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महाराष्ट्र के उन बच्चों की कहानियाँ आज सबके लिए प्रेरणा बन गई हैं, जिनका बचपन तंग गलियों में, झोपड़ियों में और कचरे के ढेरों के बीच बीता. जिनके माता-पिता दिन-भर कागज, कांच और प्लास्टिक बीनते रहे, उन्हीं बच्चों ने बारहवीं की परीक्षा में ऐसा प्रदर्शन किया है कि आज पूरा गांव और समाज उनका नाम गर्व से ले रहा है. किसी के पास पढ़ने के लिए अलग कमरा नहीं था, किसी के पास मोबाइल या लैपटॉप नहीं था, लेकिन इन बच्चों ने अपनी मेहनत और आत्मविश्वास के दम पर बड़ी कामयाबी हासिल की.
श्रुति जाधव बनीं मेहनत की मिसाल
श्रुति जाधव, जिनके पिता शिवाजी विट्ठल जाधव पेशे से कचरा बीनते हैं, ने आर्ट्स स्ट्रीम में 82.6% अंक हासिल किए हैं. वे पुणे के मॉडर्न कॉलेज की छात्रा हैं और उन्होंने बिना किसी ट्यूशन या कोचिंग के यह सफलता हासिल की है. श्रुति बताती हैं कि घर की हालत इतनी खराब थी कि पढ़ाई के लिए अलग से वक्त निकालना भी मुश्किल था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और कॉलेज में पढ़ाई के हर मौके का सही उपयोग किया. अब उनका सपना है कि वह आगे जाकर अर्थशास्त्र की पढ़ाई करें और अपने परिवार की हालत सुधारें.
मीनाक्षी इंगले की कामयाबी से गांव में जगी उम्मीद
वाशिम जिले की मीनाक्षी इंगले ने वाणिज्य संकाय में 82.7% अंक प्राप्त किए हैं. उनके पिता पंढरीनाथ इंगले भी कचरा बीनने का काम करते हैं. घर में कमाई का कोई स्थायी साधन नहीं है, फिर भी मीनाक्षी ने अपनी पढ़ाई को कभी बोझ नहीं बनने दिया. उन्होंने किताबों और ज्ञान को अपना हथियार बनाया और आज उनकी सफलता गांव के हर बच्चे को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही है.
रोहित की जिद ने दिलाया सम्मान
रोहित की कहानी सबसे खास है. जब वह पांचवीं कक्षा में था, तभी उसकी मां ने बीमारी और गरीबी के कारण कचरा इकट्ठा करना शुरू कर दिया था. गरीबी के कारण उसकी पढ़ाई बार-बार बाधित हुई. दसवीं की परीक्षा उसे पांच बार देनी पड़ी. लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी. आखिरकार, उसने सातवें प्रयास में 66.17% अंकों के साथ बारहवीं पास की. उसकी मां की आंखों में आज खुशी के आंसू हैं. उनका कहना है कि बेटा जब भी थकता था, वह उसे हिम्मत देती थीं और कहती थीं – ‘तू कर सकता है बेटा’. आज रोहित का नाम पूरे गांव में गर्व से लिया जा रहा है.
साक्षी, साईराज, हर्ष और कांबले ने भी दिखाया कमाल
इन सफल छात्रों में साक्षी फड़के (77.83%, वाणिज्य), साईराज सोनवणे (73%, वाणिज्य), साक्षी कांबले (64%, विज्ञान), हर्ष महावीर (51.17%, विज्ञान) जैसे नाम भी हैं, जिनके घरों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. फिर भी इन बच्चों ने हालात से लड़ना सीखा और अपने दम पर बड़ी सफलता हासिल की. इन छात्रों को आज न सिर्फ स्कूल और कॉलेज, बल्कि समाज भी सराह रहा है.
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