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इंदौर में भारतीय जनता यूवा मोर्चा के महामंत्री धीरज ठाकुर पर इंदौर के बिल्डर के धमकाने का आरोप लगाया है। दरअसल, बिल्डर व कॉलोनाइजर अरविंद डोसी ने धीरज ठाकुर और अज्ञात बदमाशों के खिलाफ थाने में शिकायत की है। भाजयुमो से जुड़ा धीरज जमीनों की खरीद फरोख्त
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बिल्डर अरविंद डोसी के आरोप पर धीरज ठाकुर का कहना है कि यह आरोप पूरी तरह से झुठे है। मेरी छवी धुमिल करने के लिए यह साजिश की जा रही है। मैं इस मामले में बिल्डर को मानहानी का नोटिस जारी करूंगा। वहीं धीरज ने इस मामले में पुलिस कमिश्नर को भी पत्र लिखा है। धीरज का कहना है कि डोसी को धमकाने वाले बदमाश उसने नहीं भेजे थे। वहीं जिस जमीन की बात की जा रही है वह विवादित जमीन उसके रिश्तेदारों की है। बताया जा रहा है कि करोड़ों रुपए कीमती जमीन के विवाद में सशस्त्र गुंडे कालोनाइजर के आफिस में घुस गए थे। बिल्डर का आरोप है कि भाजयुमो के इशारे पर पहुंचे गुंडों ने कॉलोनाइजर को धमकाया और नेता से बात करवाई। वहीं इस पूरे मामले की जांच तुकोगंज पुलिस कर रही है। डोसी की शिकायत पर पुलिस ने सीसीटीवी जब्त कर लिए हैं।
अपने पत्र में यह लिखा धीरज ने
मुझे विभाग द्वारा सूचना दी गई थी कि, अरविंद डोसी पिता शांतिप्रिय डोसी, निवासी 203, शिवओम कॉम्प्लेक्स, 578, एमजी रोड द्वारा मेरे विरूद्ध पुलिस उपायुक्त तथा पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में शिकायत दर्ज करवाई है। अतः इस शिकायत पत्र को खारिज करने हेतु विधिक आधार उल्लेखित करते हुए श्रीमान् के समक्ष मेरा पक्ष प्रस्तुत करने हेतु निम्नानुसार कथन प्रस्तुत है ताकि
(1) यह कि, प्रार्थी द्वारा प्रार्थना पत्र में लिखा है कि, वे बीस वर्ष से व्यापार कर रहे हैं, जो उनका व्यक्तिगत तथ्य होकर मेरा इससे कोई संबंध नहीं है। इसके पश्चात् लिखा गया है कि, कुछ आपत्तिजनक लोगों द्वारा उन्हे डराने, धमकाने और जान से मारने की धमकी दी जा रही है। ये लोग कौन है प्रार्थी द्वारा स्पष्ट किये बिना मुझ पर झूठे आरोप लगाए हैं।
(2) यह कि, मैं भारतीय जनता पार्टी का पदाधिकारी हूं तथा मेरी छवि पूर्ण रूप से स्वच्छ और निर्विवादित होने से दुर्भावनावश अरविंद डोसी द्वारा मेरी छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से एक झूठा और मनगढ़ंत शिकायत पत्र प्रस्तुत किया गया है, जिसमें मेरे विरुद्ध जान से मारने की धमकी देना, गुंडों को भेजना, एवं जमीन के सौदे में दबाव बनाना’ जैसे गंभीर असत्य आरोप लगाए गए हैं।
(3) यह कि, मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ किः-
(क) दिनांक 21 जुलाई 2025 को मैं स्वयं तथा मेरे समस्त कर्मचारी अपने कार्यालय में उपस्थित थे, जिसका सीसीटीवी फुटेज मेरे द्वारा पैन ड्राईव के माध्यम से प्रस्तुत किया है। पैन ड्राईव संलग्न कर प्रस्तुत है।
(ख) अरविंद डोसी द्वारा प्रस्तुत किये सीसीटीवी फुटेज का उल्लेख किया गया है, वह या तो पुरानी हैं (संभवतः अप्रैल माह की) अथवा किसी और दिन की हैं, जिसकी सत्यता की स्वतंत्र जांच आवश्यक है। प्रार्थी चूंकि रियल स्टेट का कार्य करतें हैं, अतः उनके कार्यालय में इस क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति, ब्रोकर, एजेंट का आना जाना लगा रहता है, इसका तात्पर्य कतई यह नहीं है कि, किन्ही लोगों को मेरे द्वारा उनके कार्यालय में धमकाने के उद्देश्य से भेजा गया हो। मेरे द्वारा किसी को भी प्रार्थी के कार्यालय में किसी भी उद्देश्य के लिये भेजा नहीं गया है।
