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प्राचीन मंदिर में स्थापित हरसिद्धि माता
आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है। इंदौर के प्राचीन मंदिरों में से एक हरसिद्धि माता मंदिर में भक्त बड़ी संख्या में दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। मंदिर को फूलों से सजाया गया है। हरसिद्धि माता भगवान श्री कृष्ण और राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी मानी जाती हैं
.
260 साल पुराना मंदिर का इतिहास पंढरीनाथ क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का निर्माण करीब 260 साल पहले 1766 ई. में देवी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। यह मंदिर मराठा शैली में निर्मित है। यहां हरसिद्धि देवी का महिषासुर मर्दिनी रूप में प्रतिमा स्थापित है।
मंदिर के प्रवेश द्वार के पास एक पक्की बावड़ी हुआ करती थी, जहां से यह मूर्ति प्राप्त हुई थी। यह मंदिर इंदौर का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। यहां श्रद्धालुओं का रोजाना तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है।

मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर ने 1766 ई. में मराठा शैली में कराया गया था।
माँ की मूर्ति और उनके स्वरूप हरसिद्धि माता की प्रतिमा महिषासुर मर्दिनी रूप में है, जिसमें देवी चार भुजाओं के साथ खड़ी हैं। उनकी दाहिनी भुजा में खड्ग और त्रिशूल, जबकि बायीं भुजा में घंटा और मुण्ड धारण किए हुए हैं। इस दिव्य मूर्ति की पूजा श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है।
मंदिर के पुजारी और धार्मिक अनुष्ठान पुजारी परिवार से जुड़े पंडित सुनील शुक्ला मंदिर के मुख्य पुजारी हैं। इनका परिवार दस पीढ़ी से माता हरसिद्धी की सेवा करता आ रहा है। मंदिर के संस्थापक पुजारी पं. जनार्दन भट्ट थे, जिन्हें देवी अहिल्याबाई ने सनद देकर पुरोहित नियुक्त किया था।
पंडित सुनील शुक्ला ने बताया कि नवरात्रि के दौरान हरसिद्धि माता मंदिर में भव्य पूजा अर्चना और विशेष आयोजन होते हैं। नवरात्रि में विशेष रूप से सिंहवाहिनी रूप में श्रृंगार किया जाता है। नवरात्रि के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में देवी का अभिषेक किया जाता है। श्रद्धालु यहां दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करते हैं। नवरात्रि की अष्टमी और नवमी को विशेष हवन और कन्या पूजन का आयोजन भी किया जाता है।

पंडित सुनील शुक्ला मंदिर के मुख्य पुजारी हैं।
हरसिद्धी माता की कथा पंडित सुनील शुक्ला के अनुसार, हरसिद्धी देवी की कथा स्कंदपुराण में मिलती है। आदिशक्ति को भगवान शिव से वरदान मिला था, इसलिए हरसिद्धी माता के नाम से जानी गईं। इन्हें सभी के कामों को सिद्ध करने वाली देवी माना जाता है।
नवरात्रि में माता की कृपा पाने के लिए “सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते”का जाप करें। हरसिद्धी माता को प्रसन्न करने के लिए “त्रिनेत्रामं हस्त सयुंक्ता सर्वालंकार भूषिताम, वयजयां त्वाम अहम वंदे हरसिद्धि माता।” जाप करना चाहिए।
सात दिनों के अलग-अलग भोग माता को सात दिनों अलग-अलग भोग लगता है। सोमवार को शिरा पूरी , मंगलवार को मोहन थाल, बुधवार को बरफी-पेड़ा, गुरुवार को छोला पूरी, शुक्रवार को घेवर , शनिवार को रबड़ी और रविवार को रसगुल्ले का भोग लगाया जाता है। नवरात्रि में इसके अलावा मिसरी, गुड़-चना, नारियल, फल, मेवे का भोग लगाने से मां प्रसन्न होती हैं।

हरसिद्धि माता मंदिर में भक्त बड़ी संख्या में दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
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