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उन्होंने कहा, “न्यायाधीशों और वकीलों को मिलकर देश के अंतिम नागरिक के लिए न्याय सुनिश्चित करना होगा. नालसा इसी दिशा में काम करता है. हम नालसा के काम को देश के दूरदराज के इलाकों तक ले जाने की कोशिश कर रहे हैं-चाहे वह लद्दाख हो, पूर्वोत्तर हो या राजस्थान. जब तक लोगों को अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं होगा, तब तक इन अधिकारों का कोई मतलब नहीं है.”
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि नालसा को यह सुनिश्चित करने का अपना काम जारी रखना चाहिए कि देश के सुदूरवर्ती क्षेत्र के अंतिम निवासी को संविधान में निहित न्याय मिले. उन्होंने कहा, “देश के संविधान के जरिये हमने खुद से राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर न्याय का वादा किया है. हमारा दायित्व है कि हम न्याय को उसकी सच्ची भावना के अनुरूप लागू करें. कानूनी बिरादरी को संविधान के सच्चे मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए.”
उन्होंने कहा, “मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपने गृहनगर आ गया हूं. मुझ पर बरस रहे प्यार और स्नेह के लिए मैं आपका आभारी हूं. मैं जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के सभी हिस्सों में घूम चुका हूं. यहां की सूफी परंपरा भारत के संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देती है. सभी धर्मों के लोग यहां दरगाहों, मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों पर आते हैं.” लद्दाख, कश्मीर और जम्मू के बार के प्रतिनिधियों की ओर से उठाए गए मुद्दों पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हालांकि उनके पास इन पर विचार करने का अधिकार नहीं है, लेकिन वह कॉलेजियम सहित संबंधित प्राधिकारियों तक यह बात पहुंचाएंगे.
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