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यूरोप के इस फैसले ने रूस को वैकल्पिक बाजारों की ओर देखने पर मजबूर कर दिया है, जिसमें भारत एक बड़ा भागीदार बनकर उभरा है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आगामी मुलाकात पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं.
यूरोप ने रूस के तेल पर क्यों लगाया बैन?
इससे रूस के शैडो फ्लीट की कमर टूट सकती है. ये ऐसे जहाज होते हैं, जो गुपचुप तरीके से तेल पहुंचाते हैं. इसका सीधा असर रूस के राजस्व पर होगा, जो कि यूक्रेन युद्ध को आर्थिक रूप से टिकाए रखने में अहम भूमिका निभाता है.
भारत बना रूस का ‘ऊर्जा साथी’
हालांकि, यह समीकरण पश्चिमी जगत की आंखों में चुभता है. अमेरिका और यूरोप बार-बार भारत को रूस से दूरी बनाने का संकेत देते रहे हैं, लेकिन भारत अपनी ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ को प्राथमिकता देता रहा है.
कब हो सकती है मोदी-पुतिन की मुलाकात?
इस मुलाकात के मायने क्या?
इस दौरान तेल की खरीद पर बातचीत हो सकती है. माना जा रहा है कि यूरोपीय बैन के बाद रूस भारत को और बेहतर सौदे देने के लिए तैयार हो सकता है. इस अलावा रूस भारत का पारंपरिक रक्षा साझेदार रहा है. उम्मीद है कि इस मुलाकात में S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम, फाइटर जेट्स और नौसेना उपकरणों में सहयोग पर बात हो सकती है. भारत पश्चिम और रूस के बीच ‘मैत्री पुल’ बना हुआ है. इस दौरे से भारत की तटस्थता और व्यावसायिक प्राथमिकता दोबारा सामने आएगी.
जब यूरोप रूस की तेल नीति पर शिकंजा कस रहा है तो ऐसे में भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस से हाथ मिलाया है. इस नए भू-राजनीतिक परिदृश्य में मोदी-पुतिन की मुलाकात एक अहम मोड़ साबित हो सकती है. न सिर्फ भारत-रूस संबंधों के लिए, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार और सुरक्षा समीकरणों के लिहाज़ से भी. अब सबकी नजर इस मुलाकात पर टिकी है कि क्या भारत रूस को वैश्विक अलगाव से निकाल पाएगा?
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