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पाक के ‘भस्मासुर’ TRF पर US की स्ट्राइक, भारत की किक बाकी, चीन बनेगा ढाल या UNSC में होगा धमाका?

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नई दिल्ली: भारत को बड़ी कूटनीतिक जीत उस वक्त मिली जब अमेरिका ने पाकिस्तानी अतंकवादी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) को आधिकारिक रूप से आतंकी संगठन घोषित कर दिया. यह सिर्फ एक फैसला नहीं बल्कि भारत की वर्षों पुरानी लड़ाई को एक बड़ी वैधता देने वाला कदम है.

लेकिन असली लड़ाई अभी बाकी है और अब केंद्र में है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC). सवाल है कि क्या UNSC में भी TRF को आतंकी घोषित किया जाएगा या फिर एक बार फिर चीन नाम की पुरानी बाधा भारत की राह में खड़ी हो जाएगी?

पढ़ें- FATF में अब भारत दबाएगा पाकिस्तान की गर्दन, आतंक की रीढ़ पर सीधी चोट, TRF पर अमेरिका के एक्शन से क्या होगा?

अमेरिकी प्रक्रिया: राजनीति से ऊपर, सबूतों पर आधारित
News18 को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक अमेरिका का यह फैसला किसी राजनीतिक मंशा का हिस्सा नहीं था. बल्कि TRF को आतंकी घोषित करने की प्रक्रिया बेहद तकनीकी, कठोर और राजनीतिक दबाव से मुक्त रही. भारतीय एजेंसियों ने TRF के खिलाफ ऐसे ठोस सबूत अमेरिका को सौंपे जो न केवल संगठन की लीडरशिप की पहचान उजागर करते हैं बल्कि TRF की सीधी भूमिका मई महीने के पहलगाम आतंकी हमले में भी साबित करते हैं.

TRF ने खुद हमले की जिम्मेदारी ली थी. भारत द्वारा सौंपे गए इनपुट्स ने अमेरिकी जांच मानकों की कसौटी को पास किया. और यही वजह रही कि TRF को अमेरिका के विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवदी (SDGT) टैग के तहत सूचीबद्ध किया गया.

पाकिस्तान की पर्देदारी बेनकाब: UNSC में TRF हटाने की कोशिश सफल
News18 को यह भी पता चला है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने TRF को बचाने की पूरी कोशिश की थी. सूत्रों के मुताबिक UNSC में जब पहलगाम हमले की निंदा प्रस्ताव तैयार किया जा रहा था, तब इशाक डार ने उसमें से TRF का नाम हटवाने की मांग की. और इसे सफलतापूर्वक हटवा भी दिया.

यह वही TRF है जिसने इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी खुद ली थी. पाकिस्तान की यह हरकत अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसकी आतंक परस्ती की नई पोल खोलती है.

अमेरिका की मोहर: भारत के सबूतों को मिली वैधता, TRF की सच्चाई उजागर
TRF को आतंकी घोषित करना न केवल भारत की जांच एजेंसियों के सबूतों पर अमेरिका की मुहर है बल्कि इससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि TRF, लश्कर-ए-तैयबा का ही मुखौटाधारी संगठन है. TRF अब केवल एक आतंकवादी समूह नहीं, बल्कि एक आंतरिक सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का बड़ा चेहरा बन चुका है — और यह अब अमेरिकी दस्तावेज़ों में दर्ज है.

UNSC की राह: अब भारत का अगला वार और चीन की अग्निपरीक्षा
भारत अब चाहता है कि TRF को UNSC की 1267 प्रतिबंध सूची में शामिल किया जाए. इससे उस पर वैश्विक प्रतिबंध लग सकें, फंडिंग बंद हो, और इसके नेता अंतरराष्ट्रीय रेड कॉर्नर नोटिस में आएं. लेकिन भारत जानता है कि इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा चीन है. अतीत में चीन ने भारत के हर ऐसे प्रस्ताव पर टेक्निकल होल्ड लगाकर प्रक्रिया को रोक दिया है चाहे वो हाफिज़ सईद हो या मसूद अजहर.

चीन की दुविधा: अमेरिका को टक्कर या पाकिस्तान की दोस्ती?
इस बार समीकरण थोड़े बदले हुए हैं.चीन अमेरिका को वैश्विक मंचों पर टक्कर देने के लिए RIC (Russia-India-China) जैसे पुराने गठबंधनों को पुनर्जीवित करना चाहता है. हाल ही में SCO बैठक में भी चीन ने भारत के सुर में सुर मिलाया. लेकिन पहलगाम जैसे स्पष्ट आतंकवादी हमले पर चीन की चुप्पी बहुत कुछ कहती है. ड्रैगन की इस दोहरी नीति को भारत और पश्चिमी देश बखूबी समझ रहे हैं.

TRF पर UNSC में फैसला, अब चीन के हाथ में
TRF पर UNSC में प्रतिबंध लगाना भारत की सुरक्षा के लिए जितना जरूरी है, उतना ही यह वैश्विक आतंकवाद विरोधी लड़ाई का अगला मोर्चा भी है. अब चीन के सामने दो ही रास्ते हैं या तो वह TRF की सच्चाई को स्वीकार कर UNSC में भारत का साथ दे. या फिर एक बार फिर पाकिस्तान की ‘आतंकी पालिसी’ का बचाव कर वैश्विक स्तर पर खुद को अलग-थलग करे. हालांकि भारत ने अपनी कूटनीतिक चाल चल दी है, अमेरिका ने मोहर लगा दी है. और अब TRF को फाइनल किक लगना चीन के रुख पर टिकी है.

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