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मत्स्य महासंघ के अंतर्गत आने वाले मत्स्य उद्योग इंदिरा सागर जलाशय (खंडवा) के अफसरों ने 2024 में एससी-एसटी के जिन 175 मछुआरों (हितग्राही) की सूची केंद्र को भिजवाकर 91.80 करोड़ रुपए स्वीकृत कराए थे। वह राशि छह माह बाद भी मछुआरों को मत्स्य उद्योग के लिए
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मामले की शिकायत भोपाल मत्स्य महासंघ पहुंची तो अफसर सफाई देने लगे। मत्स्य महासंघ की एमडी बोलीं- नाम वेरीफाई ही नहीं थे। बड़ा सवाल ये है कि जब नाम वेरीफाई नहीं थे तो सूची केंद्र सरकार को क्यों भेजी गई? पूरा मामला प्रधानमंत्री मत्स्य धन संपदा योजना से जुड़ा हुआ है।
भास्कर की पड़ताल में पता चला कि 2024 में मत्स्य उद्योग इंदिरा सागर जलाशय विभाग ने क्षेत्र के पंजीकृत मछुआरों से आवेदन लेकर उनकी जांच कराई और राशि की स्वीकृति के लिए सरकार को प्रस्ताव भेज दिया। जनवरी 2025 में 175 हितग्राहियों के लिए 91.80 करोड़ रुपए की स्वीकृति भी मिल गई।
स्वीकृति मिलने के छह माह तक किसी भी हितग्राही को राशि आवंटित नहीं की गई। इसके उलट 11 जून 2025 को फिर से हितग्राहियों के नाम के लिए आवेदन आमंत्रित कर लिए गए। इसमें ऐसी शर्तें जोड़ी गईं, जिससे हितग्राही अपनी इच्छा से कहीं से भी केज कल्चर, सामग्री, फीड, बीज, दवाई नहीं खरीद सकेंगे। उसे एक निर्धारित निजी कंपनी से ही ये सब खरीदना पड़ेंगे।
अनुबंध से पकड़ में आया मामला
क्षेत्रीय प्रबंधक, मत्स्य महासंघ (सहकारी) मर्यादित इंदिरा सागर जलाशय नर्मदा नगर, खंडवा ने हितग्राही किसानों के चयन के आवेदन बुलाने से पहले ही गुजरात की निजी कंपनी से अनुबंध करवा दिया। हालांकि अफसर किसी भी कंपनी से अनुबंध की बात से इनकार कर रहे हैं। सवाल ये है कि जब पहले ही हितग्राही का कंपनी से एग्रीमेंट हो गया तो फिर आवेदन बुलाने की जरूरत ही क्या पड़ी?
हितग्राहियों की सूची को वेरीफाई तो करना होगा डीपीआर के साथ में जो सूची भेजी गई थी, वह पुरानी थी। आप मुझे बताइए, एक साल पहले कोई हितग्राही चयनित हुआ है और आज की तारीख में चयनित हितग्राहियों की सूची को वेरीफाई करेंगे या नहीं? हो सकता है कि एक साल में हितग्राही की मौत हो गई हो या किसी की मत्स्य उद्योग डालने की इच्छा ही न हो। यह चेक करना होगा। किसी निजी कंपनी से अनुबंध हुआ है या नहीं। इसकी जानकारी नहीं है। आवेदन आमंत्रित करने के लिए पारदर्शी ऑनलाइन प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है। – रवि कुमार गजभिए, मुख्य महाप्रबंधक, मत्स्य महासंघ
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