Home देश/विदेश पाकिस्तान सेना में धर्म का ज़हर भरने का काम जिया उल हक...

पाकिस्तान सेना में धर्म का ज़हर भरने का काम जिया उल हक ने किया.

14
0

[ad_1]

– पाकिस्तान सेना को मुख्य तौर पर धर्म के साथ जोड़ने का काम जिया उल हक ने किया
– सैनिकों के लिए रोज नमाज अता करना जरूरी है
– सैनिकों को इस्लामी शिक्षाओं से अवगत होना पड़ता है
– तब्लीग जमात की गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं
– सैनिकों की गोपनीय रिपोर्ट में धार्मिक कर्तव्यों का पालन का मूल्यांकन भी होता है

पाकिस्तान की सेना एक जमाने में प्रोफेशनल फौज थी लेकिन अब इस सेना को रोजाना धर्म की घुट्टी जमकर पिलाई जाती है. ताकि उनके दिमाग में धर्म और दूसरे धर्मों के प्रति नफरत को खूब भरा जा सके.ज़िया-उल-हक़ के दौर के बाद से अब पाकिस्तान की सेना ‘इस्लामी सेना’ में बदली जा चुकी है, जहां धर्म को घुट्टी की तरह हर सैनिक और अधिकारी के भीतर उतारा गया. इसका असर अब पाकिस्तान की सिविल और मिलिट्री पॉलिसी दोनों में साफ़ दिखता है.

असल में पाकिस्तानी सेना का निर्माण 1947 में भारत के बंटवारे के साथ हुआ था. शुरू में यह ब्रिटिश इंडियन आर्मी की तर्ज़ पर एक प्रोफेशनल फौज थी, जिसमें धर्म को औपचारिक तौर पर उतनी अहमियत नहीं दी जाती थी. आजादी के बाद पहले दो दशक यानि करीब 1971 तक पाकिस्तान आर्मी तटस्थ और प्रोफेशनल बनी रही, हालांकि पाकिस्तान का गठन तो इस्लाम के ही आधार पर हुआ. बाद में ये इस्लामिक स्टेट बन गया.

ये काम जिया उल हक के दौर में शुरू हुआ
पाकिस्तानी सेना में धर्म का ज़हर घुट्टी की तरह भरने का असली दौर जनरल ज़िया-उल-हक़ के दौर में शुरू हुआ. 1977 में जब ज़िया ने प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो का तख़्तापलट कर सत्ता अपने हाथ में ली तो अपनी सत्ता को मज़बूत करने के लिए उन्होंने धार्मिकता का सहारा लेकर “इस्लामीकरण” की नीति अपनाई.

ज़िया के बाद भी ये नीति जारी रही. कश्मीर में आतंकवाद को ‘इस्लामी जिहाद’ की शक्ल देकर पाक सेना ने मज़हबी भावनाओं का इस्तेमाल किया. ISI ने लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन खड़े किए, जिनके ट्रेनिंग कैम्प्स में धार्मिक कट्टरता भरना अहम एजेंडा बना.

अब मौलवी भी पढ़ाते सिखाते हैं पाकिस्तान सेना को
अब पाकिस्तानी सेना में धर्म के एक अनिवार्य पहलू बन चुका है. मुख्य तौर पर इसमें खासकर भारत के खिलाफ जहर ज्यादा घोला जाता है. ये काम धार्मिक स्कालर और मौलवी मिलकर करते हैं.

अफ़ग़ान जिहाद (1979-1989) में पाकिस्तानी सेना और ISI ने अमेरिका और सऊदी अरब की मदद से हजारों मुजाहिदीन तैयार किए, जिनके ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत विरोधी जिहाद लड़ा गया. इस पूरे नेटवर्क का इस्तेमाल बाद में भारत के खिलाफ कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए भी किया जा रहा है.

