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किडनी स्टोन की सर्जरी अब और अधिक सटीक और सुरक्षित होगी। एम्स भोपाल देश का पहला केंद्र बनने जा रहा है। जहां पर 3डी प्रिंटेड आर्टिफिशियल किडनी पर ट्रायल सर्जरी की जाएगी। इस परियोजना के तहत पहले मरीज के सीटी स्कैन, एमआरआई इमेज और अन्य टेस्ट रिपोर्ट के आ
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संस्थान को मध्यप्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद से 3डी प्रिंटिंग तकनीक पर आधारित किडनी सर्जरी नवाचार परियोजना के लिए 9 लाख रुपए की अनुसंधान अनुदान राशि स्वीकृत हुई है। इस परियोजना का नेतृत्व यूरोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. केतन मेहरा कर रहे हैं।
उनके साथ सह-अन्वेषक के रूप में सीटीवीएस विभाग से डॉ. विक्रम वट्टी भी जुड़े हैं। दोनों विशेषज्ञों की यह टीम सर्जरी से पहले मरीजों की किडनी का सटीक थ्री डी मॉडल तैयार कर, उस पर सर्जरी करेंगे। इसके लिए 7 लाख रुपए का 3डी प्रिंटर खरीदा जा रहा है। यह एम्स का चौथा 3डी प्रिंटर होगा। इससे पहले एनाटमी, ऑर्थोपेडिक और डेंटल डिपार्टमेंट के पास एक-एक 3डी प्रिंटर है।
पहले से तय होगा सर्जिकल चीरे का स्थान डॉ. केतन मेहरा ने बताया कि परंपरागत तौर पर किडनी स्टोन की सर्जरी में चीरा लगाने का स्थान ऑपरेशन के दौरान तय होता है। इस नई तकनीक में सर्जरी से पहले ही 3डी मॉडल पर अभ्यास किया जा सकेगा। जिससे डॉक्टर यह जान सकेंगे कि कहां चीरा लगाना है?, कौन सी नसें या अंग प्रभावित हो सकते हैं? और कौनसा रास्ता सबसे सुरक्षित रहेगा।

किडनी में मौजूद स्टोन निकालने से होगी शुरुआत इस तकनीक का उपयोग मुख्य रूप से पर्क्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी प्रक्रिया में किया जाएगा। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से किडनी में मौजूद बड़े स्टोन निकालने के लिए उपयोग की जाती है। इसमें चीरे के माध्यम से ट्यूब डालकर पत्थर निकाले जाते हैं। वर्तमान में कई बार गलत चीरा लगने से सर्जरी की जटिलताएं बढ़ जाती हैं। इसके अलावा हर मरीज के शरीर की संरचना अलग-अलग होती हैं। जिससे सर्जरी के दौरान नई चुनौतियां आ जाती हैं।
इस दौरान कम अनुभव वाले सर्जन से गलती होने की संभावना बढ़ जाती है। अब यह प्रक्रिया पहले से बनी 3डी प्रिंटेड गाइड के जरिए अधिक सटीक और मरीज के लिए कम जोखिम भरी होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि यह बिल्कुल मरीज की स्थिति का एक मॉडल होगा। जिसमें त्वचा से लेकर किडनी में मौजूद स्टोन तक हूबहू मरीज की तरह होगा।
मरीजों के लिए यह होगा फायदा
- पहले से तय प्लान के अनुसार ऑपरेशन होगा।
- ऑपरेशन का समय और दर्द दोनों घटेंगे।
- रिकवरी तेजी से होगी।
- जोखिम और जटिलता कम होगी।
अनुदान की राशि यहां होगी खर्च
- अनुदान में मिली राशि से 7 लाख रुपए का उपयोग 3डी रेजिन बेस्ड प्रिंटर तकनीक की खरीदी में किया जाएगा।
- 2 लाख रुपए की राशि जूनियर रिसर्च फैलो के दो साल के वेतन पर खर्च किया जाएगा।
यूरोलॉजिकल केयर में स्थापित होंगे नए मानक
एम्स भोपाल के निदेशक प्रो. डॉ. अजय सिंह ने कहा कि यह तकनीक यूरोलॉजिकल सर्जरी को नई दिशा देगी। इससे न केवल ऑपरेशन सटीक होंगे। बल्कि जटिलताओं की संभावना भी काफी कम हो जाएगी।

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