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Ramayana and Mahabharata should get a place in the syllabus | रामायण-महाभारत को मिले सिलेबस में जगह: भोपाल की सीबीएसई 12वीं टॉपर श्रुतिका जैन बोलीं– खुद के बनाए नोट्स और नियमित पढ़ाई से हासिल की सफलता – Bhopal News

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रिजल्ट आने के बाद श्रुतिका को मिठाई खिलाते पेरेंट्स।

भोपाल की सागर पब्लिक स्कूल अरेरा कॉलोनी की छात्रा श्रुतिका जैन ने सीबीएसई 12वीं बोर्ड परीक्षा में 99.4% अंक प्राप्त कर राजधानी की टॉपर बनने का गौरव हासिल किया है। ह्यूमैनिटीज स्ट्रीम से पढ़ाई करने वाली श्रुतिका का मानना है कि भारत की ऐतिहासिक और सांस

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पूरे साल की पढ़ाई और खुद के नोट्स बने सफलता की चाबी

श्रुतिका कहती हैं कि उनकी सफलता का कोई जादुई फॉर्मूला नहीं है, लेकिन नियमितता, समर्पण और खुद से बनाए गए नोट्स ने उन्हें यह मुकाम दिलाया। उन्होंने बताया- मैंने स्कूल की हर क्लास को गंभीरता से लिया, सभी विषयों के कॉन्सेप्ट्स क्लास में ही क्लियर हो जाते थे। फिर घर आकर सिर्फ जरूरी टॉपिक्स को दोहराती थी।

सेल्फ स्टडी सबसे बेहतर, कोचिंग पर निर्भर नहीं रहीं

श्रुतिका का मानना है कि अगर छात्र स्कूल में ध्यान से पढ़ाई करें और घर पर खुद से रिविजन करें तो कोचिंग की जरूरत नहीं पड़ती। “मैंने खुद के नोट्स बनाए, जिससे एग्जाम टाइम में जल्दी रिवाइज हो गया। पहले एनसीईआरटी से शुरुआत की, फिर सैंपल पेपर और पुराने प्रश्नपत्र सॉल्व किए।

ह्यूमैनिटीज को बताया- भविष्य की स्ट्रीम, यूपीएससी की तैयारी का इरादा

ह्यूमैनिटीज स्ट्रीम को चुनने के पीछे श्रुतिका का स्पष्ट उद्देश्य है – यूपीएससी और ज्यूडिशियरी जैसे क्षेत्र में जाना। “हिस्ट्री और सोशल साइंस में मेरा बचपन से रुझान रहा है। आज हर चीज सोशल साइंस से जुड़ी है, और यह हर कॉम्पटेटिव एग्जाम का जरूरी हिस्सा भी है।

रामायण-महाभारत जैसे ग्रंथों को बनाना चाहिए सिलेबस का हिस्सा

पाठ्यक्रम को लेकर श्रुतिका की राय बेहद परिपक्व है। “हमारे सिलेबस में यूरोपियन हिस्ट्री का वर्चस्व है, जबकि भारतीय इतिहास के कई हिस्से गायब हैं। रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं, इन्हें बच्चों को कक्षा 6 से ही पढ़ाया जाना चाहिए। इससे उनकी सोच को दिशा मिलेगी और भारतीय इतिहास के प्रति गर्व भी बढ़ेगा।”

आर्ट एंड क्राफ्ट से रहती हैं कूल

शैक्षणिक तनाव से उबरने के लिए श्रुतिका ने अपनी हॉबी – आर्ट एंड क्राफ्ट को अपना सहारा बनाया। “मैं पेंटिंग करती हूं, स्कूल के हर आर्ट कॉम्पटीशन में भाग लिया। प्रदेश स्तरीय कला उत्सव में भी हिस्सा लिया है। इससे पढ़ाई के बीच खुद को कूल और बैलेंस्ड बनाए रखने में मदद मिलती है।”

परिवार और शिक्षकों का समर्थन रहा सबसे मजबूत आधार

श्रुतिका अपनी सफलता का श्रेय अपने पेरेंट्स और शिक्षकों को देती हैं। “मेरे हर कदम पर घर से सहयोग मिला और शिक्षकों ने पढ़ाई में पूरा सपोर्ट किया। बिना उनके यह मुमकिन नहीं था,” उन्होंने कहा। श्रुतिका जैन अब यूपीएससी और लॉ के क्षेत्र में आगे बढ़ने का सपना देख रही हैं। वे चाहती हैं कि देश की नई पीढ़ी को भारतीय इतिहास की गहराई और गौरवशाली विरासत से जोड़ने का अवसर स्कूली स्तर से ही मिले।

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