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भारत के ब्रिग्रेडियर के नोट का वो राज…जिस आर्मी अफसर का पाकिस्तान ने शव लेने से किया इनकार, फिर कैसे दिया सर्वोच्च सम्मान? – How Indian Brigadier MPS Bajwa citation note helped enemy captain Karnal Sher Khan initially abandoned win Pakistan highest gallantry award

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Karnal Sher Khan Story : पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने 1999 के करगिल युद्ध में बहादुरी से लड़ते हुए जान गंवाने वाले कर्नल शेर खान की वीरता की याद दिलाई है. क्या आप जानते हैं उनकी बहादुरी की कहानी पाकिस…और पढ़ें

जिस आर्मी अफसर का PAK ने शव लेने से किया इनकार, फिर कैसे दिया सर्वोच्च सम्मान?

भारतीय सेना के ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा ने पाकिस्तान को बताई थी र्नल शेर खान की वीरता की कहानी..

हाइलाइट्स

  • पाकिस्तान की सेना के कैप्टन थे कैप्टन कर्नल शेर खान.
  • 1999 में करगिल युद्ध में मारे गए थे शेर खान.
  • पाकिस्तान ने शुरुआत में उनका शव लेने से इनकार कर दिया था.
किशोर अजवाणी. नई दिल्ली. यह तो साबित ही हो गया है कि ऑपरेशन सिंदूर पर भी पाकिस्तान जो शेखियां बघार रहा है, वो सब झूठ है. दुनिया ने देख लिया कि यह देश हर बात पर झूठ बोलता है. पूरी दुनिया कह रही है पाकिस्तान से बड़ा झूठा देश तो इस पृथ्वी पर भी नहीं है. दरअसल, आसिम मुनीर ने अपनी सेना के एक अफसर के कसीदे पढ़ दिए. पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने पता है कि किसकी शहादत को याद किया? पाकिस्तान की सेना के कैप्टन थे कैप्टन कर्नल शेर खान. 1999 में करगिल युद्ध में मारे गए थे. पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने उनको शहीद बताते हुए उनकी वीरता की कहानी याद दिलाई कि कैसे कैप्टन कर्नल शेर खान ने कारगिल में बहादुरी से लड़ते हुए जान दी थी. क्या आप जानते हैं उनकी बहादुरी की कहानी पाकिस्तान को किसने बताई थी? भारतीय सेना के ब्रिगेडियर ने. जी हां! भारतीय सेना ने बताया था किस तरह से कैप्टन कर्नल शेर खान लड़े थे. जो पाकिस्तान अब उनको बड़ा शहीद बता रहा है, उसने अपने सैनिक को अपना सैनिक ही मानने से इनकार कर दिया था. पाकिस्तान ने ऐसा क्यों किया? दरअसल, पाकिस्तान ने दुनिया को झूठ बोलकर रखा था कि कारगिल में उसने कोई युद्ध किया ही नहीं. उसके लोग तो हैं ही नहीं जो भारत की सेना से लड़ रहे थे, यह बोलकर रखा था.

अब आसिम मुनीर खुद कह रहै हैं कि कैप्टन कर्नल शेर खान ने कारगिल में वीरता दिखाई थी. बात शेर खान की करते हैं. कर्नल तो वैसे उनका नाम था. बताते हैं कि उनके दादा ने उनका नाम ही कर्नल रख दिया था क्योंकि वो चाहते थे कि उनका पोता फौज में जाए. फौज में वो गए और कैप्टन की रैंक तक पहुच गए थे. जब कारगिल में लड़ते हुए वो मारे हुए. तब पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ थे. उन्होंने प्लान बनाया था जिसको उन्होंने नाम दिया था ऑपरेशन कोह-ए-पैमा. कारगिल जो है वो लद्दाख में है. कश्मीर के बगल में जहां से लद्दाख शुरू होता है वहां पर है और LOC के उस पार कारगिल में है. POK यानी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का गिलगित बालटिस्तान का इलाका. तो वो पूरा पहाड़ी इलाका है लेकिन ना इस तरफ ज्यादा आबादी है और ना ही LOC के उस तरफ.

जनरल मुशर्रफ ने बनाया था कारगिल का नापाक प्लान

मुशर्रफ ने प्लान बनाया था कि इस तरफ कारगिल की पहाड़ियों पर अगर वो कब्जा कर लेंगे तो लेह जाने वाले रास्ते पर वो ऊंची पोजिशन को पकड़कर बैठ जाएंगे. यानी उस रास्ते पर हमला कर लद्दाख को भारत से काट सकते हैं. प्लान ये इसलिए था क्योंकि उस समय सर्दियों में LOC के दोनों तरफ सेनाएं वहां चोटियों से नीचे आ जाती थीं. ऊपर बर्फ पड़ती थी तो दोनों सेनाएं चौकियां छोड़ कर नीचे चली जाती थीं. फिर बर्फ पिघलने पर वापस चौकियों पर आ जाती थीं. शिमला समझौते के तहत LOC क्रॉस तो करनी नहीं थी तो ये दोनों सेनाओं ने रूटीन बना रखा था लेकिन मुशर्रफ ने सोचा कि बर्फ के टाइम ही भारत की चौकियों पर कब्जा कर लेंगे और फिर जब लद्दाख को काट ही देंगे, तो भारत से तो फिर तो जीत हो जाएगी. फिर कौन याद रखता है कि समझौता क्या था और किसने तोड़ा.

