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गौंड साम्राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती का आज (24 जून) को 462वां बलिदान दिवस है। इस अवसर पर शामिल होने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव शाम को जबलपुर आएंगे। सीएम गौर स्थित गांव बरहा में स्थापित वीरांगना रानी दुर्गावती की प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंग
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इस दौरान लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह, सांसद आशीष दुबे सहित अन्य विधायक, नेता भी मौजूद रहेंगे।
इस तरह रहेगा सीएम यादव का शेड्यूल
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव मंगलवार को वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से प्लेन से शाम 4:20 बजे डुमना एयरपोर्ट, जबलपुर पहुचेंगे। इसके बाद शाम 4:30 बजे हेलिकॉप्टर से रानी दुर्गावती के समाधि स्थल, गांव बरहा के लिए प्रस्थान करेंगे।
डॉ. यादव शाम 4:45 बजे बरहा पहुंचकर रानी दुर्गावती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे और कार्यक्रम में शामिल होंगे। मुख्यमंत्री शाम 5:30 बजे बरहा से हेलिकॉप्टर द्वारा डुमना एयरपोर्ट के लिए रवाना होंगे और 5:45 बजे वहां पहुंचेंगे। इसके बाद शाम 5:55 बजे भोपाल के लिए रवाना होंगे।
गांव बरहा के पास वह जगह, जहां रानी को वीरगति मिली
जबलपुर-बरगी रोड पर स्थित ग्राम बरहा के पास वह स्थान है, जहां रानी दुर्गावती वीरगति को प्राप्त हुई थीं। इसी स्थान पर नरई नाला के समीप उनका समाधि स्थल स्थित है। रानी दुर्गावती के बलिदान और वीरता को आज भी श्रद्धा से याद किया जाता है। उनके सम्मान में भारत सरकार ने 24 जून 1988 को डाक टिकट जारी किया था। रानी ने 16 सालों तक शासन किया और इस दौरान अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया।
बताया जाता है कि रानी दुर्गावती ने तीन मुस्लिम राज्यों को बार-बार युद्ध में पराजित किया था। वे इतने भयभीत हो गए थे कि उन्होंने गोंडवाना की ओर देखना तक बंद कर दिया था। इन युद्धों में उन्हें अपार संपत्ति भी प्राप्त हुई थी।
पीएम मोदी ने रखी थी स्मारक की आधारशिला
जबलपुर में रानी दुर्गावती की 52 फीट ऊंची प्रतिमा सहित 100 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले स्मारक की आधारशिला 5 अक्टूबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी। भारत में गौंड राजवंश की महान रानी दुर्गावती को उनके अद्भुत साहस और बलिदान के लिए याद किया जाता है। उन्होंने मुगल सेना से अपनी मातृभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा हेतु प्राणों का बलिदान दिया।
दुर्गाष्टमी पर जन्म, इसलिए नाम पड़ा ‘दुर्गावती’
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को बांदा जिले के कालिंजर किले में हुआ था। दुर्गाष्टमी पर जन्म लेने के कारण उनका नाम ‘दुर्गावती’ रखा गया। वे कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थीं।
अपने नाम के अनुरूप ही रानी दुर्गावती ने साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण ख्याति प्राप्त की। उनका विवाह गोंडवाना राज्य के राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से हुआ था। विवाह के चार साल बाद ही राजा दलपत शाह का निधन हो गया। उस समय रानी दुर्गावती का पुत्र नारायण केवल तीन वर्ष का था, अतः उन्होंने स्वयं गढ़मंडला का शासन संभाल लिया।
अकबर के आगे नहीं झुकीं रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती इतनी पराक्रमी थीं कि उन्होंने मुगल सम्राट अकबर के सामने झुकने से इनकार कर दिया। राज्य की स्वतंत्रता और अस्मिता की रक्षा के लिए उन्होंने युद्ध का मार्ग चुना और कई बार शत्रुओं को पराजित किया। 24 जून 1564 को उन्होंने वीरगति प्राप्त की। अंत समय निकट जानकर रानी ने अपनी कटार स्वयं अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान दिया।
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