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नई दिल्ली. आज भारत की दूसरी सबसे बड़ी पेंट कंपनी, बर्जर पेंट्स किसी परिचय का मोहताज नहीं है. आज इसका बाजार पूंजीकरण 58 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है. कंपनी की भारत में 16, नेपाल में 2, पोलैंड और रूस में 1-1 फैक्टरी है. कंपनी में करीब 3600 कर्मचारी काम करते हैं. आपको जानकार हैरानी होगी कि आज से करीब 35 साल पहले बर्जर पेंट्स की हालत बहुत खस्ता थी. तब यह विजय माल्या के यूबी समूह के नियंत्रण में थी और भारी घाटे में चल रही थी. इसी जर्जर हालत को देखते हुए यूबी समूह ने बर्जर समूह को 1991 में कुलदीप सिंह ढिंगरा और गुरबचन सिंह ढींगरा को बेच दिया. ढींगरा बंधुओं के हाथों में बर्जर पेंट्स की कमान आते ही इसकी बदरंग हालत ‘रंगीन’ हो गई.
ढींगरा बंधुओ ने इस डूबती हुई कंपनी को न केवल बचाया, बल्कि इसे 68,000 करोड़ रुपये से अधिक के साम्राज्य में बदल दिया. कुलदीप सिंह ढींगरा और गुरबचन सिंह ढींगरा के परिवार का चार पीढियों से रंगों का नाता रहा है. उनकी अमृतसर में पेंट शॉप थी. अपने एक दोस्त के जरिए उन्होंने माल्या से मुलाकात की और बर्जर पेंट्स का सौदा तय किया था. उस समय बर्जर पेंट्स भारत की सबसे छोटी पेंट कंपनियों में से एक थी, लेकिन ढींगरा बंधुओं ने इसमें अपार संभावनाएं भांप ली थी और सौदा कर लिया.
1898 से पेंट कारोबार में है ढींगरा परिवार
ढींगरा परिवार का पेंट उद्योग से नाता 1898 से है. कुलदीप सिंह ढींगरा और गुरबचन सिंह ढिंगरा के परदादा ने अमृतसर में एक छोटी हार्डवेयर दुकान शुरू की थी. इस दुकान में पेंट खूब बिका करता था. जिसके चलते परिवार ने इसे अपना मुख्य व्यवसाय बना लिया. परदादा के बाद ढींगरा बंधुओं के दादा और पिता ने पेंट का कारोबार संभाला. कुलदीप और गुरबचन ढिंगरा दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद पेंट के पारिवारिक व्यवसाय को संभाला. 1970 के दशक तक उनकी दुकानों का सालाना टर्नओवर करीब 10 लाख रुपये था.
1980 के दशक में ढींगरा बंधुओं ने सोवियत संघ (USSR) को पेंट निर्यात करना शुरू किया. इससे उनकी आमदनी तेजी से बढी और उनका सालाना आय 300 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. इस सफलता ने उनकी महत्वाकांक्षा को नई दिशा दी. 1991 में एक ऐसा मौका आया जिसने ढींगरा बंधुओं की किस्मत बदल दी. उस समय विजय माल्या के यूबी ग्रुप के पास बर्जर पेंट्स थी, जो एक ब्रिटिश पेंट कंपनी थी, लेकिन यह भारत में घाटे में चल रही थी. माल्या इसे बेचना चाहते थे. ढींगरा बंधुओं ने इस मौके को हाथ से नहीं जाने दिया और बर्जर पेंट्स को खरीद लिया.
ऐसे बदली कंपनी की तकदीर
बर्जर पेंट्स को खरीदने के बाद ढिंगरा बंधुओं ने कंपनी को घाटे से निकालने के लिए कई कदम उठाए. उन्होंने क्वालिटी प्रोडक्ट्स को किफायती दामों पर उपलब्ध कराया, जिससे आम ग्राहकों के बीच ब्रांड की लोकप्रियता बढ़ी. ढींगरा बंधुओं ने आक्रामक और रचनात्मक मार्केटिंग रणनीतियां अपनाईं. उन्होंने कंपनी का विस्तार भारत के बाहर रूस, पोलैंड, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में किया. इसके अलावा, जापान की निप्पॉन पेंट्स और स्वीडन की बेकर के साथ साझेदारी कर कंपनी को तकनीकी मजबूती दी. कुलदीप और गुरबचन ने खुद को दैनिक प्रबंधन से दूर रखा और पेशेवर टीम को जिम्मेदारी सौंपी, जिससे कंपनी को व्यवस्थित विकास मिला.
90 करोड़ से 10,619 करोड़ तक का सफर
1991 में बर्जर पेंट्स का सालाना राजस्व मात्र 90 करोड़ रुपये था. 2023 में कंपनी का राजस्व 10,619 करोड़ रुपये हो गया और यह भारत की दूसरी सबसे बड़ी पेंट कंपनी बन गई, जो केवल एशियन पेंट्स से पीछे है. फोर्ब्स के अनुसार, ढींगरा बंधुओं की संयुक्त संपत्ति 8.2 बिलियन डॉलर (लगभग 68,467 करोड़ रुपये) है. वर्तमान में कुलदीप की बेटी रिश्मा कौर और गुरबचन के बेटे कंवरदीप सिंह ढींगरा कार्यकारी निदेशक के रूप में कंपनी को संभाल रहे हैं.
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