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19 जून 2011 की शाम इंदौर की पॉश श्रीनगर कॉलोनी में सूरज ढल रहा था। रोज की तरह चहल-पहल थी। कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि इस शांत माहौल में एक खूनी खेल खेला जाएगा। लेकिन उस दिन तीन पीढ़ियों की बर्बर हत्या होने वाली थी।
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शाम करीब 5:30 बजे पड़ोसी युवती की चीखों ने पूरी कॉलोनी को हिला दिया। लोगों ने देखा, तो नजारा रोंगटे खड़े कर देने वाला था। देशपांडे परिवार की तीन महिलाओं रोहिणी फणसे (65), मेघा देशपांडे (50) और अश्लेषा (23) का रक्तरंजित शव कमरे में पड़ा था। ये तीनों रिश्ते में मां, बेटी और नातिन थीं। गले और पेट पर गहरे जख्म थे।
पूरा कमरा खून से सना था। इस खौफनाक कत्ल की मास्टरमाइंड थी 23 साल की नेहा वर्मा। एक महत्वाकांक्षी लड़की, जो अमीरी और ऐशो-आराम के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थी। उसका बॉयफ्रेंड राहुल चौधरी और साथी मनोज आटोद उसके इस नृशंस षड्यंत्र में शामिल रहे।
ऐसे हुई खूनी प्लान की शुरुआत: नेहा की मुलाकात मेघा से एक मॉल में हुई थी। उसने देखा कि मेघा महंगे गहनों से सजी थी, जिससे उसके अमीर होने का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था। बातचीत में पता चला कि मेघा के पति बैंक में मैनेजर हैं और अक्सर शहर से बाहर रहते हैं। नेहा को एक शॉर्टकट दिखा, जल्दी अमीर बनने का। उसने धीरे-धीरे मेघा से दोस्ती बढ़ाई और उसके घर आना-जाना शुरू कर दिया।
बॉयफ्रेंड के साथ बनाई थी घर लूटने की योजना
अपने बॉयफ्रेंड राहुल और मनोज से उसने लूट की योजना बनाई। 19 जून की शाम जब तीनों घर में थे, नेहा ने दरवाजा खोल दिया और राहुल-मनोज अंदर घुस आए। लेकिन मेघा और उसकी बेटी अश्लेषा ने प्रतिरोध किया। बचने के लिए राहुल ने गोली चला दी, जिससे उसके पैर में भी गोली लग गई।
तीनों महिलाओं को बेरहमी से चाकू से गोद दिया गया। हत्या के बाद अलमारी से नकदी और गहने लूट लिए गए। हालांकि गोली चलने के दौरान एक आरोपी राहुल घायल हो गया जो शहर के एक निजी अस्पताल में इलाज करवा रहा था। पुलिस ने उसे वहां हिरासत में लेकर सख्ती से पूछताछ की तो उसने सारा सच उगल दिया।
फिर पुलिस ने नेहा को एटीएस से रुपए निकालते हुए दबोच लिया। साथ ही मनोज भी पकड़ में आ गया। उनके पास से हत्या में इस्तेमाल रिवॉल्वर, चाकू, 1.5 लाख नकद, 5 लाख के गहने और एटीएम बरामद किए।
जिला कोर्ट ने तीन बार फांसी की सजा सुनाई, सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद में बदली
इंदौर की जिला अदालत ने इस ट्रिपल मर्डर को ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ मानते हुए तीनों दोषियों को तीन बार फांसी की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा, लेकिन जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो उनकी सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया।
पूरी घटना में जो बात सामने आई वह यह कि नेहा वर्मा को लग्जरी लाइफ किसी भी कीमत पर चाहिए थी। लेकिन उसके इसी जुनून ने उसे एक खूनी अपराधी बना दिया। यह कहानी सिर्फ अपराध की नहीं, बल्कि उस खतरनाक सोच की भी है, जो लालच और महत्वाकांक्षा के अंधे कुएं में इंसान को धकेल देती है।
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