[ad_1]
ज्वालामुखी हमारे ग्रह पृथ्वी की पपड़ी में हुई टूटन हैं जो अंदर के मैग्मा को खोलकर गर्म गैसों, पिघले हुए लावा और कुछ चट्टान के टुकड़ों को फूटने देते हैं. पृथ्वी की गहराई में इतनी गर्मी होती है कि कुछ चट्टानें धीरे-धीरे पिघलकर एक गाढ़े बहते पदार्थ में बदल जाती हैं जिसे मैग्मा कहते हैं. चूंकि यह ठोस चट्टान से हल्का होता है, इसलिए मैग्मा ऊपर उठता है और मैग्मा कक्षों में जमा हो जाता है. अंततः कुछ मैग्मा पृथ्वी की सतह पर दरारों और छिद्रों से होकर बाहर निकलता है. इस प्रकार ज्वालामुखी विस्फोट होता है. इस विस्फोटित मैग्मा को लावा कहते हैं.
कैसे फटते हैं ज्वालामुखी
ज्वालामुखी कैसे फटते हैं यह जानने के लिए हमें पृथ्वी की संरचना को समझना होगा. सबसे ऊपर स्थलमंडल यानी लिथोस्पियर है जो ऊपरी परत है. इसमें अपर क्रस्ट और मेंटल (एक मोटी परत जो मुख्य रूप से ठोस चट्टानों से बनी है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में यह अर्ध-ठोस भी हो सकती है) शामिल हैं. पर्वतीय क्षेत्रों में क्रस्ट की मोटाई 10 किमी से 100 किमी तक होती है. यह मुख्य रूप से सिलिकेट चट्टानों से बनी होती है. मैग्मा पानी, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड के साथ-साथ घुले हुए रूप में एंडेसिटिक और रयोलाइटिक घटकों से बना होता है. बुलबुले बनने से अतिरिक्त पानी मैग्मा के साथ टूट जाता है. जब मैग्मा सतह के करीब आता है, तो पानी का स्तर कम हो जाता है और गैस/मैग्मा चैनल में बढ़ जाता है.
राख के रूप में फटता है मैग्मा
बाईजूस के मुताबिक क्रस्ट से लेकर मेंटल तक स्थितियां नाटकीय रूप से बदलती हैं. दबाव में भारी वृद्धि होती है और तापमान 1000 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है. यह चिपचिपी और पिघली हुई चट्टान पृथ्वी की क्रस्ट के भीतर बड़े चैंबर्स में इकट्ठा हो जाती है. चूंकि मैग्मा आसपास की चट्टानों से हल्का होता है, यह सतह की ओर तैरता है और मेंटल में दरारें और कमजोरियां ढूंढ़ता है. अंततः सतह पर पहुंचने के बाद यह ज्वालामुखी के शिखर बिंदु से फट जाता है. जब यह सतह के नीचे होता है, तो पिघली हुई चट्टान को मैग्मा कहते हैं और ऊपर आने पर राख के रूप में फटता है.
हर विस्फोट के साथ ज्वालामुखी के मुख पर चट्टानें, लावा और राख जमा हो जाती हैं. विस्फोट की प्रकृति मुख्यतः मैग्मा की चिपचिपाहट पर निर्भर करती है. लावा दूर तक जाता है और जब आसानी से बहता है तो चौड़े ढाल वाले ज्वालामुखी बनाता है. जब यह बहुत गाढ़ा होता है तो यह एक जाना पहचाना शंकु ज्वालामुखी आकार बनाता है. यदि लावा बहुत गाढ़ा है, तो यह ज्वालामुखी में जमा हो सकता है और फट सकता है, जिसे लावा गुंबद कहते हैं.
दुनिया में अधिकांश ज्वालामुखी टेक्टोनिक प्लेटों की सीमाओं पर पाए जाते हैं. जहां ये प्लेटें आपस में टकराती हैं, अलग होती हैं या एक-दूसरे के नीचे खिसकती हैं. मुख्य रूप से तीन प्रमुख बेल्ट हैं जहां ज्वालामुखी केंद्रित हैं.
पैसिफिक रिंग ऑफ फायर: यह प्रशांत महासागर के बेसिन में स्थित एक विशाल क्षेत्र है, जहां दुनिया के लगभग 75 फीसदी सक्रिय और निष्क्रिय ज्वालामुखी पाए जाते हैं. यह क्षेत्र न्यूजीलैंड से शुरू होकर दक्षिण-पूर्व एशिया, जापान, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप तक फैला हुआ है. इंडोनेशिया में दुनिया के सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी (लगभग 121) हैं, क्योंकि यह रिंग ऑफ फायर में स्थित है.
माउंट एटना (इटली): यूरोप का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी.
मौना लोआ (हवाई, अमेरिका): दुनिया का सबसे बड़ा सक्रिय ज्वालामुखी.
माउंट विसुवियस (इटली): एक बहुत ही खतरनाक ज्वालामुखी.
किलाउआ: हवाई, अमेरिका.
माउंट मेरापी : इंडोनेशिया
ताल ज्वालामुखी : फिलीपींस
फ्यूजीयामा: जापान
माउंट कोटोपैक्सी (इक्वेडोर): सबसे ऊंचे सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक.
ओजोस डेल सलाडो (चिली और अर्जेंटीना की सीमा): विश्व का सबसे ऊंचा सक्रिय ज्वालामुखी.
क्राकाटोआ : इंडोनेशिया
माउंट पिनाटुबो :फिलीपींस
मिड वर्ल्ड माउंटेन बेल्ट: यह बेल्ट अल्पाइन-हिमालयी पर्वत श्रृंखला के साथ-साथ फैली हुई है. जिसमें कुछ ज्वालामुखी शामिल हैं. हालांकि इनकी संख्या प्रशांत रिंग ऑफ फायर से कम है.
अफ़्रीकी रिफ्ट वैली बेल्ट: पूर्वी अफ्रीका में यह बेल्ट भी कई ज्वालामुखियों का घर है. जैसे कि माउंट किलिमंजारो (तंजानिया) और माउंट मेरू (केन्या).
इन प्रमुख बेल्टों के अलावा कुछ ज्वालामुखी टेक्टोनिक प्लेटों के आंतरिक भागों में ‘हॉट स्पॉट’ कहे जाने वाले क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं. जैसे कि हवाई द्वीप समूह.
खनिज और बेशकीमती पत्थर: ज्वालामुखी के लावे में विभिन्न प्रकार के खनिज और यहां तक कि बेशकीमती पत्थर भी पाए जाते हैं.
ज्वालामुखी राख: इससे सीमेंट, पॉलिश और कई तरह के क्लीनर व साबुन भी बनाए जाते हैं.
पर्यटन: ज्वालामुखी और उनके आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होता है. लोग ज्वालामुखी ट्रेकिंग, हॉट स्प्रिंग्स और जियोथर्मल गतिविधियों को देखने आते हैं. कुछ बड़े ज्वालामुखी विस्फोट वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड और राख छोड़ते हैं, जिससे सूर्य की किरणें पृथ्वी तक पहुंचने से रुक जाती हैं. इससे कुछ समय के लिए वैश्विक तापमान में गिरावट आती है (जिसे ग्लोबल डिमिंग कहते हैं). हालांकि, यह एक अस्थायी प्रभाव होता है और लंबे समय में ज्वालामुखी ग्रीनहाउस गैसें भी उत्सर्जित करते हैं.
[ad_2]
Source link

