Home अजब गजब Zomato Success Story| Success Story of Zomato| जोमैटो सक्सेस स्टोरी

Zomato Success Story| Success Story of Zomato| जोमैटो सक्सेस स्टोरी

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Success Story: सुनील को देर रात भूख लगी तो उसने फटाफाट फूड डिलीवरी ऐप Zomato खोला और बस 10 मिनट में खाना ऑर्डर कर लिया. इसके बाद 25-30 मिनट में उसके घर पर वो खाना डिलीवर हो गया. फूड डिलीवरी ऐप Zomato का यूज तो आपने भी कई बार किया होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई.

Zomato की कहानी तब शुरू हुई जब दीपिंदर गोयल और पंकज चड्ढा, जोकि आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र रह चुके थे, उन्होंने नई दिल्ली में बैन एंड कंपनी में काम करते समय ये देखा कि ऑफिस में बहुत से लोग सिर्फ मेनू कार्ड देखने के लिए लंबा इंतजार कर रहे थे. यहीं से उनके मन में एक समाधान खोजने का विचार आया और इसी सोच ने ‘फूडीबे’ नाम के एक प्लेटफॉर्म की नींव रखी.

इस तरह शुरू हुआ ‘Zomato’

उन्होंने अलग-अलग रेस्टोरेंट के मेनू कार्ड को स्कैन करके वेबसाइट पर अपलोड करना शुरू किया और ऑफिस के लोग इन डिजिटल मेनू का इस्तेमाल करने लगे जिससे सबका समय बचने लगा. धीरे-धीरे वेबसाइट पर ट्रैफिक बढ़ने लगा और फिर उन्होंने इस सर्विस को सभी लोगों के लिए उपलब्ध कराने का फैसला किया और यही फूडीबे आगे चलकर ज़ोमैटो बन गया.

2010 में बदल दिया नाम

फूडीबे की शुरुआत सबसे पहले दिल्ली में हुई थी और फिर इसे मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों तक बढ़ाया गया. हर साल इस ऐप को इस्तेमाल करने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली. फूडीबे ने ग्राहकों को एक अनोखी और सुविधाजनक सर्विस दी, जिसकी वजह से यह बहुत जल्दी फेमस हो गया.

इस कामयाबी ने इसके संस्थापकों को इसे इंटरनेशनल स्तर तक ले जाने के लिए प्रेरित किया. हालांकि, नाम ‘फूडीबे’ सुनने में थोड़ा मुश्किल लगता था. इसलिए 2010 में इसका नाम बदलकर Zomato रखा गया जो ज्यादा आकर्षक, याद रखने में आसान और अलग पहचान देने वाला था. यहीं से ज़ोमैटो की असली सफलता की कहानी शुरू हुई, जो आज एक ग्लोबल ब्रांड बन चुका है.

दीपिंदर गोयल ने इस पूरे बिजनेस को बढ़ाने में अहम किरदार निभाया. उनका जन्म पंजाब के मुक्तसर शहर में हुआ था. उनके माता-पिता दोनों ही शिक्षक थे, और उनका बचपन एक साधारण परिवार में बीता. शुरुआती पढ़ाई के दिनों में दीपिंदर का पढ़ाई में खास ध्यान नहीं लगता था. यहां तक कि वो छठवीं कक्षा में फेल भी हो गए थे. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और धीरे-धीरे मेहनत करते गए.

आखिरकार, उन्होंने चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज से बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद साल 2001 में उनका चयन देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक IIT दिल्ली में हो गया। वहां उन्होंने मैथ्स और कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दिल्ली की एक कंपनी में अपनी पहली नौकरी शुरू की. यहीं से उनके करियर की असली कहानी शुरू होती है.

Zomato का बिजनेस मॉडल

शुरुआती दौर में Zomato के फाउंडर्स का मकसद पैसा कमाना नहीं था. वे बस एक आसान समाधान देना चाहते थे. लेकिन जब वेबसाइट को लोगों से जबरदस्त सराहना मिलने लगी, तो उन्हें इसमें छुपे बड़े कारोबारी मौके का एहसास हुआ. आज ज़ोमैटो के पास करीब करोड़ों रजिस्टर्ड ग्राहक हैं.

यूजरबेस को देखकर कई रेस्टोरेंट्स ने ज़ोमैटो पर विज्ञापन देना शुरू किया, जिससे कंपनी को अच्छा खासा रेवेन्यू मिलने लगा. साथ ही, ज़ोमैटो ने कैशलेस पेमेंट की सुविधा शुरू की, जिससे ग्राहक बड़ी आसानी से डिजिटल पेमेंट कर सकते हैं. इस कदम ने ज़ोमैटो को और भी ज्यादा भरोसेमंद और सुविधाजनक प्लेटफॉर्म बना दिया.

कब पड़ा Eternal नाम?

देश की जानी-मानी फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो ने फरवरी 2025 में नाम बदलने का फैसला किया. कंपनी ने बोर्ड मीटिंग में इसपर अनुमति जताई और ऐसे में तब से जोमैटो को नए नाम ‘इटरनल (Eternal)’ से जाना जाएगा. कंपनी ने इस बारे में स्टॉक एक्सचेंज (BSE) को जानकारी भी दी है.

कंपनी के सीईओ दीपिंदर गोयल ने बताया कि जब जोमैटो ने क्विक डिलीवरी प्लेटफॉर्म ब्लिंकिट को खरीदा था, तभी से वह अपनी पैरेंट कंपनी को जोमैटो की जगह ‘इटरनल’ कहने लगे थे.

इस बदलाव का मकसद ये है कि जोमैटो अब सिर्फ फूड डिलीवरी ऐप नहीं रहा. कंपनी अब कई दूसरे कारोबार जैसे ब्लिंकिट, हाइपरप्योर और लाइव किचन जैसे नए मॉडल्स में भी काम कर रही है. ऐसे में ‘इटरनल’ नाम कंपनी के पूरे बिजनेस को बेहतर तरीके से दिखाता है, जबकि ‘जोमैटो’ सिर्फ फूड डिलीवरी ब्रांड बना रहेगा.

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