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ये कहना है शहीद लांस नायक सुधाकर सिंह बघेल के पिता सच्चिदानंद सिंह का। मप्र के सीधी जिले के रहने वाले सुधाकर सिंह की जनवरी 2013 में पाकिस्तानी रेंजर्स ने बेरहमी से हत्या कर दी थी। उस समय सुधाकर अपने यूपी के साथी हेमराज सिंह के साथ गश्त कर रहे थे। पाकिस्तान रेंजरों ने न केवल हत्या की बल्कि दोनों के सिर काटकर अपने साथ ले गए थे।
शहादत से तीन साल पहले ही सुधाकर की शादी हुई थी और उनका चार महीने का बेटा था। जिस तरह पहलगाम हमले के बाद देश के लोगों में गुस्सा नजर आया है। वैसा ही माहौल 12 साल पहले भी था। दो भारतीय सैनिकों की बेरहमी से हुई हत्या के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे और पाकिस्तान से बदला लेने की मांग ने जोर पकड़ा था।
भास्कर ने लांस नायक सुधाकर सिंह के परिजन से बात कर जाना कि क्या ऑपरेशन सिंदूर ने उनके बेटे की शहादत का बदला ले लिया है? पढ़िए रिपोर्ट

डढ़िया गांव का नाम अब सुधाकर सिंह के नाम पर सीधी जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर स्थित डढिया गांव चुरहट के पास स्थित है। चुरहट पूर्व सीएम अर्जुन सिंह और उनके बेटे अजय सिंह का विधानसभा क्षेत्र है। डढिया गांव के प्रवेश पर द्वार सुधाकर सिंह के नाम का स्मृति गेट बनाया गया है। गांव में दूसरे छोर पर शहीद स्थल बनाया गया है। सुधाकर सिंह के नाम पर एक सड़क और पहाड़ी का नाम भी रखा गया है।
गांव में सुधाकर के माता-पिता और बड़े भाई सत्येंद्र का परिवार रहता है। भास्कर की टीम जब यहां पहुंची तो सुधाकर सिंह के पिता सच्चिदानंद गायों को चारा खिला रहे थे। कुछ देर बार वह बैठक के कमरे में आए, उन्होंने कहा- अब उम्र काफी हो चुकी है, इसलिए काम करने में समय लगता है। इसके बाद उनसे बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ…

डढिया गांव में सुधाकर सिंह का पैतृक मकान बना है।
पिता बोले- अभी बदला पूरा नहीं हुआ है सुधाकर के पिता से पूछा कि इस समय बॉर्डर पर पाकिस्तान के साथ तनाव की स्थिति है। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर क्या सोचते हैं? क्या आपका बदला पूरा हुआ, तो बोले- अभी बदला पूरा नहीं हुआ है। पाकिस्तान जब तक पूरी तरह से ध्वस्त और मटियामेट नहीं होता, तब तक चैन नहीं आएगा।
वे बोले- जिस दिन मेरे बेटे के सिर को काटकर पाकिस्तानी ले गए थे उस समय मेरे मन में ख्याल आया था कि भारत की सेना पाकिस्तान को नेस्तनाबूद कर दे। उसे मिट्टी में मिला दे। आज भी ऐसा ही करना पड़ेगा, क्योंकि पाकिस्तान को कोई फर्क नहीं पड़ता। वो लगातार अपने आतंकियों को हमारे देश में भेजता रहेगा।

इस उम्र में भी काम करना पड़ता है, इसी का मलाल सच्चिदानंद कहते हैं कि बेटे की शहादत पर गर्व महसूस होता है, मगर तकलीफ भी है। जिस उम्र में बच्चे अपने माता-पिता की सेवा करते हैं उस उम्र में वह शहीद हो गया। लोग आते हैं पीठ ठोंकते हैं, धन्यवाद कहते हैं। ये सब अच्छा लगता है। मगर, खुद का स्वार्थ की वजह से तकलीफ भी महसूस होती है।
सुधाकर इस घर का इकलौता कमाने वाला सदस्य था। उसका आधार था। घर में एक रुपया आता था तो उसी की वजह से आता था। अब इस उम्र में काम करना पड़ता है। बड़ा बेटा और मैं खेती करते हैं। अब वो ही हमारा आधार है। खेती में भी ढेरों समस्याएं हैं। मदद तो कुछ मिलती नहीं है। आर्थिक स्थिति भी कुछ खास नहीं है।

