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अगर आप भी सोचते हैं कि सिर्फ अच्छी पढ़ाई और डिग्री ही सफलता की गारंटी हैं तो समीर वासवदा (Samir Vasavada) की कहानी आपकी सोच को बदलने के लिए काफी है. यह कहानी एक ऐसे भारतीय मूल के लड़के की है, जिसने हाई स्कूल में पढ़ाई छोड़ दी और पढ़ाई छोड़ने की वजह से माता-पिता की नाराजगी झेली. लेकिन अपने जुनून और मेहनत से एक उसने बिलियन डॉलर कंपनी खड़ी कर दी. कंपनी का नाम वाइस (Vise) है.
समीर वासवदा अमेरिका के ओहायो राज्य के क्लीवलैंड शहर में पैदा हुए थे. उनके माता-पिता चाहते थे कि वह पढ़ाई में अच्छे नंबर लाएं, अच्छी यूनिवर्सिटी में जाएं और एक बढ़िया नौकरी करें. लेकिन समीर का दिमाग पढ़ाई की किताबों से ज्यादा टेक्नोलॉजी और नई चीज़ें सीखने में लगता था.
12 साल की उम्र में समीर ने नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के एक समर प्रोग्राम में हिस्सा लिया. यहां उनकी मुलाकात रुनिक मेहरोत्रा से हुई. रुनिक आगे चलकर उनके बिज़नेस पार्टनर बने. उसी समय प्रोग्राम के बाद दोनों ने साथ में ऐप्स और सॉफ्टवेयर बनाना शुरू किया.
स्कूल छोड़ने का फैसला और संघर्ष की शुरुआत
समीर को स्कूल की पढ़ाई उबाऊ लगती थी. 16 साल की उम्र में उन्होंने हाई स्कूल छोड़ने का कठिन और साहसिक फैसला लिया. उनके माता-पिता को बहुत दुख हुआ और परिवार में काफी तनाव भी हुआ. लेकिन समीर अपने फैसले पर अडिग रहे.
वे अकेले सैन फ्रांसिस्को आ गए और एक सस्ते और शेयरिंग में मकान लेकर रहने लगे. इस इलाके का नाम था टेंडरलॉइन. आमतौर पर यहां गरीब लोग रहते हैं. वहीं से उन्होंने अपने सपनों को हकीकत में बदलने की शुरुआत की.
वैसे तो समीर और रुनिक ने 13 साल की उम्र से ही मिलकर ऐप्स बनाना शुरू कर दिया था. 14 साल में उन्होंने एक ऐप स्टूडियो बनाया, जो छोटे बिजनेस के लिए काम करता था. फिर उन्होंने AI से जुड़े नए प्रोजेक्ट बनाए और NYX Group नामक कंपनी शुरू की, जो इंटरनेशनल टीम के साथ काम करती थी.
16 साल की उम्र तक वे निवेश बैंकों के लिए AI सलाह देने लगे थे. उन्हें महसूस हुआ कि फाइनेंशियल एडवाइजरों के पास आज के जमाने की तकनीक नहीं है. वहीं से वाइस (Vise) की नींव पड़ी.
वाइस की शुरुआत और बड़ी चुनौतियां
2016 में समीर और रुनिक ने वाइस की शुरुआत की थी. वाइस एक AI बेस्ड प्लेटफॉर्म है, जो फाइनेंशियल एडवाइजरों को अपने ग्राहकों के लिए बेहतर निवेश पोर्टफोलियो बनाने में मदद करता है. शुरुआत तो थी, लेकिन आसान नहीं थी.
दोनों के पास सैन फ्रांसिस्को में रहने के पैसे नहीं थे. टीम को तनख्वाह देने के पैसे नहीं थे, इसलिए उन्हें कंपनी के शेयर बांटने पड़े. करीब 1,000 निवेशकों ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया, क्योंकि वे बहुत छोटे थे और कॉलेज ड्रॉपआउट भी थे. यहां तक कि एक नामी और बड़े निवेशक विनोद खोसला ने भी पैसा लगाने से इनकार कर दिया.
शुरुआत में उन्होंने बड़े बैंकों पर फोकस किया, लेकिन बाद में एक इवेंट में जेपी मॉर्गन के सीईओ से मिलने के बाद उन्होंने इंडिपेंडेंट वित्तीय सलाहकारों को टारगेट किया, और यह फैसला गेमचेंजर साबित हुआ. अपना फाइनल प्रोडक्ट लाने से पहले उन्हें उसे 6-7 बार फिर से बनाना पड़ा. यह मुश्किल था, लेकिन समीर कभी रुके नहीं.
पहली सफलता और बड़ा मुकाम
मुश्किलों के बीच एक निवेशक ने वाइस में 100,000 डॉलर लगाए. फिर फाउंडर्स फंड से 2 मिलियन डॉलर मिले, और बाद में मशहूर कंपनी सीकोइया कैपिटल से 14.5 मिलियन डॉलर की फंडिंग मिली.
सिर्फ छह महीने में वाइस ने 126 मिलियन डॉलर जुटा लिए और इसकी वैल्यू 1 बिलियन डॉलर हो गई. समीर और रुनिक सिर्फ 20 साल की उम्र में दुनिया के सबसे युवा यूनिकॉर्न कंपनी फाउंडर बन गए.
क्या काम करती है वाइस
वाइस का मकसद है कि हर व्यक्ति को बेहतर निवेश की सुविधा मिले. इसका प्लेटफॉर्म फाइनेंशियल एडवाइजरों को पोर्टफोलियो बनाना, टैक्स की प्लानिंग करना और क्लाइंट्स से जुड़ने में मदद करता है. इसे “स्पॉटिफाई रैप्ड फॉर इन्वेस्टमेंट” कहा गया है.
लेकिन जब कंपनी तेजी से बढ़ी तो कुछ समस्याएं भी आईं. टीम बहुत बड़ी हो गई और फैसले लेने में दिक्कतें आने लगीं. समीर ने 2023 में कंपनी को एक बार फिर से सही दिशा में मोड़ने के लिए “हार्ड रीसेट” किया और बिज़नेस मॉडल में बदलाव किया.
परिवार, संघर्ष और खुद की पहचान
समीर की प्रोफेशनल लाइफ के साथ-साथ उनकी पर्सनल लाइफ में भी संघर्ष था. हाई स्कूल छोड़ने के बाद परिवार से दूरियां बढ़ीं, लेकिन समय के साथ रिश्तों में सुलह हुई.
एक वक्त था जब वह खुद को सिर्फ “यूनिकॉर्न फाउंडर” के टैग से पहचानते थे, लेकिन बाद में उन्होंने समझा कि एक इंसान की पहचान उसकी कंपनी से अलग होती है. उन्होंने सीखा कि हर गलती से कुछ नया सीखना जरूरी है.
आज समीर 2025 में वाइस को और आगे ले जाने में लगे हैं. उनका सपना है कि वाइस एक ऐसा प्लेटफॉर्म बने जो हर इंसान के लिए पर्सनल इन्वेस्टमेंट का रास्ता खोले.
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