग तीन महीने मुझे ध्यान रखना पड़ा क्योंकि एक भी टैटू उसमें खराब होता वह पूरा एरिया खराब हो जाता और मुझे बहुत ज्यादा परेशानियां उठाना पड़ती। मेरे मित्र की वाइफ डॉक्टर है उन्होंने तो साफ मना कर दिया था कि ये क्या करवाया है। तुम्हें कुछ भी हो सकता है। दोस्त की भाभी ने भी मुझे चेताया था, क्योंकि उन्हें टैटू को बारे में जानकारी थी, लेकिन मैं उनके लिए कुछ करना चाहता था, अगर मैं वह कठिनाइयों से रुकता तो आज मैं देश का लाल नहीं होता।
सवाल – आगे कि क्या प्लानिंग है ? जवाब – मैंने कोशिश की मैं वीर जवानों की यादों को संजो कर रखूं। 26 साल हो गए है कारगिल को ओर शहीदों के माता-पिता कि उम्र 70 साल से ऊपर है, तो मैं उनकी बातों को और यादों को संजो रहा हूं। मैं चाहता हूं कि चिर काल तक उनकी कहानी को याद रखे, क्योंकि बच्चों को बहादुर माता-पिता ही बनाते है। माता-पिता ही जिन्होंने विक्रम बत्रा को विक्रम बत्रा, मनोज कुमार पांडे को मनोज कुमार पांडे बनाया है। ऐसे तमाम बहादुर है जिन्हें वीर बनाया है। मैं चाहता हूं कि वीर जवानों की अमरता को चिर कालीन तक अपना देश याद रखे तो उनके नाम का स्टैच्यू उनके स्टेट, जिले में या गांव में जरूर होना चाहिए। जिससे आने वाली पीढ़ी को उनके बारे में पता चल सके। सब मिलकर स्टैच्यू लगवा सकते है।
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