सुधाकर के शहीद होने के बाद उनकी मां की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है।
तीन पोते हैं, उन्हें सेना में भेजने की ख्वाहिश सच्चिदानंद के तीन पोते हैं। वे चाहते हैं कि तीनों सेना जॉइन करें। वे बताते हैं कि जिस समय सुधाकर शहीद हुआ था तब उसका बेटा केवल 4 महीने का था। बाकी बड़े बेटे के दो बेटे हैं। अभी तो तीनों पढ़ रहे हैं। एक पोता जरूर अब सेना में भर्ती लायक हो चुका है।
सुधाकर की बॉडी जब लाई गई थी, तभी मैंने संकल्प लिया था कि तीनों को मैं सेना में भर्ती कराऊंगा। आज से 12 साल पहले लिया संकल्प वैसा ही है उसमें जरा भी बदलाव नहीं हुआ है।

सुधाकर का बेटा भास्कर अपनी मां के साथ, जब सुधाकर शहीद हुए तब वह 4 महीने का था।
पत्नी दुर्गा, बेटे के साथ रीवा में रहती है शहीद सुधाकर सिंह की पत्नी दुर्गा अपने 12 साल के बेटे भास्कर के साथ रीवा में रहती है। सुधाकर की शहादत के बाद सरकार की तरफ से उन्हें अनुकंपा नियुक्ति दी गई थी। वो रीवा कलेक्ट्रेट में लोअर डिवीजनल क्लर्क हैं। बेटा भास्कर रीवा के ही एक प्राइवेट स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ रहा है।
भारतीय सेना ने सही कदम उठाया-दुर्गा दैनिक भास्कर से बात करते हुए दुर्गा भावुक हो गई। पति का बिना सिर का पार्थिव शरीर गांव आया था। उनका चेहरा भी आखिरी बार नहीं देख सकी, उसका दर्द आज भी है। दुर्गा कहती है पहलगाम हमले के बाद भारतीय सेना पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर जो कार्रवाई की है वो सही कदम उठाया है।
आतंकियों को ये महसूस नहीं होता कि वो जिनकी जान ले रहे हैं उनके भी परिवार हैं। हम लोग किस स्थिति से गुजरते हैं, ये कोई नहीं जानता। इतना जरूर है कि शासन-प्रशासन तत्परता से खड़ा रहता है। आगे कहती हैं कि मौत तो किसी को भी आ सकती है। मौत पर किसका बस है। मेरे पति भी शहीद हुए है। जो लिखा है उसे टाल नहीं सकते।

बेटे को भी आर्मी में भेजना चाहती है दुर्गा दुर्गा कहती है कि मेरे पति शहीद हो गए इसका मतलब ये नहीं कि मैं डर गई। मेरी दिली ख्वाहिश है कि मेरा बेटा आर्मी जॉइन करें। मगर, मैं उसे आर्मी अफसर बनाना चाहती हूं। मैंने उसे एनडीए की तैयारी के लिए कहा है। मैं इतना कहना चाहूंगी कि जो महिलाएं है वो अपने बच्चों को आगे बढ़ने दें। यदि वो फौज में जाना चाहते हैं तो उन्हें न रोके। उन्हें देशसेवा का मौका देना चाहिए।
जिस समय सुधाकर शहीद हुए उस समय बेटा भास्कर बेहद छोटा था। उसे पिता का चेहरा याद नहीं है। उसने केवल फोटो में ही पिता को देखा है। भास्कर कहता है कि मैं भी पिता की तरह फौज में जाना चाहता हूं। सुधाकर सिंह के ससुर भी आर्मी में थे और वर्तमान में मप्र पुलिस में काम करते हैं। उनके परिवार में कई लोग भारतीय सेना में रह चुके हैं। उन्हें भी अपने दामाद पर गर्व है।

सुधाकर की पत्नी रीवा में इसी मकान में रहती है। मकान का का नाम भास्कर विला है।
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शादी की सालगिरह के दो दिन बाद शहादत

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा के रहने वाले विक्की एयरफोर्स में कॉर्पोरल थे। वे पिछले साल 4 मई को आतंकी हमले में शहीद हो गए थे। पत्नी रीना कहती हैं- मेरे बेटे का 7 जून को जन्मदिन था। पति ने कहा था कि वो जन्मदिन पर आएंगे, लेकिन आतंकी हमले में वो शहीद हो गए। मैं तो मानती हूं कि एक साल बाद ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पूरी सेना ने मेरे बेटे का जन्मदिन सेलिब्रेट किया है और मेरे पति को श्रद्धांजलि दी है। पढ़ें पूरी खबर…
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