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RDVV Question mark on appointment of Vice-Chancellor | RDVV कुलगुरु की नियुक्ति को लेकर दिग्विजय ने लिखा लेटर: केंद्रीय शिक्षा मंत्री, राज्यपाल, सीएम को लिखे लेटर में नियुक्ति को बताया ‘शैक्षणिक नैतिकता की हत्या’ – Jabalpur News

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जबलपुर की रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी (RDVV) में कुलपति प्रो. राजेश कुमार वर्मा की नियुक्ति सवालों के घेरे में है। राज्यसभा सांसद और संसद की शिक्षा, महिला एवं बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, मध्यप्

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जानकारी के अनुसार यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर राजेश कुमार वर्मा की प्राध्यापक के रूप में मूल नियुक्ति पहले ही कानूनी रूप से अमान्य थी। अब कुलपति पद पर पदोन्नति से यह सवाल और भी गंभीर हो गया है, कि अवैध नियुक्ति से शुरू हुआ सफर, नियमों की बलि चढ़ाकर यूनिवर्सिटी के सर्वोच्च पद तक कैसे पहुंचा?

जबलपुर NSUI लगातार उचित माध्यमों से इस मुद्दे पर हमलावर रही है। मामला विधानसभा तक भी पहुंच चुका है। एनएसयूआई के प्रदेश उपाध्यक्ष अमित मिश्रा ने इस मामले की शिकायत वरिष्ठ सांसद दिग्विजय सिंह को सौंपी है। शिकायत की गंभीरता को देखते हुए दिग्विजय सिंह ने तुरंत संबंधित लोगों को पत्र लिखकर मामले की गंभीरता की तरफ इशारा किया।

पत्र के अनुसार, वर्ष 2009 में मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) द्वारा जारी विज्ञापन में स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि प्रोफेसर पद हेतु वे ही व्यक्ति पात्र होंगे जिनका शोध कार्य उच्च गुणवत्ता का रहा हो। पीएचडी डिग्री और कम से कम दस वर्षों का शिक्षण अनुभव अनिवार्य है। लेकिन दस्तावेज बताते हैं कि प्रो. राजेश कुमार वर्मा ने अपनी पीएचडी डिग्री 25 नवम्बर 2008 को प्राप्त की थी। केवल दो महीने बाद प्रोफेसर पद के लिए आवेदन कर दिया और चयनित हो गए। जबकि उक्त दिनांक तक किसी भी प्रतिष्ठित शोध पत्रिका में उनके शोध पत्र का प्रकाशन नहीं हुआ था। न्यायिक निर्णयों और यूजीसी नियमों के अनुसार, शिक्षण अनुभव की गणना पीएचडी के बाद ही की जाती है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि प्रो. वर्मा विज्ञापन की पात्रता को पूरा ही नहीं करते थे।

यह कोई साधारण चूक नहीं, बल्कि एक सुनियोजित नियुक्ति घोटाला प्रतीत होता है। एक ओर जहां हजारों योग्य उम्मीदवार उचित अवसर के लिए संघर्ष करते हैं, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति झूठी योग्यता और नियमों की अनदेखी करके न केवल प्रोफेसर बना, बल्कि अब विश्वविद्यालय का कुलपति भी बन गया।

संसदीय समिति के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह ने इस नियुक्ति को ‘शैक्षणिक नैतिकता की हत्या’ करार देते हुए मांग की है, कि अगर प्रो. वर्मा की मूल नियुक्ति ही गैरकानूनी थी, तो फिर उनकी पदोन्नति को भी तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए। यह मामला न केवल एक व्यक्ति की नियुक्ति का है, बल्कि पूरी व्यवस्था की पारदर्शिता, निष्पक्षता और योग्य उम्मीदवारों के साथ न्याय का है।

दिग्विजय सिंह ने यह भी सवाल उठाया कि क्या मध्य प्रदेश में कुलपति की नियुक्तियां अब “पैसे और पहचान” की राजनीति का शिकार हो चुकी हैं?, उन्होंने मांग की है कि न केवल प्रो. वर्मा की नियुक्ति की न्यायिक जांच कराई जाए, बल्कि राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों में हुई सभी कुलपति नियुक्तियों की स्वतंत्र जांच भी आवश्यक है। यदि शिक्षा में योग्यता नहीं, तो फिर किस क्षेत्र में होगी? यदि विश्वविद्यालयों में भी साजिशें होंगी, तो भविष्य की नींव कौन रखेगा?।

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