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मंत्रियों की बैठक 25-26 मई को, जन जागरूकता अभियान चलाने की तैयारी।
चित्रकूट की पवित्र मंदाकिनी नदी के अस्तित्व पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार अगले 30 सालों में ये नदी पूरी तरह विलुप्त हो सकती है। नगरीय प्रशासन एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय दो दिवसीय दौरे पर सतना पहुंचे हैं। वे चित्रकूट
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ग्रामोदय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग प्रमुख प्रो. घनश्याम गुप्ता ने 31 सालों के वैज्ञानिक अध्ययन में ये चिंताजनक निष्कर्ष निकाला है। मंदाकिनी मध्य प्रदेश की 22 सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल है।
मंदाकिनी प्रदेश की अंतिम नदी है जो यमुना में मिलती है सती अनुसुइया आश्रम से निकलने वाली मंदाकिनी नदी 40 किलोमीटर की यात्रा के बाद उत्तर प्रदेश के राजापुर में यमुना से मिलती है। ये प्रदेश की अंतिम नदी है जो यमुना में मिलती है। यमुना आगे चलकर प्रयागराज में गंगा से मिलकर संगम बनाती है।
बढ़ता न्यूट्राफिकेशन भी नदी के लिए घातक प्रो. गुप्ता के अनुसार, स्वस्थ नदी के चार महत्वपूर्ण मानक होते हैं- जल प्रवाह, घुलित ऑक्सीजन, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड और न्यूट्राफिकेशन। मंदाकिनी में घुलित ऑक्सीजन का स्तर खतरनाक रूप से कम हो गया है। बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड बढ़ गया है। नदी का जल प्रवाह भी काफी कम हो गया है। बढ़ता न्यूट्राफिकेशन भी नदी के लिए घातक साबित हो रहा है।

एक लीटर गंदा पानी 150 लीटर शुद्ध जल को कर रहा दूषित।
तीन दशक में 10 गुना घटा जल प्रवाह प्रो. गुप्ता ने बताया कि वर्ष 1993 में मंदाकिनी नदी का जलप्रवाह 3 हजार लीटर प्रति सेकेंड था। जो मौजूदा समय में घट कर 300 लीटर प्रति सेकेंड पर पहुंच गया है। साफ है कि इन 30 सालों के दौरान मंदाकिनी के जल प्रवाह में 10 गुना गिरावट आई है। यही हाल रहा तो आशंका है कि आने वाले 30 सालों में यही जल प्रवाह गिर कर 30 लीटर प्रति सेकेंड हो जाएगी। अगर, किसी नदी के जल का प्रवाह 50 लीटर प्रति सेकेंड से नीचे चला जाता है तो उसे डेड रिवर (मरी हुई नदी) मान लिया जाता है। दुर्भाग्य से रामायण, रामचरित मानस और पुराणों में वर्णित त्रेतायुगीन मंदाकिनी गंगा मृत्यु की उसी राह पर है। साइंटिफिक एनॉलसिस बताता कि 30 वर्ष यह नदी नहीं मिलेगी।
सीवेज से जहरीला हो रहा 150 लीटर शुद्ध पानी ग्रामोदय के पर्यावरण एवं ऊर्जा विभाग के प्रमुख प्रो.घनश्याम गुप्ता की स्टडी से ये बात भी सामने आई है कि मंदाकिनी के जल में जहां घुलित आक्सीजन की मात्रा तेजी से घट रही है। वहीं बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि नदी में छोड़े जा रहे सीवेज (गंदे पानी) पर लगाम नहीं होने से मौजूदा समय में मंदाकिनी में बीओडी की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। किसी भी हालत में जल में बीओडी की मात्रा प्रति लीटर पर 5 मिलीग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। मगर, मौजूदा समय में चित्रकूट की मंदाकिनी में कहीं भी ये स्तर 35-40 मिलीग्राम से कम नहीं है। मानवीय हस्तक्षेप वाले रामघाट और भरतघाट पर तो बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड तय मानक से 150 गुना ज्यादा है। साफ है कि नदीं में गिरने वाला एक लीटर सीवेज 150 लीटर शुद्ध जल को प्रदूषित कर रहा है।
चलाया जाएगा जागरूकता अभियान मंदाकिनी नदी को बचाने के लिए प्रदेश के नगरीय प्रशासन एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलवट एवं यूपी के जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह की मौजूदगी में 25 एवं 26 मई को डीआरआई में विचार मंथन किया जाएगा। विशेषज्ञों की राय के बाद मंदाकिनी के घाटों पर जन जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा।
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