1999 में सर्दियों में पाकिस्तान ने अपने सैनिक भारत की चौकियों पर कब्जा करने के लिए भेज दिए. बर्फ थोड़ी-थोड़ी पिघली तो सबसे पहले भेड़ बकरियां चराने वाले लोगों ने नीचे आकर भारतीय सेना को बताया कि आपकी चौकियों पर तो कोई और लोग आए हुए हैं. कारगिल की जंग हो गई. पाकिस्तान मासूम बनकर बोलता रहा कि उसने तो LOC पार नहीं की है. उसके सैनिक नहीं हैं. खैर जंग हो गई तो भारतीय सेना ने उनको नानी याद दिला दी.

ब्रिगेडियर बाजवा को कर्नल शेर खान के शव से मिली थीं चिट्ठियां

पाकिस्तान ने माना ही नहीं कि उसकी सेना कारगिल में लड़ रही है तो उनके शव कैसे ले लेती? भारत की सेना ने उनके तंबू उखाड़ फेंके और लगभग चार हज़ार पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे. उन्हीं में ये कैप्टन कर्नल शेर खान भी थे. ये वहां टाइगर हिल पर थे. 5 जुलाई 1999 को 17,000 फ़ीट की ऊंचाई पर जंग हुई. कैप्टन शेर खान पांच चौकियों को बचाने में लगे हुए थे. भारत की दो बटैलियन आईं और इनकी टुकड़ी को वहां से उखाड़ फेंका लेकिन उन्होंने फिर से काउंटर अटैक करने की कोशिश की पर जान गंवा बैठे. भारत के ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा को उनके शव से उनकी पत्नी की लिखी हुई चिट्ठियां मिलीं.

भारत ने पूरे सैन्य सम्मान के साथ भिजवाया था शव

12 जुलाई 1999 को भारत ने पाकिस्तान को बताया कि आपकी सेना के अफसर का शव मिला है. दो अफसरों के बारे में बताया गया. कैप्टन शेर खान और कैप्टन इम्तियाज मलिक. पाकिस्तान माना ही नहीं. उसने जवाब दिया कि उसके ऐसे कोई अफसर ही नहीं. भारतीय सेना ने कहा कि कैप्टन कर्नल शेर खान की पत्नी की चिट्ठियां हैं तो कहने लगा पाकिस्तान कि शव इस्लमाबाद भेज दो, हम परिवारों से चेक करवा लेंगे. झूठ के चक्कर में पाकिस्तान अपने सैनिकों के शव तक नहीं ले रहा था. फिर अंतरराष्ट्रीय संस्था रेड क्रॉस बीच में आई और कहा कि आप शव हमको दे दो. भारत ने पूरे सैन्य सम्मान के साथ पाकिस्तान के झंडे में लपेटकर उनको पूरे सम्मान से शव दिए. ब्रिगेडियर बाजवा ने कैप्टन शेर खान की जेब में एक नोट लिख कर भेजा.

पता है नोट में क्या लिखा था? नोट में भारत के ब्रिगेडियर ने लिखकर भेजा, ‘कैप्टन कर्नल शेर खान हमारी सेना के खिलाफ बहादुरी से लड़े.’ ये होती है सेना जो अपने दुश्मन के लिए ऐसा नोट लिख कर भेजती है. अपने दुश्मन को हरा दिया लेकिन उसके लिए नोट लिखा कि ये अफसर बहादुरी से लड़े. और पता है आपको? भारत की सेना के ब्रिगेडियर के इस संदेश की वजह से पाकिस्तान ने आखिरकार उनको वहां का सर्वोच्च सैन्य सम्मान निशान-ए-हैदर दिया. पाकिस्तान जिसे अपना सैनिक नहीं मान रहा था, उनको निशान-ए-हैदर दे दिया. ये दुनिया के सैन्य इतिहास में कभी नहीं हुआ कि दुश्मन की सिफारिश पर किसी सैनिक को किसी देश ने मेडल दिया हो. पता है आपको कि कैप्टन कर्नल शेर खान के परिवार ने ब्रिगेडियर बाजवा को लिखकर धन्यवाद भेजा था.

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