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Raisina Dialogue 2025: शशि थरूर ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर अपने पुराने रुख पर जताया अफसोस.

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Raisina Dialogue 2025: शशि थरूर ने रायसीना डायलॉग 2025 में स्वीकार किया कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर 2022 में उनका रुख गलत था और अब उन्हें अफसोस है. उन्होंने पीएम मोदी की नीति की तारीफ भी की.

मुझे अफसोस...रूस-यूक्रेन जंग पर शशि थरूर को गलती का एहसास, कहा- मोदी सरकार सही

Raisina Dialogue 2025: शशि थरूर ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर अपने पुराने रुख पर जताया अफसोस.

हाइलाइट्स

  • शशि थरूर ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर 2022 में अपनाया रुख गलत माना.
  • थरूर ने पीएम मोदी की नीति की तारीफ की.
  • भारत ने रूस-यूक्रेन संकट में संतुलित रुख अपनाया.

Raisina Dialogue 2025: रूस और यूक्रेन के बीच 2022 में युद्ध शुरू हुआ था. जंग अब भी जारी है. जब पूरी दुनिया में रूस-यूक्रेन जंग से खलबली मची तब कांग्रेस नेता शशि थरूर उस समय भारत के रुख के सबसे मुखर विरोधियों में से एक थे. तब उन्होंने भारत के स्टैंड को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की थी. अब तीन साल बाद उन्हें अपने स्टैंड को लेकर पछतावा है. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने मंगलवार को रायसीना डायलॉग 2025 में स्वीकार किया कि रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर 2022 में जो रुख उन्होंने अपनाया था, वह सही नहीं था. अब उन्हें उस बयान पर अफसोस हो रहा है.

दरअसल, साल 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद शशि थरूर भारत सरकार के रुख के सबसे मुखर आलोचकों में से एक थे. उस समय उन्होंने संसद में कहा था कि भारत का रूस-यूक्रेन युद्ध पर अचानक चुप हो जाना यूक्रेन और उसके समर्थकों के लिए निराशाजनक होगा. उन्होंने सरकार पर मौन रहने का आरोप लगाते हुए कहा था, ‘रूस हमारा दोस्त है और उसकी कुछ वैध सुरक्षा चिंताएं हो सकती हैं, लेकिन भारत का अचानक इस मुद्दे पर चुप हो जाना यूक्रेन और उसके समर्थकों को निराश करेगा. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत इस मामले में मौन हो गया.’

शशि थरूर ने मानी गलती
रायसीना डायलॉग 2025 में शशि थरूर से पूछा गया कि क्या रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की स्थिति को देखते हुए उन्हें खुशी है कि भारत ने जो रुख अपनाया, वह सही था? इस पर शशि थरूर ने माना कि तीन साल बाद उन्हें अपनी उस स्थिति पर अफसोस है. उन्हें शर्मिंदगी जैसा अहसास हो रहा है. उन्होंने कहा कि अब मुझे अफसोस है कि जो रुख मैंने अपनाया था, वह सही नहीं था. शशि थरूर ने कहा, ‘मुझे अब भी शर्मिंदगी महसूस हो रही है. फरवरी 2022 में संसदीय बहस में मैं अकेला शख्स था जिसने भारत के रुख की आलोचना की थी. मैंने कहा था कि ये संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र का उल्लंघन है. सीमाओं की अखंडता और एक सदस्य देश यानी यूक्रेन की संप्रभुता के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ है. हम हमेशा से ही अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने के लिए बल प्रयोग को अस्वीकार्य मानते आए हैं. मैंने कहा था कि इन सारे सिद्धांतों का एक पक्ष ने उल्लंघन किया है और हमें निंदा करनी चाहिए थी.’

पीएम मोदी की तारीफ?
शशि थरूर ने आगे स्वीकार किया, ‘तीन साल बाद ऐसा लगता है कि मैं ही बेवकूफ बन गया. स्पष्ट रूप से इस नीति का मतलब है कि भारत के पास वास्तव में एक ऐसा प्रधानमंत्री है जो दो सप्ताह के अंतराल में यूक्रेन के राष्ट्रपति और रूस के राष्ट्रपति दोनों को गले लगा सकते हैं.’ उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उस नीति के कारण, भारत ऐसी स्थिति में है जहां वह स्थायी शांति के लिए अपनी भूमिका निभा सकता है. उन्होंने कहा, ‘दूरी से मदद मिलती है. तथ्य यह है कि हम यूरोप में नहीं हैं और हमें सीधे तौर पर किसी भी तरह का खतरा नहीं है, और उदाहरण के लिए हमें क्षेत्रीय सीमाओं में किसी भी बदलाव से कोई फायदा नहीं होता है, इससे मदद मिलती है.’

शशि थरूर से हुई चूक?
तीन साल बाद शशि थरूर का मंच से यह स्वीकार करना कि उस समय का उनका रुख गलत साबित हुआ और आज की परिस्थितियों को देखते हुए उन्हें इस पर पछतावा है, अपने आप में बड़ी बात है. शशि थरूर का यह बयान ऐसे समय आया है, जब भारत ने रूस-यूक्रेन संकट में संतुलित और तटस्थ रुख अपनाते हुए शांति और कूटनीतिक समाधान की वकालत की है. शशि थरूर के इस बयान से उनके पहले के रुख पर पुनर्विचार की झलक मिलती है और यह भी संकेत मिलता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बदलते समीकरणों को समझने में शायद उनसे चूक हुई थी.

क्या भारत यूक्रेन शांति रक्षक भेजेगा?
थरूर से यह भी पूछा गया कि क्या यह संभव है कि भारत यूक्रेन समेत संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में शांति रक्षक भेजेगा? उन्होंने बताया कि फैसला कई बातों पर निर्भर करेगा. उन्होंने कहा, ‘यह देखना होगा कि क्या दोनों पक्ष शांति के लिए तैयार हैं, क्या अंतरराष्ट्रीय शांति स्थापना के लिए गंभीरता से अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलेगा? भारत सरकार के लिए ऐसा फैसला लेने से पहले इन सब बातों को ध्यान में रखना होगा. हां या ना कहने से पहले उन्हें इन बातों को सबसे ऊपर रखना होगा.’ हालांकि, उन्होंने इस मामले में आशावादी रुख दिखाया और कहा कि इसे पूरी तरह से संभव मानता हूं कि इन परिस्थितियों में भारत हां कहेगा. उन्होंने आगे कहा कि भारत ने अपने इतिहास में दुनिया भर में ढाई लाख शांति रक्षक भेजे हैं. उन्होंने कहा कि नई दिल्ली ने करीब 49 शांति अभियानों में भाग लिया है. “तो यह एक ऐसा देश है जिसका भारत के प्रत्यक्ष हित से बहुत दूर के स्थानों पर शांति स्थापित करने का व्यापक रिकॉर्ड है. तो क्यों नहीं?”

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