(ग) प्रश्नाधीन भूमि के संबंध में पंजीकृत विकास अनुबंध किसानों और प्रार्थी बिल्डर के मध्य हुआ था, न कि मेरे द्वारा या मेरी किसी कम्पनी द्वारा। मेरा इस भूमि से कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लेन-देन नहीं है, न ही मैंने कभी उक्त शिकायतकर्ता से कोई व्यक्तिगत या व्यावसायिक संबंध रखा है जिससे मुझे कोई स्वार्थ सिद्ध हो। उक्त आरोप निराधार, बिना किसी कानूनी साक्ष्य के तथा मेरी छवि को धूमिल करने का प्रयास है। इस संबंध में माननीय न्यायालय क साईटेशन क अनुसार राम लाल बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान, 2002 CriLJ 1607 के प्रकरण में स्पष्ट किया है कि, भूमि सम्बन्धी विवाद मूलतः दीवानी प्रकृति के होते हैं और ऐसे मामलों में आपराधिक कार्यवाही चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
(घ) यह कि, शिकायत का मूल विवाद एक रजिस्टर्ड भूमि विकास अनुबंध (Registered Development Agreement) से संबंधित है। यह स्पष्ट रूप से एक सिविल प्रकृति का विवाद है, जिसमें Transfer of Property Act, Contract Act इत्यादि के अंतर्गत कार्यवाही अपेक्षित है, न कि BNS के अंतर्गत । कथित धमकी के कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है और न तो धमकी के समय की कॉल रेकॉर्डिंग, ऑडियो, वीडियो, गवाह या कोई अन्य ठोस साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं। केवल पुराने सीसीटीवी का उल्लेख किया गया है, जिसकी सत्यता भी संदिग्ध है तथा इसमें मेरी कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संलिप्तता सिद्ध नहीं होती है। इस संबंध में माननीय न्यायालय क साईटेशन क अनुसार State of Rajasthan vs. Kashi Ram, (2006) 12 SCC 254 में स्पष्ट किया गया है कि, “बिना उचित और युक्तिसंगत कारण के दुर्भावनापूर्ण एवं झूठी अभियोजन (Malicious Prosecution) कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इस संबंध में माननीय न्यायालय क साईटेशन क अनुसार में स्पष्ट किया गया है कि, “बहुत देर से लाए गए साक्ष्य का स्वाभाविक रूप से संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है, विशेषकर जब उसका कोई तत्काल कारण न दिखाया जाए। जब मुझ धीरज ठाकुर का उक्त भूमि के सौदे या शिकायतकर्ता से प्रत्यक्ष संबंध सिद्ध नहीं होता है, तो उन्हें जान से मारने की धमकी देने का मुझ पर आरोप विद्वेषपूर्ण तथा छवि को मलीन करने से परिपूर्ण है। इसमें पूर्व नियोजित बदनामी (Malicious Prosecution) का संदेह उत्पन्न होता है, शिकायतकर्ता ने केवल व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा के चलते यह झूठा प्रकरण दर्ज कराया है, अतः यह दुर्भावनापूर्ण अभियोजन (malicious prosecution) की श्रेणी में आता है। मेरे द्वारा पूर्व से पर्याप्त रियल स्टेट के कार्य किये जा रहें है तथा मैं मेरे कार्य के प्रबंधन में ही इतना व्यस्त हूं कि, किसी अन्य के विधिपूर्ण विकास अनुबंध में अनुचित हस्तक्षेप करने की सोच भी नहीं सकता हूं। West Bengal State Electricity Board vs Dilip Kumar Ray, (2007) 14 SCC 568 के प्रकरण में माननीय न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया गया है कि, “बिना उचित और युक्तिसंगत कारण के दुर्भावनापूर्ण एवं झूठा अभियोजन (Malicious Prosecution) कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।”
अतः महोदय से निवेदन है कि, कृपया इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच की जाए तथा मेरे खिलाफ लगाए गए झूठे आरोपों को खारिज किया जाए। साथ ही ऐसे झूठे आवेदन देने वालों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाए।
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