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टीकमगढ़ के प्रसिद्ध शिवधाम कुंडेश्वर मंदिर में श्रावण मास के दूसरे सोमवार को भक्तों की भारी भीड़ देखी गई। ब्रह्म मुहूर्त में पुजारियों ने भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया। मंदिर का गर्भगृह सुबह 5 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोला गया।
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प्रधान पुजारी जमुना तिवारी के अनुसार, सुबह से ही बम-बम भोले के जयकारों के बीच श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक किया। सुबह 7 बजे तक मंदिर में महिला और पुरुष श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लग गईं। भक्तों की सुरक्षा के लिए मंदिर परिसर में विशेष इंतजाम किए गए हैं।
शाम 4 बजे के बाद गर्भगृह में प्रवेश बंद कर दिया जाएगा। इसके बाद भगवान का श्रृंगार किया जाएगा। शाम 7 बजे गाजे-बाजे के साथ महाआरती की जाएगी। मंदिर परिसर में सीसीटीवी कैमरों से निगरानी की जा रही है।

मंदिर को लेकर दो मान्यताएं हैं प्रचलित
पहली- दलित महिला को हुए थे दर्शन
इतिहासकार हरिविष्णु अवस्थी के अनुसार, कुंडेश्वर मंदिर का इतिहास साढ़े 8 सौ वर्ष पुराना है। प्राचीनकाल में यहां एक छोटी बस्ती थी। एक दलित महिला जब अपने घर में धान कूट रही थी, तब उसने देखा कि चावल रक्त रंजित हो गए। वह घबराकर ओखली को मिट्टी के कूड़े से ढककर मदद के लिए गई। वापस आने पर सभी ने देखा कि कूड़े को सिर पर धारण किए एक स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ था। तभी से उन्हें कूड़ा देव कुंडेश्वर के नाम से जाना जाने लगा।

दूसरी- बाणासुर की पुत्री करती थी अभिषेक इतिहासकार काशी प्रसाद त्रिपाठी ने बताया कि उत्तरप्रदेश के ललितपुर जिले की प्राचीन ऐतिहासिक नगरी बानपुर महाराजा बाणासुर की राजधानी थी। उनकी पुत्री राजकुमारी ऊषा महाभारत काल में शिवजी की गोपनीय पूजा करने आती थी। बाद में राजा को राजकुमारी के अचानक रात्रि में कहीं जाने की सूचना प्राप्त हुई तो उनका पीछा किया गया और गोपनीय आराधना का भेद खुल गया। घोर वन में कुण्ड के किनारे स्थित होने के कारण ये कुंडेश्वर के नाम से विख्यात हुए।

1932 में हुआ मंदिर निर्माण जीर्णोद्धार मंदिर ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष नंदकिशोर दीक्षित ने बताया कि सन 1932 में तत्कालीन राजशासन के मंत्री अश्वनी कुमार पांडे ने छोटे से मठ में स्थित भगवान शिव के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। जीर्णोद्धार के समय में की गई। खुदाई में लगभग 5 फुट नीचे शिवजी की प्रतिमा में पहनी हुई पत्थर की जलाधारी निकली जो संभवयता शताब्दियां पूर्व भगवान शंकर को पहनाई गई होगी। 25 फुट तक ख़ुदाई होने पर भी शिवलिंग यथावत मिला, लेकिन जल का स्रोत बढ़ जाने के कारण आगे की खुदाई को बंद करना पड़ी। फिर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया।

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