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ईरान में भारत के कितने प्रोजेक्ट चल रहे हैं, युद्ध से उसे हो सकता है कितना नुकसान 

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India Iran Projects: इजरायल-ईरान संघर्ष का भारत के ईरान में चल रहे प्रोजेक्ट्स पर असर पड़ेगा. चाबहार बंदरगाह और INSTC गलियारा जैसी परियोजनाओं में देरी हो सकती है.

ईरान में भारत के कितने प्रोजेक्ट चल रहे हैं, युद्ध से हो सकता है कितना नुकसान

चाबहार भारत का ईरान में सबसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है.

हाइलाइट्स

  • भारत के ईरान में चाबहार बंदरगाह और रेल परियोजनाएं चल रही हैं
  • इजरायल-ईरान संघर्ष से प्रोजेक्ट्स में देरी और व्यापार में बाधा हो सकती है
  • तेल की कीमतों में वृद्धि और आर्थिक अस्थिरता का खतरा है

India Iran Projects: भारत के ईरान के साथ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंध हैं. भारत के लिए ईरान एक महत्वपूर्ण देश है. भारत के ईरान में कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट चल रहे हैं. हालांकि, इजरायल-ईरान संघर्ष से इन परियोजनाओं में देरी, व्यापार में बाधा, तेल की कीमतों में वृद्धि और व्यापक आर्थिक अस्थिरता जैसे गंभीर नुकसान हो सकते हैं. भारत को ईरान और इजरायल के बीच संतुलन बैठाने का काम करना पड़ सकता है. क्योंकि दोनों ही भारत के लिए महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार हैं. 

ईरान में भारत के मुख्य रूप से चाबहार बंदरगाह और उससे जुड़ी रेल परियोजनाओं जैसे कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं. अगर संघर्ष बढ़ता है तो क्षेत्रीय स्थिरता पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. जिससे भारत के व्यापक भू-रणनीतिक हितों पर असर पड़ सकता है. बढ़ता संघर्ष भारत के ईरान में चल रहे प्रोजेक्ट्स और समग्र रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कई तरह के नुकसान पैदा कर सकता है. यह भारत के लिए चिंता का विषय है साथ ही हमारी विदेश नीति के लिए भी एक जटिल चुनौती है.

चाबहार बंदरगाह
चाबहार ((Chabahar Port) भारत का ईरान में सबसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है. भारत ने चाबहार बंदरगाह के विकास में महत्वपूर्ण निवेश किया है, खासकर शहीद बेहेश्ती टर्मिनल में. भारत ने इस टर्मिनल में $85 मिलियन (लगभग 7.5 अरब रुपये) का निवेश करने का वादा किया है. साथ ही बंदरगाह के संचालन के लिए क्रेन और अन्य उपकरण भी प्रदान किए हैं. चाबहार बंदरगाह भारत के लिए एक रणनीतिक प्रवेश द्वार है. जो भारत को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरेशियाई देशों तक व्यापारिक पहुंच प्रदान करता है. यह चीन के ग्वादर पोर्ट को टक्कर देने में सक्षम है. भारत और ईरान चाबहार पोर्ट को जोड़ने वाले चाबहार-जाहेदान रेल परियोजना को भी तेजी से पूरा करने की योजना बना रहे हैं. यह लगभग 700 किलोमीटर लंबी रेललाइन होगी, जो सामानों के आवागमन को आसान बनाएगी.

अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा
अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (International North-South Transport Corridor) एक 7,200 किलोमीटर लंबा मल्टीमोड परिवहन गलियारा है. यह भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल की ढुलाई के लिए बनाया जा रहा है. चाबहार बंदरगाह इस गलियारे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह परियोजना भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाने में मदद करेगी. यह गलियारा (INSTC) अभी पूरी तरह से चालू नहीं हुआ है. अभी इसका निर्माण जारी है, लेकिन कुछ हिस्सों का उपयोग किया जा रहा है.

ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग
ऐतिहासिक रूप से ईरान भारत की कच्चे तेल की आवश्यकताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (2019 से पहले लगभग 12%) पूरा करता था. हालांकि, अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण इस आयात में काफी गिरावट आई है. इसके बावजूद दोनों देशों के बीच ऊर्जा सहयोग को अपडेट करने की संभावना पर लगातार चर्चा होती रहती है.

परियोजनाओं में देरी
क्षेत्र में सैन्य संघर्ष और अस्थिरता से चाबहार बंदरगाह और चाबहार-जाहेदान रेल परियोजना जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स के निर्माण और संचालन में देरी हो सकती है. सुरक्षा चिंताओं के कारण इन परियोजनाओं पर काम करने वाले भारतीय कर्मचारियों को निकालना पड़ सकता है. जैसा कि हाल ही में ऑपरेशन सिंधु के तहत भारतीय नागरिकों को ईरान से निकालने का प्रयास किया गया है. इससे निवेशकों का विश्वास डगमगा सकता है जिससे भविष्य के निवेश पर असर पड़ेगा.

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व्यापार और आर्थिक प्रभाव
संघर्ष से क्षेत्र में समुद्री मार्गों (जैसे लाल सागर और स्वेज नहर) में व्यवधान आ सकता है, जिससे शिपिंग लागत में 40-50 फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है. यह भारत के आयात और निर्यात को प्रभावित करेगा. कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है. यदि युद्ध बढ़ता है तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें $100 प्रति बैरल से ऊपर जा सकती हैं. जिससे भारत में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस महंगी हो जाएगी. ईरान और भारत के बीच व्यापार भी प्रभावित हो सकता है. सूखे मेवे, केमिकल, सीमेंट, नमक और ईंधन उत्पादों के व्यापार पर असर पड़ेगा. महंगाई बढ़ सकती है क्योंकि ट्रांसपोर्टेशन महंगा हो जाएगा और सामान की कीमतें बढ़ेंगी. भारतीय रुपये पर दबाव आ सकता है और यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमजोर हो सकता है. जिससे भारत पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा.

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