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More than 300 people from Qazi Basai village are deployed at the front | भारत ‘रुपया’ है तो पाकिस्तान ‘चवन्नी’: मुस्लिम बहुल गांव के लोग बोले- पहले वर्ल्ड वॉर से कारगिल तक चार पीढ़ियों ने युद्ध लड़े – Madhya Pradesh News

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ये कहते हुए रहमुद्दीन जोश से भर जाते हैं। बड़े गर्व से बताते हैं- मेरे तीन बेटे अलग-अलग सेनाओं में है। अभी एक बेटा भुज में मोर्चे पर तैनात है। रहमुद्दीन मुरैना जिले के काजी बसई गांव में रहते हैं। इस गांव में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, मगर इसे मुस्लिम बाहुल गांव नहीं बल्कि फौजियों का गांव कहते हैं।

यहां हर घर से कोई न कोई सेना और पैरामिलिट्री फोर्स में हैं। इस गांव के 11 जवान पिछले सालों में शहीद भी हो चुके हैं। भारत-पाकिस्तान के उपजे तनाव के हालात के बीच भास्कर ने गांव पहुंचकर यहां के लोगों से बात की। ये जाना कि वो इस पूरे विवाद और तनाव को लेकर क्या कहते हैं। पढ़िए रिपोर्ट

काजी बसई गांव मुरैना से 15 किमी दूर है और यहां की आबादी करीब 4500 हैं।

काजी बसई गांव मुरैना से 15 किमी दूर है और यहां की आबादी करीब 4500 हैं।

दोनों विश्व युद्ध में शामिल हो चुके हैं गांव के पूर्वज भास्कर की टीम गांव में दोपहर के वक्त पहुंचे। सड़क पर कम लोग थे। दुकान पर दो तीन लोग बैठे थे। उनके पास जाकर पूछा कि आप में से किसी के परिवार के सदस्य सेना में है क्या? तीनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और बोले- हम तीनों के ही घर के लोग सेना में है।

गांव के बुजुर्ग और पूर्व सैनिक रहे हाजी मोहम्मद रफी कहते है कि ऐतिहासिक रूप से हमारा गांव देश सेवा के लिए जाना जाता है। पहले विश्व युद्ध में काजी बसई के अब्दुल वासिद शामिल हुए थे। वे ग्वालियर में सिंधिया स्टेट की सेना में भर्ती हुए थे। युद्ध के दौरान वे जर्मनी में ही शहीद हो गए थे।

दूसरे विश्व युद्ध में भी काजी बसई गांव से 16 लोग अंग्रेजों की तरफ से लड़े थे। इनमें हाजी सलीमुद्दीन, इस्लामुद्दीन, अब्दुल अली, नूर मोहम्मद, मोहम्मद, मोहम्मद वली, हकीमुद्दीन खान, क्वार्टर मास्टर हकीमुल्ला, हाजी अजीजुद्दीन, मोहम्मद इब्राहिम और अब्दुल गनी सहित चार और फौजी शामिल हुए। युद्ध के बाद सभी देश वापस लौटे थे।

इस गांव से 11 लोग शहीद हुए हैं। जिनके नाम पंचायत भवन पर लिखे हुए हैं।

इस गांव से 11 लोग शहीद हुए हैं। जिनके नाम पंचायत भवन पर लिखे हुए हैं।

आजादी के बाद हुए हर युद्ध में शामिल रहे आजादी के बाद से जितने भी युद्ध हुए हैं उसमें काजी बसई के जवानों ने कंधे से कंधा मिलकर दुश्मन का सामना किया है। हाजी मोहम्मद रफी कहते हैं- पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 की जंग मैंने खुद लड़ी है। इसके अलावा 1962 का चीन युद्ध और कारगिल की लड़ाई में भी गांव के लोग शामिल रहे हैं।

मोहम्मद रफी कहते हैं कि श्रीलंका में लिट्टे के खिलाफ कार्रवाई से लेकर पंजाब के उग्रवाद और नक्सलवाद के खिलाफ मुहिम में भी काजी बसई के जवान शामिल रहे हैं। आज जब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के हालात है, तो हमारे गांव के कई युवा इस समय मोर्चे पर तैनात है।

तीन पीढ़ियों के 8 लोग सेना में, 3 अभी भी बॉर्डर पर काजी बसई के रहने वाले रहमुद्दीन बड़े गर्व के साथ बताते है कि उसने चार बेटे है जिनमें से 3 बेटे अभी सेना में है। चौथा बेटा भी सेना में जाने की तैयारी कर रहा है। वे कहते हैं- मेरे 3 चाचा भी फोर्स में थे। मेरे एक चाचा ने तो 32 साल छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाके में नौकरी की है। एक चाचा को राष्ट्रपति मेडल मिला है। इसके अलावा मेरे चाचा के दो लड़के मतलब मेरे भाई भी सेना में हैं।

बेटा बॉर्डर पर, मां रातभर नहीं सो पाती रहमुद्दीन बताते है कि मेरा एक बेटा अभी कच्छ भुज में है। मेरी उससे बात हुई, तो वो बता रहा था कि रात को बैरक में जैसे ही खाना खाने बैठे, तभी हवाई हमले का सायरन बजा। जिसके बाद हम सब खाना छोड़कर तुरंत ही दो- दो के ग्रुप में बंट कर बैरक छोड़कर अलग अलग जगह चले गए।

इसके बाद मेरा बेटा रात भर नहीं सोया। हम लोग भी रातभर जगते रहे। मेरी पत्नी को बेटे की चिंता तो लगी रहती है। सुबह बात हुई तो बेटे ने बताया कि अभी तो मैं सो रहा हूं। दिन में माहौल ठीक रहता है। पाकिस्तान जो भी हरकत करता है, वो रात में करता है।

