[ad_1]
अब इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए कर्नाटक सरकार ने विशेष जांच टीम (SIT) बना दी है. इसकी जिम्मेदारी इस पूरे मामले की परतें उधेड़ने की है. लेकिन सवाल है कि क्या धर्मस्थल की चुप्पी अब टूटेगी? आखिर 100 शव दफनाए गए थे इसकी हकीकत क्या है? या फिर ये किसी गहरी साजिश का हिस्सा है. अब सबकी निगाहें SIT की जांच पर टिकी हैं.
शिकायतकर्ता ने पुलिस से स्पष्ट तौर पर कहा है कि वह हर जगह की जानकारी देने और नाम उजागर करने को तैयार है लेकिन सुरक्षा की गारंटी चाहिए. उसने बताया कि कैसे उसके ऊपर दबाव बनाया गया, और किस तरह हर शव के साथ उसकी अंतरात्मा चीत्कार करती रही. अब अपराध-बोध से घिरा वह व्यक्ति कानूनी संरक्षण में सच उजागर करना चाहता है.
महिला आयोग, मीडिया और जनता का बढ़ता दबाव
मामले ने तब और तूल पकड़ा जब कर्नाटक राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष नागालक्ष्मी चौधरी ने सरकार को पत्र लिखा. उन्होंने न केवल मेडिकल छात्रा के परिजनों की गवाही का हवाला दिया बल्कि सफाईकर्मी के कोर्ट में दिए गए बयान को भी गंभीरता से लेने को कहा. उन्होंने चेताया कि यह कोई इकलौती घटना नहीं, बल्कि एक निरंतर चले आ रहे पैटर्न की ओर इशारा कर रहा है. जहां युवतियों, छात्राओं और महिलाओं की गुमशुदगी और रहस्यमयी मौतें पिछले 20 सालों से दर्ज की जा रही हैं.
राज्य सरकार ने 19 जुलाई को एक सरकारी आदेश (GO) जारी कर चार सदस्यीय SIT गठित की. इसकी अगुवाई प्रणव मोहंती (डीजीपी, आंतरिक सुरक्षा विभाग) करेंगे. SIT अब मामले की फॉरेंसिक जांच, गवाहों की सुरक्षा, पुरानी गुमशुदगी रिपोर्ट्स और डीएनए मिलान जैसे प्वाइंट पर काम करेगी. इस टीम में क्राइम इन्वेस्टिगेशन, साइबर फोरेंसिक और लीगल प्रोसीजर के विशेषज्ञ भी शामिल किए गए हैं.
क्या 100 लाशों की कहानी एक राजनीतिक भूचाल बनेगी?
राज्य के गृहमंत्री जी परमेश्वर ने कहा, “हमने जनता और महिला आयोग की चिंताओं को गंभीरता से लिया है. सरकार इस मामले में पारदर्शी जांच चाहती है. किसी को इस पर राजनीति नहीं करनी चाहिए.” हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के कई वरिष्ठ वकीलों ने भी अब इस मामले की न्यायिक निगरानी में जांच की मांग की है.
एक मां की उम्मीद: “अगर मेरी बेटी है, तो DNA जांच कीजिए”
इस घटना के बाद एक महिला सामने आई हैं, जिनकी बेटी 22 साल पहले गायब हो गई थी. उनका कहना है कि अगर उन दफन लाशों में उनकी बेटी है, तो वह DNA जांच के लिए तैयार हैं. यह मामला अब सिर्फ एक जांच नहीं, बल्कि उन सैकड़ों परिवारों की उम्मीद बन चुका है, जिन्होंने कभी अपनों को खोया और आज तक जवाब नहीं मिला.
[ad_2]
Source link


