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पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एलजेपी (रामविलास) के सुप्रीमो और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की क्या योजना है? क्या वह बिहार में एनडीए का विस्तार कर रहे हैं या फिर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं? पासवान ने रविवार को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि एनडीए गठबंधन को मजबूती देने के लिए वह पूरे राज्य में सक्रिय भूमिका निभाएंगे. राज्य की सभी 243 सीटों पर चिराग पासवान चुनाव लड़ेंगे. बिहार की राजनीति में चिराग पासवान एक उभरता हुआ चेहरा बनकर सामने आ रहे हैं. आरा रैली में ‘जंगलराज’ को कांग्रेस से जोड़ने और कर्पूरी ठाकुर के सामाजिक न्याय के विचारों को सामने लाने की रणनीति न केवल उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दर्शाती है, बल्कि एनडीए के लिए राह आसान करने और दबाव की राजनीति करने का एक जटिल खेल भी दर्शाती है.
चिराग पासवान के सुर क्यों बदल गए?
“जंगलराज” का जिक्र बिहार में 1990 के दशक के लालू प्रसाद यादव के शासनकाल से जुड़ा है, जिसे अक्सर कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति और भ्रष्टाचार के लिए जाना जाता है. चिराग का इसे कांग्रेस से जोड़ना एक रणनीतिक कदम है, क्योंकि कांग्रेस उस समय आरजेडी की सहयोगी थी. इससे चिराग न केवल विपक्षी गठबंधन (महागठबंधन) को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि एनडीए के भीतर अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास भी कर रहे हैं. यह बिहार के मतदाताओं, खासकर युवाओं और दलित समुदायों, को यह बताने की कोशिश है कि एनडीए ही बिहार को “जंगलराज” से मुक्ति दिला सकता है.
चिराग ने कर्पूरी ठाकुर के सामाजिक न्याय को क्यों मुद्दा बनाया?
चिराग पासवान की रणनीति
चिराग पासवान की रणनीति को केवल एनडीए की मदद करने तक सीमित नहीं देखा जा सकता. उनकी बयानबाजी और विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा (खासकर शाहाबाद जैसे सामान्य सीट से) यह संकेत देती है कि वे एनडीए के भीतर अपनी स्थिति को मजबूत करने और भविष्य में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग ने नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) के खिलाफ बगावत की थी, जिसके कारण जेडीयू को नुकसान हुआ और आरजेडी को फायदा हुआ. इस बार, हालांकि वे नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए के साथ खड़े हैं, उनकी मांग 40-45 सीटों की है, जो जेडीयू और बीजेपी के लिए चुनौती बन सकती है.
चिराग की रणनीति में दबाव की राजनीति साफ दिखती है. वे बीजेपी और जेडीयू पर अधिक सीटों के लिए दबाव बना रहे हैं, ताकि उनकी पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), बिहार में एक मजबूत ताकत बन सके. इसके अलावा, उनकी ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ की सोच और युवाओं के लिए रोजगार जैसे मुद्दे उठाकर वे तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर जैसे नेताओं को टक्कर देने की कोशिश कर रहे हैं. अधिक सीटों की मांग और विधानसभा चुनाव में सक्रियता के जरिए वे एनडीए के भीतर दबाव बनाकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को हवा दे रहे हैं. यह रणनीति न केवल बिहार की राजनीति में उनकी प्रासंगिकता को बनाए रखने की कोशिश है, बल्कि भविष्य में बड़े नेतृत्व की दावेदारी का भी संकेत देती है.
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