Generated image

पाकिस्तान की सेना मुकम्मल तौर पर इस्लामी धार्मिक शिक्षाओं से जुड़ी रहे, इसलिए उनकी क्लास नियमित तौर पर मौलवियों द्वारा ली जाती है (News18 AI)

जिया उल हक ने क्या शुरू किया
जनरल जिया उल हक के जमाने से पाकिस्तानी सेना को धर्म की घुट्टी जहर की तरह देने के लिए क्या क्या चीजें शुरू की गईं.
1. सेना में धार्मिक स्कॉलर और मौलवियों की नियुक्ति
2. सैनिकों के लिए नमाज़, कुरान पढ़ना और धार्मिक शिक्षा ज़रूरी कर दी गई.
3. हर डिविजन और यूनिट में इमाम मस्जिद की तैनाती जरूरी कर दी गई.
4. धार्मिक नारों का इस्तेमाल जैसे “जंगे-हक़” और “इस्लाम के लिए जिहाद” को सैन्य ऑपरेशन्स के नारों में शामिल किया गया.
5. सैनिकों की ट्रेनिंग में जिहाद और इस्लाम की रक्षा को फर्ज़ बताया जाने लगा.

धार्मिक शिक्षा कैसे अनिवार्य
– पाकिस्तानी सैन्य अकादमियों और प्रशिक्षण संस्थानों में इस्लामिक शिक्षा (दीनियात) को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है.
– सैनिकों और अधिकारियों को कुरान, हदीस और इस्लामिक इतिहास की बुनियादी जानकारी दी जाती है.
– सेना में नैतिक शिक्षा (Moral Training) के तहत धार्मिक मूल्यों पर जोर दिया जाता है.

Generated image

पाकिस्तानी सेना में सैनिकों और अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग में ये देखा जाता है कि वो धार्मिक तौर पर कितना कट्टर है. (News18 AI)

हर सैनिक की खुफिया रिपोर्ट कैसे बनती है
पाकिस्तान सेना में हर सेना और अफसर की जो गोपनीय सर्विस रिपोर्ट तैयार की जाती है, उसमें खासतौर पर इसका जिक्र जरूर किया जाता है कि वह किस हद तक इस्लाम के प्रति समर्पित है.

कैसे सैनिकों और सेना अफसरों को आगे बढ़ाते हैं
– प्रोमोशन्स और पोस्टिंग में अमूमन उनकी धार्मिक कट्टरता को जांचते परखते हैं.
– भारत के खिलाफ ‘जिहाद’ का नैरेटिव सैनिकों में भरा जाता है.
– कश्मीर, अफ़ग़ानिस्तान और बलोचिस्तान में सैन्य ऑपरेशन्स को अक्सर धार्मिक नैतिकता के आवरण में जायज़ ठहराया जाता है.
– ISI और सेना के स्पेशल ब्रांच में धार्मिक उन्माद को बाकायदा एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

सेना में धार्मिक विभाग
– पाकिस्तानी सेना में धार्मिक मामलों का एक अलग विभाग होता है, जिसका काम सैनिकों को धार्मिक मार्गदर्शन देना है.
– इस विभाग के अंतर्गत मस्जिदों, इमामों और धार्मिक शिक्षकों (मौलवियों) की नियुक्ति की जाती है.
– सेना के धार्मिक प्रकोष्ठ (Army Religious Corps) के अधिकारी और जवान धार्मिक गतिविधियों को संचालित करते हैं.

जिहाद को नेशनल सेक्युरिटी से जोड़कर देखते हैं
– पाकिस्तानी सेना के कुछ हिस्सों में “जिहाद” (धर्मयुद्ध) को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देखा जाता है, खासकर कश्मीर और अफगानिस्तान संबंधी मामलों में.
– सेना द्वारा समर्थित कुछ इस्लामिक संगठन (जैसे जमात-उद-दावा) ने अतीत में धार्मिक आधार पर सैन्य रणनीति को प्रभावित किया है
– पाकिस्तानी सेना के प्रचार में अक्सर इस्लामिक शब्दावली और इस्लामिक नायकों (जैसे खालिद बिन वलीद) का उल्लेख किया जाता है.

[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here