अगर भारत ने चाहा तो पाकिस्तान नक्शे से मिट जाएगा रहमुद्दीन कहते हैं पाकिस्तान भारत से टक्कर ले ही नहीं सकता। भारत चाह लेगा तो पाकिस्तान का नामो निशान मिट जाएगा, हालांकि ये बात अलग है कि युद्ध में थोड़ा नुकसान हमें भी उठाना पड़ेगा, लेकिन हार पाकिस्तान की ही होगी। अगर युद्ध लंबा चला तो पाकिस्तान नक्शे से ही खत्म हो जाएगा।

अगर फिट होता तो मैं भी मोर्चे पर चला जाता सेना से रिटायर्ड मोहम्मद जफर कहते है कि मेरे दादा जी फौज में थे। उसके बाद मेरे पिताजी फौज में गए। उसके बाद मैं और अब मेरा बेटा कुल मिलकर मेरी चार पीढ़ियां फौज में रही। आजादी से लेकर अब तक मेरे घर के सदस्य सेना में रहे है। जब पंजाब उग्रवाद की चपेट में था तो उस दौरान मेरी ड्यूटी वहीं थी। उस समय मैंने पटियाला, तरनतारण और अमृतसर के इलाकों में नौकरी की।

अभी जो हालात है। उन्हें देखकर खून जोश मारता है। अगर, मैं फिट होता तो अभी मोर्चे पर चला जाता। इस बात की खुशी है मैं न सही मेरे दो बच्चे अभी भी मोर्चे पर तैनात हैं। हालांकि, उनसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है, मगर इस बात का संतोष है कि हमारे घर के बच्चे देश की सुरक्षा में तैनात हैं।

भाई शहीद हुए फिर भी मैं और बच्चे फौज में गए मोहम्मद जफर कहते हैं कि हमे अपने बच्चों की कोई चिंता नहीं है वो देश ले लिए खड़े रहे। हमारे परिवार की यही कहानी रही है। अगर वे मोर्चे पर है, तो हम सभी बातों के लिए तैयार है। अगर कोई डर हो तो ये नौकरी नहीं करनी चाहिए। मेरे बड़े भाई की बटालियन 1974 में नगालैंड में थी। वो नगालैंड में शहीद हुए।

उसके बाद मैं सेना में गया। उसके बाद मेरे बच्चे भी गए, अगर ऐसा कोई डर या बात होती तो घर वाले हमे रोक लेते।

कौम से वफादारी के सबूत न मांगे जाए, हम वफादार है जफर कहते हैं कि ये देखकर दुख होता है कि हम पर लांछन लगाए जाते हैं। जबकि, आजादी के बाद से ही चाहे 1948 की लड़ाई हो जहां ब्रिगेडियर उस्मान जिसने कश्मीर में अपनी शहादत दी। 1965 की लड़ाई के शहीद अब्दुल हामिद ऐसे कई नाम हैं, जो हर युद्ध में शामिल हुए और देश की खातिर शहीद हो गए।

जैसे पाकिस्तान के पहले टुकड़े हुए और बांग्लादेश बना। मैं चाहता हूं कि ऐसे और टुकड़े हो जाए। हमारी कौम से भी वफादारी के सबूत न मांगे जाए। देश के के लिए हमने शहादत दी है। कोई हम पर इल्जाम नहीं लगा सकता। जब भी जरूरत पड़ेगी हम मोर्चे पर तैनात मिलेंगे।

पाकिस्तान को तो सबक मिलना चाहिए गांव में किराने की दुकान चलने वाले रफीक मोहम्मद कहते हैं कि हमारे गांव के हर नौजवान लड़के को देशभक्ति का जज्बा है। और देश के लिए कुर्बानी देने के लिए बिल्कुल तैयार है। हम लोग देशद्रोही नहीं देशभक्त है। गर्व के साथ रफीक बताते है कि मेरा बेटा अभी कश्मीर के अखनूर में लड़ने के लिए तैयार है।

दो दिन से बेटे से बात भी हो रही है। मेरा एक भाई भी फौज में है। वो भी बॉर्डर पर तैनात है। हम तो बस यही चाहते है कि हमारा देश जीते। पाकिस्तान को ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया जाए कि वो दोबारा कभी लड़ने की हिम्मत नहीं कर पाए। हम अपने देश के लिए तन, मन और धन सबसे तैयार है।

हमे अपने बेटे और भाई की कई चिंता नहीं है। वो अपना फर्ज निभा रहे हैं। हमें बस अपने देश की चिंता है। सबसे पहले देश है। उसके बाद सब कुछ है।

गांव के 300 जवान अभी सेना में तैनात, हर घर से फौजी जुबेरुद्दीन बताते हैं कि अभी मेरा छोटा भाई कश्मीर में तैनात है। हमारे गांव के करीब 300 लोग अभी सेना में अलग-अलग जगह पर सेवाएं दे रहे हैं इसके साथ ही गांव में लगभग इतने ही पूर्व सैनिक है जो सेना में काम कर चुके हैं। आगे भी देश को जब भी जरूरत पड़ेगी हमारे गांव के लोग देश सेवा के लिए कुर्बानी देने के लिए हमेशा तैयार मिलेंगे।

गांव में लड़कों की पहली प्राथमिकता सेना में हीं जाना है। गांव के हर घर से कोई न कोई फौज में है या पहले रह चुका है। कुछ परिवारों की चार से पांच पीढ़ियां फौज में रही है।

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