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मां खिलौने वाली लॉरी चलाती थी, बेटा ने मेहनत करके क्लियर कर लिया UPSC…अंकित की कहानी पढ़कर आंखें नम हो जाएंगी

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UPSC result: अहमदाबाद के मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले अंकित वानिया ने कठिन संघर्षों के बावजूद UPSC में 607वीं रैंक हासिल की. खिलौने बेचने से लेकर सिविल सेवा तक की उनकी यात्रा लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन ग…और पढ़ें

मां खिलौने वाली लॉरी चलाती थी, बेटा ने मेहनत करके क्लियर कर लिया UPSC...

यूपीएससी टॉपर 2024

अहमदाबाद के रहने वाले अंकित वानिया ने यह साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों और मेहनत में कोई कमी न हो, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रह सकता. यूपीएससी 2024 के नतीजों में अंकित ने 607वीं रैंक हासिल कर अपने परिवार और समाज का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है. कठिन हालातों से जूझते हुए अंकित ने सफलता की इस ऊंचाई को छुआ है, जो आज हजारों युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन चुका है.

लंबी यात्रा, कठिन राहें और न रुकने वाला जुनून
न्यूज 18 गुजराती से बातचीत में अंकित ने कहा कि यह सफर आसान नहीं था. साल 2016-17 में उन्होंने यूपीएससी की तैयारी की शुरुआत की, लेकिन सही मायनों में उन्होंने 2021 से इसे गंभीरता से लेना शुरू किया. यह उनका तीसरा मौका था जब उन्होंने मुख्य परीक्षा दी और पहली बार इंटरव्यू में बैठे – और इस बार वे पास हो गए. अंकित ने कहा कि वे बहुत खुश हैं क्योंकि सालों की मेहनत आखिरकार रंग लाई.

सरकारी नौकरी छोड़ी, फिर से थामा किताबों का रास्ता
अंकित पहले से ही सरकारी नौकरी में कार्यरत थे. 2016 में उन्हें वरिष्ठ क्लर्क की नौकरी मिली और कुछ सालों बाद वे नगरपालिका के मुख्य अधिकारी के पद तक पहुंच गए. लेकिन जब उन्होंने आयुक्त से बात की तो उन्हें समझ आया कि असली बदलाव लाने के लिए उन्हें सिविल सेवा में जाना होगा. फिर क्या था, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और दोबारा तैयारी में जुट गए. उन्होंने एसपीआईपीए (SPIPA) में दाखिला लिया और खुद को पूरी तरह से यूपीएससी की तैयारी में झोंक दिया.

मध्यम वर्गीय परिवार, पर सपनों की कोई सीमा नहीं
अंकित ने बताया कि वे एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं. उनकी मां ईंट भट्टे पर काम करती थीं और खिलौने वाला ट्रक चलाकर घर चलाती थीं. उनके पिता एलआईसी में चपरासी की नौकरी करते थे. बचपन में वे गांव के एक चुड़ैल के मंदिर के पास खिलौने बेचा करते थे और एक फैक्ट्री में मोजे भी बेचे. लेकिन कभी हालात को बहाना नहीं बनाया, बल्कि उन्हें सीढ़ी बनाकर अपने सपनों तक पहुंचते गए.

आईएएस बनने का सपना अभी बाकी है, मेहनत जारी रहेगी
अंकित का कहना है कि भले ही उन्हें अभी आईएएस का पद न मिला हो, लेकिन उनका सपना अब भी जिंदा है. वे कहते हैं कि वे तब तक मेहनत करते रहेंगे जब तक वे आईएएस न बन जाएं. उनका मानना है कि समाज में बदलाव लाने के लिए ऐसे पदों पर अच्छे, संवेदनशील और मेहनती लोगों का पहुंचना जरूरी है.

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