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हिंदू मैरिज एक्ट में अल्पसंख्यक वर्ग के मामलों को नहीं सुने जाने के फैमिली कोर्ट के आदेश पर मंगलवार को हाई कोर्ट की डिविजन बेंच के समक्ष सुनवाई हुई। 1 घंटे चली सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। हाई कोर्ट ने पूर्व में फैमिली कोर्ट
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याचिकाकर्ता निखिल की ओर से अधिवक्ता पंकज खंडेलवाल ने फैमिली कोर्ट के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट को बताया कि फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए अर्जी खारिज कर दी था कि केंद्र सरकार ने 27 जनवरी 2014 को जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया था। इस वजह से हिंदू मैरिज एक्ट के तहत इस समुदाय की सुनवाई नहीं की जा सकती।
सहमति से अलग होने पर तत्काल फैसला अधिवक्ता खंडेलवाल ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट पूर्व में आदेश पारित कर चुका है कि जब सुलह के रास्ते बंद हो गए हैं तो तलाक की अर्जी स्वीकार कर ली जानी चाहिए। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 2 के अनुसार हिंदू के अलावा जैन, सिख, बौद्ध समुदाय के मामलों में भी प्रावधान लागू होंगे।
बाकायदा संविधान में भी इसका उल्लेख है। हाई कोर्ट ने ही पीके जैन विरुद्ध अंजू जैन, अलका जैन विरुद्ध नवीन जैन, अनिल कुमार जैन विरुद्ध माया जैन के मामलों में भी तलाक की अर्जियों को हिंदू मैरिज एक्ट के प्रावधानों के तहत स्वीकार किया है।
एक साथ 28 परिवाद खारिज किए थे फैमिली कोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट में अल्पसंख्यक वर्ग के पक्षकारों को सुनवाई का हक नहीं होने के मुद्दे पर एक नहीं बल्कि 28 परिवाद एक साथ खारिज कर दिए थे।
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